‘क्रांति अथवा महाक्रान्ति’, ‘राजनैतिक अथवा सामाजिक संगठन’?

आज से ढाई साल पहले एक ऐसे आन्दोलन की शुरुआत हुयी थी जिसमे पहले एक आदमी से बेडा उठाया था, एक से दस हुए, दस से सौ हुए, सौ से हजार और हजार से लाख ! कारण एक मुद्दा था जिसने समाज को ग्रसित कर रखा था, जनता एक बदलाव चाहती थी, राजनैतिक और सामाजिक बदलाव ! समस्याओ का समाधान चाहती थी ! जनता के इस विशाल आन्दोलन ने देश की सरकार को झकझोर दिया और सरकार ने झूठे वादे कर डाले, जनालोकपाल पास कर देगे........
आन्दोलन समाप्त कर दिया, बाद में सप्ता पक्ष के कुछ नेताओ ने बोला की राजनीती में आओ, बहस करो बिल पास करा लो. ! तब जनता को करारा झटका लगा, और उसने राजनीती में एक इमानदार विकल्प ढूँढना सुरु कर दिया ! तब कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओ में कुछ विचारविमर्श हुआ और इस सामाजिक संगठन ने राजनैतिक रूप ले लिया ! अब भी लक्ष्य सामाजिक ही थे, भ्रस्टाचार और बेईमानी को लोकतन्त्र से दूर करना, जनालोकपाल को पास कारना. राज्नैतीं दल में भी जनता का सैलाब जुड़ता गया और एक ऐतिहासिक महाक्रान्ति का रूप लेने में इसे समय नहीं लगा.
मै यहाँ बात कर रहा हूँ अन्ना आन्दोलन से निकली आम आदमी पार्टी की, जिसे जनता अब भी नहीं समझ पायी ‘राजनैतिक दल’ कहे या फिर ‘सामाजिक संगठन’ ! एक ऐसी टीम जिसमे कुछ भी करने का जज्बा है एक आम आदमी से शुरू होकर आज करोडो आम आदमी की हो चुकी है ‘आम आदमी पार्टी’.! मै इसी कड़ी का एक पहलू हूँ.!
अन्ना आन्दोलन का वो प्रारूप भी देखा जिसमे लोगो ने उनके उपवास के लिए उपवास रखने शुरू कर दिए थे, जिसने उस समय की राजनीती के अराजक तत्वों का साथ देना छोड़ दिया था, पूरा देश एक परिवार हो चुका था !

अरविन्द केजरीवाल के साथ रहकर मैंने उनकी सच्चाई का वो प्रारूप देखा जिसमे उसे मौत भी नहीं हिला सकती, जो हर सदस्य के लिए अपने आप में प्रेरक बन जाते है ! मनीष सिसोदिया के साथ मैंने बेईमानी की इस लड़ाई के लिए कुछ भी करने का जज्बा देखा, कुमार विश्वास पार्टी का एक ऐसा पहलु जिन्होंने कड़ी से कड़ी को जोड़ने का कार्य किया, संजय सिंह, योगेन्द्र यादव आदि अनेक ऐसे व्यक्तियों का संगठन जो एक अच्छे समाज में गठन के लिए अपनी जान गवाने से भी नहीं डरता ! ऐसे व्यक्तियों के साथ रहते हुए इस पार्टी में एक सामाजिक सेवा के लिए पथ प्रदर्शक की कमी महसूस नहीं हुयी, मै राजनीती से हमेशा घृणा करता था, अन्ना आन्दोलन के समय इस घृणा में और तेजी आयी लेकिन जब जनता के सर्वे के अनुसार आम आदमी पार्टी बनी और फिर इसमें साथ मैंने काम करते हुए आम आदमी का लगाव देखा तो राजनीति से प्रेम सा होने लगा !
दिल्ली चुनाव पार्टी के लिए अग्नि परीक्षा थी, दीवाली – दशहरे बिना मनाये पार्टी अपनी इस परीक्षा की तैयारी में डटी रही, विरोधी पार्टियों के अव्हेलनाओ को झेलती रही क्योंकी अब महसूस हो चुका था आम आदमी , पार्टी के साथ है ! विरोधी डालो ने अपने सारे अच्छे-बुरे दांव खेल लिए, मिडिया का दुरुप्योक कर स्टिंग अपरेसन करवा लिए, लेकिन इमानदार सफाई को कोई कितना भी चाहे गन्दा नहीं कर सकता, इसलिए सभी तथ्य गलत साबित हुए! आखिर में घड़ी आयी दिल्ली चुनाव की वोट डाले गए और एक बात तो ४ दिसंबर को ही साबित हो गयी की इस आन्दोलन ने जनता को जागा दिया है, जिस दिल्ली में कभी चुनाव ५७ प्रतिसत हुआ करता था आज वहां ६६-६७ प्रतिशत चुनाव हुआ ! लोग राजनैतिक और सामाजिक सुधार के लिए जाग चुके है !
८ दिसंबर जिसका इन्तजार दिल्ली के साथ साथ पूरे देश को यहाँ तक की विदेशी मिडिया को था ! इस दिन एक ऐसे समाज का भविष्य निर्धारण होना था जिससे राजनैतिक मनमानियो को रोकने के साथ-साथ विकास की राजनीती का सन्देश छुपा था, इस समाज की हार देश में भ्रष्टाचार और बेईमानी को बढाने में सहायक हो सकती थी, लेकिन विजय हुयी आम आदमी और उसके परिश्रम की ! ऐसे परिणाम आये जिन्होंने देश के राजनैतिक विशेषज्ञों के साथ-साथ मिडिया को भी झकझोर दिया, जिस मिडिया ने आम आदमी के लिए १०-१५ सीटो के अनुमान लगाये थे उन आम आदमियों ने देश की राजनीती को एक नया विकल्प दिया !
दिल्ली चुनाव परिणामो में आम आदमी पार्टी को ७० में से २८ सीटो में विजय प्राप्त हुयी और २१-२० स्थानों में वह दूसरे स्थान पर रही. इस तरह से आम आदमी पार्टी ने एक भारतीय राजनीती को नया विकल्प दिया है !इस तरह से ये अडिग सफ़र था जो एक जन आन्दोलन से शुरू होकर राजनैतिक दल का रूप ले लेता है जिसके पास विकास के वाही मुद्दे है जो जन आन्दोलन के समय था !
अब फिर से प्रश्न जनता का है क्या आम आदमी पार्टी अपने वादों को पूरा करने में वचन वद्ध रहेगी?

‘आप’ बना सकते है लोकतंत्र के इस उत्सव को एतिहासिक : आम आदमी की जुबानी

आजादी की ६७ पूरे हो गए है, देश लोकतंत्र घोषित है! लेकिन क्या सच में एक आम नागरिक स्वतंत्र है ? खुश है ? क्या वो अपने ४-५ साल के बच्चे को ईमानदारी से बोल सकता है की “बेटा तुम एक इमानदार देश में हो”? क्या वो खुद से ईमानदारी के साथ बोल सकता है की वो इमानदार देश का नागरिक है, उसकी सरकार ईमानदार है? क्या सच में वो प्रतिदिन प्रयोग के सामानों की महंगाई से परेशान नहीं है? क्या उसे १०० रुपये किलो की प्याज और ५० रुपये किलो का दूध नहीं सताता? क्या उसकी चाय की चीनी का मूल्य मिर्च की तरह नहीं चुभता ? क्या उसे हजारो घोटालो में घुटे खुद के पैसो की घुटन नहीं सताती ?
इसी तरह के हजारो प्रश्न है जो एक आम आदमी को सता रहे है लेकिन वो किससे कहे? आज सबसे बड़ा प्रश्न यही है! एक सहारा जिसे उसने पांच साल पहले यह सोचकर वोट दिया था की यह हमारे हक़ की लड़ाई लडेगा लेकिन आज वो खुद के बैंक एकाउंट की लड़ाई में लग गया. उसने उसे यह सोचकर वोट दिया था की यह हमारे परिवार को सुरक्षा देगा लेकिन आज उसी सहारे का परिवार इज्जत लूटता है, उसके समाज और देश के विकास के लिए जिसे जिताया था आज वो उस आम आदमी को ही कुविकसित कर रहा है !
अचानक उस बेचारे ने एक दिन सोचा इस बार दूसरी पार्टी को जिताते है और वो सफल भी हुआ लेकिन वो दूसरी पार्टी का नेता भी उसी तरह से लूटने लगा..
फस गया बेचारा आम आदमी.... XX-YY-XX-YY-XX-YY-XX-YY……..XX-YY के लूप में!
कौरवो के इस चक्र में बेचारा अभिमन्यु की तरह फसा है आज का आम आदमी.
इस दशा में उसे फिर से आवश्यकता है की वो अपने सबसे बड़े अधिकार “वोट” का प्रयोग सही ढंग से करे,
वोट किसे देना? क्यों देना है?.......................जैसे प्रश्न सोचकर ही उसे वोट देना चाहिये!
जिस तरह से एक आम आदमी साल में हजार पर्व मिलजुलकर मनाता है उसी तरह पांच साल में आने वाले लोकतंत्र के इस पर्व को अलग महत्त्व तो देना बनता है ! सभी दीवाली, दशहरा, होली, ईद, क्रिसमस में पुरे दिन व्यस्त रहते है, कुछ न कुछ खास करते है उसी तरह से क्या पांच साल में आने वाले इस त्योहार में १-२ घंटे का समय भी नहीं दे सकते ? देश आपका है, समाज आपका है हजार त्योहारों में से ये त्योहार आपका है तो सेलेब्रेसन भी आपका ही बनता है! इससे फायदा भी आपका है, दुसरे त्योहारों में तो आपका पैसा खर्च होता है लेकिन इस त्योहार में आपको मौका मिलता है की आप ऐसे व्यक्ति को चुन सके जो आपके खर्च कम कर सके !
घरो से निकलिए अपने हक़ के लिए अपना वोट डालिए, आपका वोट एक ऐसे समाज का विकास कर सकता है जिसकी भारत को आवश्यकता है, आज की राजनीती में कूटनीति का सहारा है यह तो सब जानते है नेता इतने गिर चुके है की जनता को बेकूफ बनाना उसने एक खेल समझ रखा है, पैसे के बदले वोट, दारु के बदले वोट, सामान के बदले वोट और ऐसे अनेक हथकंडे अपना रहे है जिससे बार बार भ्रष्टाचार का रौला होता है मंत्रिमंडल में, सरकार में और बदनाम करते है लोकतंत्र के मंदिर को... और बाद में कहते है ये इतना महंगा है वो इतना माँगा है.
अतः वो तो नहीं बदल सकते लेकिन जो बदल सकते है उनके बदलने से ही समाज बदल सकता है, यदि आप वोट डालने नहीं जा रहे तो कृपया इस बार जरुर जाईयेगा, ये उन वोट बेचने वालो के चहरे पर तमाचा होगा जो बेईमानी के दलदल में पिसे चले जा रहे है !
आम आदमी ने भाजपा- कांग्रेस की जिंदगी अच्छी तरह जी ली है, यदि इसी भ्रष्टाचार और बेईमानी भरी जिनदगी से प्यार है तो वैसा ही करिए जैसा अभी तक कर रहे थे लेकिन यदि समाज में परिवर्तन चाहिए तो आपको घरो से निकलना होगा और मताधिकार का प्रयोग सोच-समझकर करना होगा.
मै यहाँ एक ऐसी नवोदित पार्टी की बात जरुर करूँगा जो हाल ही में एक जन आन्दोलन से बनी है “आम आदमी पार्टी” कुछ लोगो से सुना है की वो आन्दोलन अन्ना हजारे का था, कुछ लोग कहते है की वो आन्दोलन अरविन्द केजरीवाल का था मेरी समझ से ये सब तो परे है लेकिन मै ये कहूँगा मै इस आन्दोलन में तीन दिन तक जेल में रहा था यह आन्दोलन तो मेरा था, हर उस आदमी का था जो सड़क पर आया था तो आना या केजरीवाल का कैसे हुआ? आन्दोलन जनता का होता है व्यक्ति विशेष का नहीं.. तो उस आन्दोलन से अन्ना या केजरीवाल के साथ-साथ पूरे देश का नाम आना चाहिए!
हाँ मै यहाँ ये बताना चाहुंग मै एक भाजपा नेता का बेटा हूँ और मेरे पिता जी को १९९१ के अयोध्या दंगो में पैर में गोली लगी थी लेकिन मै भाजपा से बिलकुल अलग हूँ और आज से दो साल पहले तक मुझे राजनीती में थोड़ा भी इंटरेस्ट नहीं था लेकिन उस जन आन्दोलन और उसकी मानगो ने मुझे राजनीती के बारे में सोचने पर विवस कर दिया, आखिर सवाल देश का था तो मुझे भी लगा की रास्ता गलत नहीं है और आज मुझे गर्व है की मै ऐसे लोगो के साथ खड़ा हूँ जिन्होंने अपना सब कुछ दांव में लगा रखा है जिनमे से मै खुद एक हूँ पापा से शर्त है आप की सरकार को लेकर, एक नौकरी से हाथ धो चुका हू, गाँव वालो से हजारो वादे है एक अच्छी सरकार को लेकर और अब तो दोस्तों को भी जबाब देना है की मेरी लड़ाई गलत नहीं थी. मै सही था मेरे साथ खड़े लोग सही थे पूरा देश सही था.. ऐसी दशा में बस एक ही उपाय बचाता है जो ऊपर के तीनो बिन्दुओ का हाल हो सकता है “आप- आम आदमी”..

एक साधारण सी गुजारिश है, प्रार्थना है, निवेदन है की लोकतंत्र के इस त्योहार का इस बार का उत्सव कुछ एतिहासिक होना चाहिए जिससे अगले पांच सालो तक आपको पछताना न पड़े, छोटे छोटे बच्चे एक ऐसे देश का सपना देश सके जो “सच में ईमानदार हो”....

“वोट और नोट” दोनों का हिसाब चाहता है “आम आदमी”

एक स्थिति होती है जिसमे लोग अपने आपको रखते है और एक परिस्थिति होती है जिसमे कोई कैसे भी रह सकता है लेकिन दोनों दशाओ में एक छोटे से छोटे आम आदमी के पास ‘हिसाब’ नाम की चीज होती है! एक बच्चा एक रुपये का और एक कंपनी हजार करोड़ रुपये का हिसाब रखती है, एक चाय वाला “चाय के कपो” का और पान वाला “पान की बिक्री” के एक एक पाई का हिसाब रखता है, पानी बेचने वाला “पानी के बिके ग्लासों का” और गाड़ी बेचने वाला ‘गाड़ियों’ का हिसाब रखता है................. यहाँ हर आदमी के पास हिसाब की किताब होती है!
ऐसी दशा में द्रश्यनीययह यह है की हमारे राजनेताओ के पास विदेश जाने के करोणों के खर्चे का हिसाब तो है लेकिन “करोडो के चंदे” का हिसाब नहीं है, एक रात में लाखो के ‘डिनर’ का हिसाब तो है लेकिन जनता के विकास में लगाये गए वास्तविक पैसे का हिसाब नहीं है! काँमन वेल्थ खेलो का फर्जी हिस्साब है लेकिन ‘आम आदमी’ के एक पैसे का हिसाब नहीं है ! अभी हाल ही में सुना की दिल्ली की तीन पार्टिया, अपनी पार्टियों के चंदे पे बात कर रही है, जो जायज भी था, इनमे आम आदमी पार्टी ने अपने चंदे का हिस्साब जनता को दिया लेकिन भाजपा और कांग्रेस के करोणों के चंदे का हिसाब अब तक आम आदमी जानने का इच्छुक है, दोनों ऐसी पार्टिया है जिन्होंने भारतीय राजनीती में शासन किया है, और एक ने तो ६० साल से ज्यादा शासन किया है! खुद को लोकतंत्र मान चुके दोनों बड़े राजनैतिक दल आखिर क्या सोच कर जनता को हिसाब नहीं देना चाहते ?
क्या ये पैसा सच में भारत का नहीं है?
क्या इसमे पाकिस्तान, चीन या अमेरिका की हिस्सेदारी है ?
क्या ये पैसा किसी आतंकवादी संगठन ने दिया है ?
क्या किसी पार्टी के पास ‘पैसे का पेड़ है’?
.....आदि अनेक ऐसे प्रश्न जो कई लोगो ने मुझसे पूंछ चुके है और मुझे भी सोचने और शक करने पर विवस कर दिया! यहाँ प्रश्न केवल हिसाब या पैसा का नहीं उठता, प्रश्न है आम आदमी के अधिकारों का, जो व्यक्ति अपने वोट की ताकत से सरकार बना सकता है तो क्या वो उसके नोटों का हिसाब भी नहीं पूंछ सकता !
 आज एक आम आदमी होने के नाते क्या मेरे पास वो ताकत भी नहीं है की मै अपने नेता से अपने पैसे के बारे में पूंछ सकू. क्या उस नेता में इतनी भी काबिलियत नहीं है की वो जनता को हिसाब दे सके. जनता को और व्यक्तिगत मुझे(एक आम आदमी) को इस पैसे का हिसाब चाहिए. जन आन्दोलन की आवाज तो जानती ही है दोनों पार्टियाँ साथ में अभी भी इस लोकतान्त्रिक देश में अदालतों में न्याय होता है, हक़ की लड़ाई में कोई दर भी नहीं होता ! Cont……..

“दशहरे के ‘पान’ की वो यादे”

नवरात्रि और दशहरा का पर्व मेरे लिए हमेशा विशेष रहा है ! मेरे मन में माँ के “जागरण” के प्रति प्यार है ! मेरे बाबा हमेशा देवी माँ की पूजा में व्यस्त रहते थे, प्रतिदिन सुबह ३-४ घंटे उनकी पूजा होती है! तब मै अपने गाँव सुमेरपुर में ही रहता था! मै उनके साथ कभी कभी रात्रि जागरण में जाया करता था, बड़े अनंदनीय होते थे वो दिन! अब पूजा पाठ का वो प्रक्रम मेरे पिता जी अपना रहे है, मै बाबा और पिता जी के इस लगन-पूर्वक की जाने वाली पूजा को देखकर ही बड़ा हुआ हूँ ! यहाँ मै अपनी दादी का जिक्र करना कैसे भूल सकता हूँ, ९० साल की उम्र तक भी जिन्होंने बिना चश्मे में ग्रन्थ पढ़े और सुबह ४ बजे उठाने का क्रम नहीं तोड़ा ! दादी की वो “भागवत”, धार्मिक कहानियां जो रोज सायं को शुरू हो जाती थी उसे कभी नहीं भूल सकता ! आज घर से निकले ९ साल हो चुके है, दादी और बाबा दोनों को खो चुके है! अब उनकी यादें वो एहसास दिलाते है जो शायद वापस मिल जाये तो मै समझू की एक नया जीवन मिल गया !
इस समय, दिल्ली में रहता हूँ. लेकिन अब भी दादी और बाबा के सपने दिल को खातोरते रहते है, कुछ सपने जो मेरे लिए थे और कुछ सपने जो समाज के लिए वो देखते थे ! हमेशा कहते थे, “भगवान हो या न हो लेकिन हिन्दू धर्म में जिंतनी भी प्रथाएं है उनको बिना सोचे पालन करो, हमेशा खुश रहोगे” बाद में मैंने उनकी हर बात पर गौर किया और कुछ सोचा बातो में सत्यता थी! तुलसीदास जी के ग्रन्थ के बारे में कहते थे, ठीक है मानता हूँ इसमे एक कहानी है लेकिन क्या आज का कोई लेखक इतनी जुडी हुयी कड़ीयो वाली कहानी लिख सकता है? क्या कोई बिना किसी जगह की शैर किये श्री लंका और भारत को जोड़ने वाली आज के दशहरे की कहानी को लिख सकता है..................................” मैंने आज इस बात पर सोचा, इन ग्रंथो में कुछ तो ताकत है !
उनके रहते हुए मुझे कभी नहीं पता चला की वो एक ऐसे कवि भी थे जिन्होंने कभी अटल बिहारी बाजपेई जी जैसे कवि के साथ कविता की होगी, लेकिन जब मैंने उनकी डी.ए.वी. कानपूर की डायरी खोली और उनकी रचनाये पढ़ी तो मेरे अन्दर “गर्व” की एक लहर दौड़ पड़ी! एक ऐसा सरकारी कर्मचारी जिसने अपने जीवन में कभी एक रुपये रिश्वत का न लिया हो(ऐसा मै नहीं उनका हर मित्र और गाँव वाले कहते है), जिसने अपने लड़के को रिश्वत की वजह से खुद नौकरी से निकलवाया हो ऐसा व्यक्ति कवि भी हो सकता है.
मैंने उनकी रचना “ओ किसान भगवान .....” को कुछ बदलकर अपने ब्लाग में पहले लिखा है, इसे पढने के बाद आप खुद समझ जायेगे, आखिर उनका व्यक्तित्व समाज के लिए क्या कहता है !
आज दशहरे के दिन उनके हाथ का पान खाने को मिलता था, पान को हमारे यहाँ दशहरे मिलन का सूचक मानते है और पुरानी लड़ाईयां ख़त्म करने का प्रेरक...
उस “पान” की वजह से एक याद कई यादे दिला गयी, उनके साथ का रामलीला और फिर रावण का दहन. वो दोबारा नहीं लौट सकता L L


“धरना-जेल-लाठियों” के बाद अरविन्द केजरीवाल के साथ एक अलग अनुभव : अंकुर मिश्र “युगल”

यद्यपि मै किसी आई आई टी से नहीं हूँ लेकिन फिर भी वहां था ! मेरे मित्रो को मेरी बातो से ये लगता है की मै भाजपा सामर्थी हूँ लेकिन फिर भी मै वहां था ! लेखनी की दुनियाँ में होने के बावजूद मेरा पत्रकारों से कोई ज्यादा सम्बन्ध नहीं है फिर भी मै वहां था ! कुछ तो कारण था जो मै वहां था, दिनभर की थकान और एक बड़े सेमिनार को ख़त्म करने के बाद भी मै वहा पूरी शक्ति के साथ वहां था ! आखिर कारण क्या था?

कारण था एक व्यक्ति जिसके पीछे पूरा देश चल पड़ा आखिर उसमे तो कुछ है ! जो व्यक्ति आज अमीरों की पंक्ति में खड़ा होकर आराम कर सकता था उसने अपने आप को दांव में लगाकर कुछ बदलने के लिए कदम उठाया ! जिसके पास आज एक ऐसी टीम है जो किसी भी प्रश्न का जबाब इमानदारी से देने में सक्षम है ! कुछ नहीं तो देश के लिए कुछ न कुछ करने में सक्षम तो है ही ! इस वजग से मै यहाँ था !



सेमिनार हाल में जाने से पहले मैंने अरविन्द केजरीवाल और रवीस कुमार से जिस तरह के अनुभव लिए उन अनुभवों के लिए मै यहाँ था! मैंने दोनों व्यक्तियों के बीच में खड़े होकर जो बाते की वो वास्तव में मेरे लिए मार्गदर्शक रहेगी ! सरलता और ओजस्विता से परिपूर्ण इन दोनों लोगो की बाते मुझे थोड़ा बहुत देश और लेखनी के तरफ तो जरुर ले जायेगी! वैसे तो मै अरविन्द केजरीवाल के साथ १६ अगस्त वाली क्रांति से जुडा हूँ लेकिन उस क्रांति के बाद कल ही उनसे मुलाकात हुयी! रविश कुमार को हमेसा टीवी में देखा था कल प्रत्यक्ष बात की, अतुभाव थोड़ा अलग तो था ही!
वैसे तो अभी तक मै इस आन्दोलन की १५ से ज्यादा संगोष्टिया में गया हूँ, देश के इस आन्दोलन के लिए जेल भी गया हूँ, लाठियां भी खायी है लेकिन कल जब अरविन्द केजरीवाल का स्वागत मैंने आई.आई.टी के १५०० से ज्यादा छात्रो की तालियों से देखा, सच में मेरे रोंगटे खड़े हो गए ! जो देश के लिए आधुनिक प्रद्योगिकी के सहयोग से देश का विकास और पैसा दोनों कम सकते है, ऐसे लोग भी आज देश की दुर्गति से परेशान हो चुके है उन्हें देश के लिए एक नया संचालक चाहिए, जो उन्हें विदेश जाने से रोके देश को सुपर पावर बनने में अपना सहयोग दे ! देश के सभी तरह के विकास के लिए एक अच्छी राजनीती की जरूरत होती है, अच्छी राजनीती एक अच्छे राजनेता से आती है और एक अच्छा नागरिक ही अच्छा राजनेता बन सकता है जो देश के लिए कुछ सोच सके, भ्रष्टाचार , जातिवाद समाजवाद के अलावा प्रगतिवाद के लिए भीं सोच सके !


अतः अंततः परिणाम यही आता है देश को एक विकल्प की जरुरत है जो आज की ग्रसित राजनैतिक विचारधारा के आगे कुछ सोच सके, विकास और सुपर पावर के लिए काम कर सके, केवल बाते नहीं ! 

बंद कमरों में बहस तो नामर्द भी कर सकते है लेकिन सीमा पर एक मर्द ही खड़ा हो सकता है : अंकुर मिश्र "युगल"

देश किस किस तरह से गिराया जा रहा है और हम किस तरह से गिरा रहे है ! सोचनीय है..  :( 
हमारा पडोसी हमारे घर  घुसकर मार जाता है हम देखते और बात करते रह जाते है! देश की सप्ता ऐसे लोगो के हांथो मे दे रखी है जिनका खुला मकसद है देश को तबाह करना और उस तबाही को भी हम देख रहे है ! 
देश में लोग खुशियाँ मानाना तो सीख  गए लेकिन अपने हक़ के लिए लड़ना भूल गए ! 
एक छोटे से उदहारण से बात करते है - शाहरुख़ खान की एक फिल्म की कामयाबी की खुशिया तो पूरा देश मनायेगा लेकिन क्या शाहरुख़ खान की सामाजिकता पर कोई गम मनायेगा ! देश में उत्तराखंड जैसी त्रासदी से अपने को कोशो दूर रखा, सीमा पर ५ जवान मार दिए गए, तो क्या देश के एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते महोदय दो शब्द भी नहीं बोल सकते ! ऐसे व्यक्ति को क्या महत्त्व देना जो गम में  कभी भी देश  के साथ नहीं रहा, रोटी पूरे देश से लेनी है और देश अपने परिवार को समझना है ! खान साहब ये जनता है सब जानती है बस थोड़ी सी भोली है !यद्यपि मुझे भी आप पसंद हो लेकिन केवल एक कलाकार के रूप में !
दूसरी तरफ है वो बिहार के नामर्द मुख्यमंत्री साहब जिनसे उन शरीरो को देखना भी उचित नहीं समझा, उन्हें तो बस जनता चुनाव जितवा दे उसी के प्रचार प्रसार में लगे रहो.! समय बताएगा आप उन बेचारी  माँ, बहनों और विधवाओ के अभिशाप से तो बचिए …… !
अभी इसमे देश को डसने वाले कुछ बेशर्मो के नाम लेना तो बकाया ही है , एक हमारे देश के दामाद ४२० वाड्रा साहब अभी भी इनका पिटारा नहीं भरा , लूटना जारी है साथ में सोनिया जी और उनके साले साहब तो है ही ! इन बड़े नेताओ के लूटने की दर इतनी तेज हो गयी है की बेचारे छोटे नेता भूखे रह जाते है और उनकी जबान भी फिसल जाती है अभी हाल ही में एक महोदय बोले "सैनिक सरकारी बेतन पर सरकारी नौकर  होते है" ………. ! इन महोदय से एक ही प्रश्न है क्या कभी अपनी औलाद को सीमा पर भेज सकते हो ?
आप में इतनी हिम्मत नहीं है बंद कमरों में बहस तो नामर्द भी कर सकते है लेकिन  सीमा पर एक मर्द ही खड़ा हो सकता है !
गलती आपकी नहीं है , आपके आकाओ की नहीं है पाकिस्तान की भी नहीं है , अमेरिका तो बेचारा दूर है , भगवान् की भी गलती नहीं है …… गलती किसी की नहीं है, गलती है मेरी , एक आम आदमी की जिन्होंने गलती से या आलस्य से आपको वहां पंहुचा दिया जहाँ पर आप पोंछा लगाने के लायक नहीं हो !
आप एक मंदिर में बैठे है लोकतंत्र के मंदिर में आपके आधे मंत्रियो को तो लोकतंत्र भी परिभाषा भी नहीं आती होगी ! मेरे तो दिल में बस एक ही प्रश्न है क्या करे  और क्या कहे इन बेचारो को . …. अचानक से दिल बोलता है संभल जाओ कुछ दिन और झेलो मुशीबत २०१४ में देख लेंगे ! ठीक है देखते है २०१४ में ही सही !

जिस देश में शर्मा जी की चाय 7 रुपये की बिकती है, उस देश में खाना 5 रुपये में..

आज सुबह जब मै 'मोर्निग वाक' से  लौटकर  पार्क में वापस आया और वहाँ उस बातचीत हिस्सा बना जिसका वर्णन यहाँ करने से मै अपने आप को नहीं रोकपाया ! उन वरिष्ठ नागरिको के आलावा आज एक चाय वाले चाचा भी वहाँ आये हुए थे ! यहाँ वरिष्ठ का  मतलब उम्र और ज्ञान दोनों से है, वैसे तो इन 'सीनियर सिटीजंस' से मै रोज मिलता और बाते  लेकिन आज उन चाय वाले चाचा का आगमन कुछ विशेष था !
देश में अलग अलग कोनो से  राजनीतिग्य बाते कर रहे है की हमारे यहाँ खाना 5 रुपये का मिलता है , हमारे यहाँ 12 रूपये का मिलता है ! तो यहाँ भी वाही बात चल रही थी , ये बात चाय वाले अंकल के समझ में नहीं आयी तो उन्होंने पूरी बात पूंछी और समझने के बाद घबरा गए और बोल पड़े 'हाय राम 5 रुपये का खाना' मै तो एक ग्लास  चाय भी 7 रुपये की देता हूँ,  और उसकी कमायी के बाद भी  नहीं चल  पाता और हमारी सरकार 5 रुपये में खाना देकर पूरा देश चला लेती है !........................................"
उस चाय वाले की बात को  सोचा, जिस देश में शर्मा जी की चाय 7 रुपये की  बिकती है , उस देश में खाना 5  रुपये में कैसे मिल सकता है !  हमारी सरकार के  ऐसे काल्पनिक कथनो से तो यही लगता है की या तो सरकार के सभी  मंत्री-संत्री पागल हो चुके है या उनके पास विकास करने के लिए कुछ शेष नहीं बचा !
वही दूसरी तरफ इन सब बातो की जिम्मेदार है हमारी मीडिया, जो एक किसान की मौत को दिखाए या  दिखाए लेकिन एक नेता के थूकने की  को मुद्दा जरूर बना देते है !तो यही सार था इस वास्तविकता का जिस देश में चाय  सात रुपये में मिलती है वहाँ 5 रुपये में खाना  कहा से मिल सकता है !देश में तो मजाक चल  रहा है आइये आप भी इसका एक हिस्सा बनिए !

मिडिया इतनी भी खोखली मत बनो : अंकुर मिश्र 'युगल'

मै अन्ना हजारे की बात से पूरी तरह सहमत हूँ, पत्रकारिता विकास का एक ऐसा स्तम्भ है जिसके जरिये किसी भी परिस्थिति में देश को बचाया जा सकता है ! आम जनता की आवाज उठाने का एक ऐसा माध्यम जो संसार के कोने कोने तक आसानी से जा सकती है ! गाँव की उन्नति तो रही है लेकिन उससे ज्यादा अवनति हो रही है, मंजिले तो ऊँची हो रही है लेकिन सोच और दिमाग नीचे हो रहा है ! गरीब को सहायता तो मिल रही है लेकिन उससे ज्यादा उसे लूटा जा रहा है ! जब किसी घटना के बाद पुलिस वाला रिपोर्ट लिखने के पैसे लेता हो , विकास के किसी टेंडर को पास करने के लिए नेता पैसे लेता हो, नौकरी के लिए एक कंपनी पैसे लेती हो, इलाज के लिए सरकारी डाक्टर पैसे लेता हो ,…………………।
तब भी भारतीय मिडिया इनको कभी नहीं दिखाती है !
उन्नति और विकास जरुरी है लेकिन खोखलेपन के साथ नहीं ! यह जरुरी है हम क्रिकेट में विश्वविजेता बनते है तो उसे दिखाए लेकिन यह भी जरुरी है यदि किसी गाँव में गरीब मर रहा है तो सरकार को दिखाए ! अम्बानी या मनमोहन सिंह के घर की पार्टी आप दिखाए लेकिन ये भी जरुरी है की गाँवो में अस्पताल और स्कूल नहीं है तो उसे भी दिखाये ! यह भी जरुरी है आप किसी अभिनेता या राजनेता की उपलब्धी दिखाए लेकिन उस बच्चे की समस्याए जरुर दिखाए जिसके पास पढने के लिए किताबे नहीं है !
लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है आप, जनता के लिए भरोषा है आप फिर भी उस निकम्मी सरकार  के आगे बिक जाते है आप !
मै अन्ना हजारे जी की इस पकती से पूर्णतयः सहमत हूँ : "गांव के विकास का मतलब नई पंचायत इमारत का निर्माण या मौजूदा इमारतों की ऊंचाई बढ़ाना नहीं है. इमारतों की ऊंचाई बढ़ने के साथ-साथ लोगों के सिद्धांत नीचे की ओर गिरते हैं. यह विकास नहीं है. विकास का मतलब लोगों को भीतर से मज़बूत बनाना है."
‘पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है, जिसे मज़बूत होना चाहिए, लेकिन चिंता की बात यह है कि इस स्तम्भ को भी घुन लग गया है.’

"सर्वशिक्षा-श्रेष्ठशिक्षा", एक छोटा सा कदम 'मलाला' के संघर्ष के नाम !!

वो दिन और थे जब पुरुष किसी महिला के बचाव में खड़ा होता था ! आज की महिलाए खुद के साथ साथ समाज की सुरक्षा करने में भी सक्षम है ! देश सेवा के लिए सेना में या राजनीती में हर जगह इन्होने अपनी शक्तिशाली छवि बनायीं हुयी है ! लेखनी की ताकत हो या उद्योग जगत की उचाई हर जगह इन्होने अपना परचम लहराया है ! ऐसा करने वाली महिलाओ व लड़कियों में भारत ही नहीं बल्कि विश्व के हर देश का अलग स्थान है ! गाँव की लड़की अब  शहर में आकर पढ़ती है, जमीन से आसमान तक का सफ़र तय करती
 है ! वही दूसरी तरफ यही माँ के रूप में 'प्यार' और ममत्व का भण्डार रखती है !
 तो यहाँ सोचना उन्हें है, जो अब भी अपनी माँ, पत्नी, बहन या बेटी को कमजोर मानते ! सोचना उन राक्षसों को है जो उनकी मजबूरी का फायदा उठाते है! 
16 साल की लड़की 'मलाल' का संदेस केवल महिलाओ या लडकियों के लिए नहीं है उसका यह सन्देश  सारी मानव जाती के लिए है ! संयुक्त राष्ट्र संघ में मनाया गया 'मलाला' का जन्मदिन सरे विश्व के लिए सन्देश है की अपने कर्म को इमानदारी और परिश्रम से करो, आज जो केवल कथन बन गया है उस पट अमल की जरुरत है !
मनुष्य के सबसे बड़े हथियार उसकी लेखनी होती है !
"मलाला" की अपील "चलो किताबें और कलम उठाओ. ये हमारे सबसे ताकतवर हथियार हैं. एक बच्चा, एक शिक्षक, एक किताब और एक कलम ही दुनिया को बदल सकते हैं. शिक्षा ही एकमात्र हल है." वास्तव में आज का  समाज सुधारने  का सबसे बड़ा हथियार है ! हमें किसी भी क्रांति की जरुरत नहीं होगी यदि सबको सही शिक्षा मिलने लगे !
तो बस जरुरत है छोटे से अभियान की
"सर्वशिक्षा श्रेष्ठ शिक्षा", एक छोटा सा कदम मलाला के संघर्ष के  नाम ! 

जनता ही हमेशा पीड़ित क्यों राजनेता क्यों नहीं : अंकुर मिश्र "युगल"

आखिर वो समय जल्द जल्द ही आ रहा है जिसका नेताओ  इन्तजार रहता है , जनता इनकी गलतियों का खामियाजा भुगतती है  यही घटनाएँ इन नेताओ के हथियार होते है !
इनके निवारण के लिए बात कोई नहीं करेगा बात होगी  तो बस 'तुमने क्या किया और तुमने क्या किया?" ! 
छत्तीसगढ़ में नकसली हमले हुए उसमे बड़े बड़े वादे हुए, मारे गए सुरक्षाकर्मियों के लिए 'ये करेगे वो करेगे' लेकिन ये सब करना तो दूर वहां एक और एसपी को मार डाला गया और सरकार के बस वादे रह गए ! 
यदि ख़ुफ़िया विभाग ने दो जुलाई तक सतर्कता बरतने के निर्देश दिए थे तो ये घटना कैसे हुए और इसका जिम्मेदार कौन है ? 
ये किसकी नाकामी है ?........
वही दूसरी तरफ उत्तराखंड विपदा में राजनीती हो रही है ! 
वहां की सफाई और समाधान की बाते न करके बात हो रही है , 
आखिर जिम्मेदार कौन है ? 
प्रकृति ? 
कांग्रेस ?
 भाजपा? 
या कोई और ?....
सरक्रार त्याग पत्र दे , विपक्ष सप्ता को काम नहीं करने दे रहा है आदि बाते ही नेताओं का आधार है तो बेचारी जनता क्या करे ! 
उसे तो हमेशा पीड़ित ही रहना पड़ेगा !
बिहार में बम ब्लास्ट हुए , घायल कौन हुआ ? कौन कौन मरा ? किसकी संपत्ति में घाटा हुआ? इस बात Se किसी को मतलब नहीं है !
कांग्रेस के एक समझदार नेता दिग्विजय सिंह , तुरंत बोले इसमे कही मोदी का हाथ तो नहीं है !
भाजपा से किसी ने कहा नितिश कुमार की सुरक्षा व्यवस्था में कमी है ! 
कुछ विशेसग्य इस बहस में लग गए की ये धमाके क्यों किये गए ! 
अब इन्हें कौन समझाए ये सरे काम पहले ही निपटा लेने चाहिए थे ! 
नेताओ की आपसी बहस के बीच बेचारी जनता और कब तक पिसेगी ! ये सब राजनीतिग्य क्यों नहीं भोगते !
हमारे  देश की यही विडंबना है जिसे झुठलाया नहीं जा सकता ! पर जनता जागरूक हो रही है और वह नेताओ की ड्रामेबाजी को समझने लगी है ! 

नेता जी आप इतने समझदार होते तो देश का विकास ही कर रहे होते : अंकुर मिश्रा "युगल "

    उत्तराखंड जिस परिस्थिति से गुजर रहा है  के सभी नागरिको, संस्थाओ को राजनैतिक दलो को मिलकर सहायता करने करने  जरुरत है ! जहाँ हजारो जाने जा चुकी है, और अभी भी हजारो जाने फसी हुयी है , मुझे नहीं लगता ऐसे समय में भी किसी को लड़ने  की जरुरत है ! मेरा सलाम   है उन भिखारियों को जिन्होंने अपने भीख के मांगे गए पैसो से  सहायता में सहायता की , उन रिक्शा चलाने  वाले चालको को जिन्होंने अपने पेट काटकर उत्तराखंड के लोगो को सहायता पहुचाई !  सेना के उन जवानो को जो अपनी जान पे खेलकर लोगो की सहायता करने पहुच गए , और उसमे कुछ सहीद भी हुए ! उन सभी सहायता प्रदात्ताओ को सलाम है जिन्होंने किसी भी तरह से देश की  कठिन परिस्थित में सहायता की !
      लेकिन यहाँ  दिल  दहलाने वाली बात  ये है की जिनसे ऐसे समय पर  ज्यादा सहायता की उम्मीद होती है वही सरकार निकम्मापन  दिखाती है, खुद के राजमहलो में हजार रुपये की पर प्लेट पर भोग चलाते है और बाहर आकर  से गुजारिश करते है की उत्तराखंड की सहायता करे, जनता तो सहायता कर ही देगी ! लेकिन क्या इतनी  समझ नहीं है की  यदि एक दिन ये राजभोग नहीं खायेगे तो देश के  कुछ जरुर कर सकते  है ! 
            वही  दूसरी कहानी दो नेता   उत्ताराखंड जाकर इसलिए लड़ते है की वो जनता की सहायता करेगे ! अरे मालिको आप दोनों मिलकर भी सहायता कर सकते हो ! 
        विपत्ति है !  खैरियत  रहे कभी आप पे न आये, नहीं तो कोई सहायता के लिए भी नहीं आएगा ! 
एक  प्रदेश  मुख्यमंत्री वहा सहायता के लिए जाते   है तो उसके लिये खबरे उडती की  अपने लोगो को बचा लिया बस, अरे इतना तो एक साधारण आदमी भी सोच सकता है की जो काम सेना दस-पंद्रह दिनों में नहीं कर पायी वो काम कोई एक दिन में कैसे   कर सकता है लेकिन ये तो नेताओ की खाशियत है की किसी दूसरे नेता की अच्छाइयों को देख ही नहीं सकते है ! और ये मामला वही  नहीं रुक  , बिहार के महाबुद्धिमान  मंत्री जी भी बोल पड़े 'हम दिखावा नहीं करते' अरे  दिखावा तो यही  बोलकर कर दिया मान्यवर ! खैर आपमें इतनी समझ होती तो आप देश के विकास में ही  सहायता नहीं करते ! एक ऐसे दल और व्यक्ति से अलगाव नहीं करते जिससे देश को कुछ सम्भावनाये  है !
 वैसे इन राजनैतिक बातो का कुछ मतलब  नहीं था यहाँ लेकिन वास्तविकता से  भी नहीं भागा  जा सकता और कभी भी याद आ जाती है ये तो !

यहाँ मेरी यही गुजारिश है  नेता जी आप कृपया शांति  बनाये रखे, आपका  चुनाव समय अभी दूर है आप उसी में बोलियेगा !  अभी जनता को जो करना है वो कर रही है !

धर्मनिरपेक्षता को नया मुद्दा मत बनाइये, जनता सब जानती है उसे विकास चाहिए !

  एक  हिदू बाहुल्य  देश  का  नेता कहता है है की वो धर्मनिरपेक्ष है, इसमें मिडिया उनके पीछे पड़  जाती है और उस मुद्दे को देश का सबसे बड़ा मुद्दा बना देती है ! वही दूसरी ओर  वह नेता   उनके साथ काम कर चूका है जिन्हें अब वह खुद धर्मनिरपेक्ष नहीं मानता ! केवल एक व्यक्ति ने उनकी सोच बदल दी, कारण क्या हो सकता है : व्यक्तिगत विवाद या प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी ! आज ही मैंने धर्मनिरपेक्षवाद की  परिभाषा पढ़ी जिसमे खा गया है : 
सभी धर्म के लोग कानून, संविधान एवं सरकारी नीति के आगे समान है।
तो क्या भाजपा के शाशनकल में ऐसा नहीं था, क्या गुजरात में ऐसा नहीं है ! क्या गुजरात में दो संविधान चलते है हिन्दुओ के लिए अलग और मुसलमानों के लिए अलग ?
प्रिय नेता जी आप बिहार से आगे बढिए , बिहार ने आपको अपनी जिम्मेदारी दी थी क्योंकि उन्होंने सोचा था आप जिम्मेदार और समझदार है , लालू जी की तानाशाई का विकल्प है , लेकिन आप ऐसे है तो आपने बिहार की जनता के साथ विश्वासघात किया है ! देश के आधुनिक विकारो को मिटाने की कोशिश करिए उन्हें बढ़ने की नहीं देश वैसे ही गर्त में   जा रहा है , देश को विकल्प की जरुरत है !
एक व्यक्ति जिसे देश की जनता चाहती है की वह देश की बागडोर संभाले, उस बागडोर के लालची मत बनिए !
            एक दल है जिसके अन्दर से रोज सुबह कुछ कीड़े पकडे जाते है, जिन्होंने भ्रष्टाचार को अपनाया है ! एक दल है जो देश के लिए नया है प्रतिभा होने के बव्जीद अनुभव की कमी है ! ऐसी परिस्थिति में आप और भाजपा ही एक विकल्प है ! सोचना आपको है बिहार ही आपका घर है या देश को घर बनाना है ! आपको विकास से भी कुछ मतलब है या फिर बस आपको कुर्सी चाहिए !
धर्मनिरपेक्षता को नया मुद्दा मत बनाइये, जनता सब जानती है उसे विकास चाहिए ! 

एक सरबजीत के लिए इतने आंसू क्यों : अंकुर मिश्र "युगल"


देश का एक नागरिक शराब के नशे में देश की सीमा में घूमता है तो कोई दूसरा देश उसे अखिर क्या समझेगा ! कोई पाकिस्तानी , चीनी या नेपाली भारत के अन्दर घुसकर इस तरह से घुमते हुए पकड़ा गया तो क्या उसे भारत सरकार या कानून गिरफ्तार नहीं करेगा ? ऐसी ही दशा में जब भारत का कोई व्यक्ति पडोसी देश में जाता है तो उसका पकड़ा जाना स्वाभाविक है !
लेकिन पकडे जाने के वहां दी गयी यातनाये निंदनीय है उन्हें  इसकी जाँच करके उसे बरी करना चाहिए था !
इस बात के लिए पाकिस्तान हमेशा दोषी रहेगा और उसे इसे स्वीकार भी  चाहिए लेकिन अब देश में इतने आक्रोश का माहौल क्यों ? आखिर क्या जनता अब भी नहीं समझी की सर्कार उसकी नीतियाँ समझ चुकी है, मौन और बौन प्रधानमंत्री को पता चल चूका है "ये जनता है चल दिन हल्ला करेगी और उसके बाद शांत हो जाएगी" ! ऐसे में क्या लगता है की भारत सरकार  में इतनी हिम्मत है की पाकिस्तान से इस बात का जबाब मान सके ? या जबाब ले सके ?  जब इस देश में साडी अच्छी या बुरी बाते एक सामान हो चुकी है तो जनता को भी अपनी जिम्मेदारियां दिमाग से समझनी चाहिए !
देश में देश की रक्षा के लिए अन्दर बाहर और सीमा पर हजारो लोग मारे जाते है ! उन्हें और उनके परिवार को पता होता है की जहाँ वो है उनकी जान कभी भी जा सकती है लेकिन फिर भी उनमे जज्बा होता है जो एक साधारण मनुष्य से अलग बनाता है ! लेकिन उस व्यक्ति को मरने के बाद जो सुविधाए मिलती है उससे अच्चा तो यही है की उसे भी सरबजीत सिंह जैसी हरकते करनी चाहिए ! और सीमा पार में जाकर प्रतिदिन सुबह शाम घूमना चाहिए ! आखिर सरकारे उस व्यक्ति के मरने के बाद इतने मुआवजे देकर दर्शाना  क्या चाहती है ? या फिर यहाँ भी वोटबैंक की राजनीती ! इस मुआवजे की जरुरत उसे है जिसके पास खाने के पैसे नहीं है जिसके राते सड़क के किनारे गुजरती है ! इस नौकरी की जरुरत उसे है जिनके यहाँ दिन के चूल्हे जलने दूभर है ! इसकी जरुरत इस परिवार को बिल्कुल नहीं है ! मई मानता हूँ सरबजीत के साथ गलत हुआ इसका जिम्मेदार वह व्यक्ति खुद भी है !




मुझे तो खेद है कही कुछ दिनों बाद भारत सरकार  सरबजीत सिंह को भारत रत्न, पद्मभूषण या परमवीर चक्र देने की बात न करने लगे ! आखिर जनता , सरकार और पडोसी कब समझेगे ये तो नहीं पता लेकिन ये सरे इसके हल नहीं होते !

क्या सच में ऐसा देश है हमारा :अंकुर मिश्र 'युगल'


आखिर और कब तक सपनों की दुनिया में रहेंगा ?
अनेकता में एकता , शांति का प्रतीक, सर्वधर्म समभाव आदि जैसी खोखली कहावतो को और कब तक मानते रहेंगे ? देश के अन्दर कोई दूसरा देश घुसता चला आ रहा है और हम अब भी शांति के दूत है ?
देश में रोज बलात्कार पे बलकार होते चले जा रहे है और हम शांति के दूत है ? देश के अन्दर एक व्यक्ति यह बोल देता है की बलात्कार महिलाओ की साज  सज्जा के कारण हो रहे है उस बात को लेकर देश के अन्दर एक उबाल आ जाता है लेकिन देश की सीमओं के अन्दर  घुसकर कोई  मातृभूमि को हड़पता चला जा रहा है उसके लिए कोई नहीं बोलेगा ! जनता भी  शांत है, मिडिया भी शांत है और सरकार भी शांत है !
एक सरबजीत के लिए सारे अखबार और न्यूज चैनल भरे पड़े है लेकिन उन हजारो सरब्जीतो का क्या जिन्होंने अपनी जान गवांकर देश को सुरक्षित रखा है !
कहा  है वो नरेन्द्र मोदी जो पाकिस्तान पाकिस्तान के पीछे पड़े रहते है , क्या भारत को पाकिस्तान से ही खतरा है ! अब चीन भी आ रहा है अब आप कुछ नहीं कहेंगे ?
कहा है वो अरविन्द केजरीवाल जो आम आदमी की साख में देश को बचाने चले थे वाही आम आदमी आज खतरे में है, जल्दी ही चीन धीमे धीमे करपे दिल्ली भी आएगा क्या आप तब भी धरना कर रहे होगे !
और वो दीदी कहा है जो पश्चिम बंगाल की लड़ाई में लिए दो दिल्ली तक आ जाती है लेकिन अब तो देश खतरे में है आप भी कुछ नहीं कहेंगी ?





खैर इन सब से पूंछने का ज्यादा हक़ तो है भी नहीं !  ये सब तो फिर आरोप प्रत्यारोप शुरू कर देंगे !
प्रश्न तो सरकार से बनता है, आखिर सप्ता होते हुए भी सभी पुतले क्यों बने हुए है, क्या प्रधानमंत्री अब भी किसी जुगाड़ की फ़िराक में है या या फिर इंतज़ार कर रहे है की 2014 के चुनाव में इसे भी मुद्दा बना लेंगे !
ohhhhhhhhh फिर से गुस्ताखी प्रधानमंत्री कौन होते है उत्तर देने वाले उत्तर तो इटली की महारानी से पूंछना होगा ! इस समय पर इनके बारे में कुछ अच्छाइयां  भी सुनने में आ रही है "त्याग" की कहानिया !
अभी मै कुछ दिन पहले एक महाशय से मिला सरकार के कार्यकाल की बात चल रही थी , महाशय बोले "है किसी में इतनी हिम्मत जो भारतीय इतिहास का हिस्सा न बनना चाहता हो, प्रधानमंत्री पद का त्याग कोई साधारण आदमी नहीं कर सकता "! खैर मुझे बात में दम तो लगी 'त्याग' की बात तो मननी पड़ेगी लेकिन त्याग  पद का नहीं इटली का  जो इटली छोड़कर भारत में रह रहे है सच में मेरी हिम्मत तो नहीं है की मै अपने देश को छोड़ सकू !!
तो अब आप कुछ नहीं कहेगी चीन मामले में , कही ऐसा तो नहीं है इटली का मध्यस्थ बनकर भारत को भेजने का इरादा हो आपका चीन के हाथो ! ........................
समस्याये समस्याए बनी हुयी है सरकार और राजनैतिक दलो का काम है बस आरोप प्रत्यारोप ! अखिर क्या होगा  आम आदमी का आम आदमी को भी नहीं पता !
बस देखते रहो और जागते रहो !

क्या सच में 'नमो ! नमो ! नमो ! ' हो सकता है ? :अंकुर मिश्र 'युगल'

     नमो ! नमो ! नमो ! की गूंज ने जिस तरह से पूरे देश में तहलका मचा रखा है क्या वो सच में देश का उद्धार करने में सक्षम है ! नरेंद्र मोदी देश के लिए आज एक ऐसा नाम है जिसे प्रधानमंत्री बनाने के लिए लगभग सभी की मुहर लग चुकी है ! यहाँ सभी से मतलब उस अधिकतम प्रतिशतता से है जो इन्हें भारत के अगले प्रधानमंत्री के रूप में उन्हें देखना चाहते है , प्रसंशको में देखे तो इनके विपक्ष के राजनेता भी इस सख्शियत में देश का अगला प्रधानमंत्री देख रहे है ! इन सबके पीछे है केवल एक कारण गुजरात का विकास ,
गुजरात में इन्होने 'रूरल' और 'अरबन' दोनों  क्षेत्रो को ध्यान में रखकर 'ररबन' विकास की जो नीव राखी उसकी सराहना केवल भारत में ही नहीं बल्कि पुरे विश्व में हुयी ! विश्व की बड़ी सभाओ में अपने विकास के कदम बताने के लिए बुलाये जा चुके नरेन्द्र मोदी क्या सच में देश के अगले प्रधानमंत्री हो सकते है ये भाजपा से लेकर सभी पार्टियों केसामने बड़ा प्रश्न है ! देखा जाये तो खुद नरेन्द्र मोदी ने अपनी इस मुहीम के लिए प्रचार प्रसार शुरू कर दिया है ! बाबा रामदेव से मिलना , भाजपा के बड़े नेताओ को बार बार गुजरात बुलाना , कई बार दिल्ली आना , बड़ी सभाओ के राजनैतिक भाषण तो यही दिखाते है की वो खुद को वो भाजपा से अगली पंचवर्षीय के प्रधानमंत्री पद के दावेदार मान चुके है !
     लेकिन अभी भी प्रश्न अनेक है , क्या केवल उनके या आम जनता के सोचने से वो प्रधानमत्री बन जायेगे ??
उनकी राजनैतिक प्रष्टभूमि जो रही है क्या उनके प्रधानमंत्री बनाने के लिए सही   है  ? क्या देश को ऐसा प्रधानमत्री चाहिए जो देश के लिए कभी भी सांप्रदायिक हो सकते है ?
     इन सभी प्रश्नों के आलावा उनके सामने अनेक ऐसे प्रश्न भी है जिन्हें उनकी खुद की पार्टी ने खड़ा किया है , कई बार लाल कृष्ण आडवाणी ने कहा भाजपा अभी भी उनके स्वप्नों की पार्टी नहीं है , पार्टी के अन्दर ही कई राजनेता उनके प्रधानमंत्री बनाने का खिलाफ है, और खुद नरेन्द्र मोदी क्या अपने राजनैतिक गुरु लाल कृष्ण आडवानी के होते हुये प्रधानमंत्री बनना चाहेगे !





अभी कुछ समय पहले नरेन्द्र मोदी ने इण्डिया टुडे के एक सम्मलेन में कहा- जनता उन्हें बुला रही है , जनता उनसे कह रही है भारत को भी गुजरात बनाना है !
आखिर ये शब्द उन्होंने सुने कहा से , क्या राजनीती में कल्पनाओं में ही सच्चाई है ? यदि देश की जनता उन्हें बुला रही है तो वो पिछले लोकसभा चुनावो में क्यों नहीं आये !  खैर मामला कुछ भी लेकिन मामला संदिग्ध है ! जिस तरह से उन्होंने जल्दी जल्दी में ही बाबा रामदेव , आर.एस. एस. प्रमुख , भाजपा प्रमुख से नजदीकियां बढ़ने की कोशिश की है इससे तो यही लगता है उन्हें प्रधानमंत्री बनने की बहुत जल्दी है और वो इसके लिए खुद को उम्मीदवार भी घोषित कर चुके है !

अरे ये तो चिदंबरम बजट था : अंकुर मिश्र 'युगल'

ये बजट देश के लिए था, चिदम्बरम के लिए या कांग्रेस के लिए ये किसी को नहीं पता ? मेरा तो यह कहना है की बजट किसी के लिए भी हो लेकिन आम आदमी के लिए नहीं था ! जिस सरकार द्वारा वादे किये गए थे की विकास दर दहाई के अंको तक पहुचाया जायेगा उसको जनता के सामने लाने पर दहाई के अंको में सरकार खुद फसती नजर आई ! कही ये विकास दर ५-६ के अंक से घटाकर २-३ पर न पहुच जाये ! कहा जाता है इस बार के बजट में सबसे ज्यादा ध्यान छात्रो का रखा गया है लेकिन इस घटती विकास दर में सबसे जयादा भी उन्ही युवा छात्रो के रोजगार को है ! मुद्रास्फीति की बात करे तो देखते है की जिसे दस से नीचे होना चाहए अभी भी वो दस के ऊपर ही है ! मुद्रास्फीति : सरकार के द्वारा खर्च किये गए खर्चो पर निर्भर करता है ! ये दहाई की मुद्रास्फीति अभी भी यही दिखाती है की सर्कार के खर्चो में कोई कटौती नहीं हुयी है ! कटौती हुयी है तो जनसँख्या के उस महकमे में जिसमे ९० % लोग रहते है ! पिछली सरकार से ही देख रहे है किसी चीज में कटौती नहीं देखि गयी है रोजाना प्रयोग के सामान के मुल्य में बध्होत्तरी, सब्जी के मुल्य में बराबर बढ़ोत्तरी , पेट्रोल डीजल , गैस के मूल्यों में बराबर बढ़ोत्तरी , बस बढ़ोत्तरी -बढ़ोत्तरी और बढ़ोत्तरी !! और इस बढ़ोत्तरी से सबसे ज्यादा परेशां होने वाले लोगो में है वो आम आदमी जिनके पास हनकी जीविका के लिए भी पैसे नहीं होते ! उनका क्या होगा ?? निजत न तो सरकार के पास है और न ही विपक्ष के पास ! सरकार के पास इस विकास दर की कमी के कारण तो नहीं लेकिन बताने के लिए ये जरुर है की 'चीन और इंडोनेसिया की विकास दर तेजी से बढ़ रही है' ! क्या उनकी विकास दर सुनाने से हमर पेट भर जायेगा या फिर हमारी विकास दर बढ़ जाएगी ! जिस देश में गुजरात जैसे राज्य अपने आप में विकास की परिभाषा है क्या वह चीन और इंडोनेशिया को देखने की जरुरत है ! क्या देश के अन्दर ही रहकर ऐसे मुद्दों में विचार करने की जरुरत नहीं है ? कुछ भी ऐसे बजट से कांग्रेस के इंडिया ड्रीम का सपना तो पूरा होने वाला नहीं है और यदि आंगे विपक्ष भी सरकार के इस रवैये को ऐसे ही स्वीकार करती रही तो २ १ वी शताब्दी में भी उसे सर्कार बनाने का मौका नहीं मिलेगा ! विकास देश की नहीं आम आदमी की जरुरत है ! और इसमें तो अंत में यही कहा जा सकता है की ये बजट स्विस बैंक के खता धारको को ध्यान में रखकर लाया गया है , इसमे बड़े बड़े उद्योगपतियों का ही ध्यान रखा गया है ! तो इसे आम बजट कैसे कह सकते है ! ये तो चिदम्बरम बजट ही कहलायेगा न ...!!



लगता है 'ओवैसी और कसाब' की सजाओ से काफी दुखी है शाहरुख : अंकुर मिश्र 'युगल'

आज कल के दिनों में देश के नए नए जुमलों को मुद्दों के ऊपर में उठाने की जद्दोजहद बराबर चल रही है ! देश में मिडिया के पास या तो खबरे नहीं है या जो मुद्दे की खबरे है वो दिखाना नहीं चाहते ! उसी का नतीजा है देश में शिंदे जैसे ‘गुंडे’ बिना मतलब में जनता के सामने आ जाते है ! शाहरुख खान जैसे मंद-बुद्धि अपनी खोई हुयी छवि को फिर से बटोरने लग जाते है ! जिस व्यक्ति ने अपने छोटे से परिवार के बाहर निकलकर कभी भी देश के लिए कुछ नहीं किया हो ? फिर भी जिस देश ने उसे सिर पर चढ़ाकर वो छवि दी , जिसकी उसने कभी कल्पना भी नहीं की होगी ! वो व्यक्ति आज बोलता है उसे उसी समाज से खतरा है ! आखिर इस वक्तव्य का मतलब आम आदमी क्या सोचे ?? मेरे विचार से इस व्यक्ति के अंदर ओवैसी या कसाब जैसे विचार पनप रहे है ! जब उसके सामने उन व्यक्तियों का जनाजा उठा तो कुछ ख़यालात सामने आये ? उसे लगा अब तो इस देश में कुछ हो सकता है ! या फिर , क्या पाकिस्तान के उन भाइयो का ख्याल आ गया जिनके साथ मिलकर आतक फ़ैलाने का कुछ विचार हो ? वैसे भी पुरातन परम्परा है उस पाकिस्तान की , विकास के लिए भीख लेकर तबाही भेजने की ! और आप तो उस पहली हसरत में कामयाब हो चुके है पैसा देश से ले चुके है , तबाही की मुहीम में निकलने का इरादा ....................................................! और हाँ एक बात और याद आती है इस्लाम के जनक कहने वाले ‘ जाकिर नाइक’ के साथ भी आपके कभी अच्छे समबन्ध है ! यहाँ बात उन संबंधो की नहीं है बात है उनके आदर्शो की जो दूसरे धर्मो को हमेशा गलत बताते है ! क्या उनके साथ मिलकर कुछ करने का इरादा तो नहीं है ?? ये आपके वक्तव्य के बाद उत्पन्न हुए एक सामान्य भारतीय के विचार है ! हो सकता है ये बिल्कुल ही निरर्थक हो ! लेकिन ये भी हो सकता है ऊपर की किसी एक बात में एक प्रतिशत भी सच्चाई हो ! भाईसाहब देश में ‘दिलीप कुमार’, नासिर , अमजद खान, जीनत अमान, जावेद अख्तर अदि अनेक ऐसे मुस्लिम कलाकार हुए है लेकिन उन्हें कोई खतरा नहीं हुआ ! ये वो देश है जहा एक अंग्रेज महिला की पार्टी से सिख्ख व्यक्ति को चुनकर देश के मुस्लिम राष्ट्रपति द्वारा शपथ दिलाई जाती है और वो भी वहाँ के लिए जहां ८० प्रतिशत से ज्यादा केवल हिंदू रहते है ! ऐसे देश देश के अंदर एक सामान्य व्यक्ति को खतरा नहीं होता और आप कहते है आपको खतरा है ! आप को बताना होगा आखिर अपके इस बयां के पीछे ख्याल क्या आया ?? यदि यह केवल व्यंग था तो आपने अपने उस खेमे में ठोस पहुचाया है जिअकी जमीं पर अआप खड़े हो ! और अगर इस बात के पीछे कुछ मकसद है तो ..................... उसे देश जानना जोर चाहेगा !! एक ऐसा व्यक्ति जो अपनी फिल्मो के माध्यम से देश में प्यार की भावना फैलता है उसका वक्तव्य आता है की उसे देश के अंदर ही खतरा है ! आखिर क्यों ? यहाँ इस क्यों के पीछे प्रश्न तो कई है लेकिन उत्तर तो खुद वही दे सकते है !!

वंशवाद से नहीं विकासवाद से चलता है देश : अंकुर मिश्र 'युगल'

आखिर कुछ आच्छा दिखने लगा भाजपा में, एक बुरे दौर से गुजर रही भाजपा ने लोकसभा चुनाव के पहले कुछ अनोखे पहलुओ पर काम करते हुए देश को दिखा दिया की ये किसी परिवारवाद पर चलने वाला दल नहीं है ! वास्तव में जिस देश में दो दलों की ही सरकारी दावेदारी रहती हो , और उसमे भी एक दल ऐसा है जिसे लोकतान्त्रिक दल खा भी नहीं जा सकता ! कांग्रेस, जो अपने आप को देश का सबसे बड़ा दल कहता है और आजादी के बाद सबसे ज्यादा शासन किया है लेकिन मेरे अनुसार यह एक ऐसा दल है जिसने देश में सबसे ज्यादा कुशासन किया है और देश की आजादी के बाद की सभी लड़ाइयाँ गवाह है, पाकिस्तान गवाह है की इस बड़े दल ने देश को क्या दिया है ? एक लोकतान्त्रिक दल में राजतन्त्र जैसा माहौल पैदा करके इस दल ने जिस तरह से तानाशाही भरा शासन किया है, वह अनदेखा नहीं है ? एक दल जिसकी बागडोर हमेशा एक परिवार के हाथो में रही, पार्टी में अनेक महान नेताओ के होते हुए बड़े पदों पार हमेशा ऐसे राजनेताओ को बैठाया गया जिन पर गाँधी परिवार खुद शासन कर सके , मनमोहन सिंह जिसका सबसे बड़े उदहारण है ! पार्टी में अनेक ऐसे बड़े नेताओ के होते हुए ‘राहुल गाँधी’ उपाध्यक्ष का पद दिया जाना और अध्यक्ष का पद खुद सोनिया गाँधी के पास होना किसी लोकतान्त्रिक दल को नही दिखाता, पार्टी में जयराम रमेश, शशि थरूर अवं अनेक ऐसे युवा नेता है जो देश को राहुल गाँधी या गाँधी परिवार से अच्छा चला सकते है लेकिन उन्हें इस दल में ऐसे पद न मिलना किसी तानाशाही को ही दिखा सकता है ! वही देश में दूसरी तरफ एक ऐसा दल है जो अपनी आपसी लड़ाइयो से ही जूझता रहता है, दल मेंकुछ अच्छाइयां है जो इसे कांग्रेस से अलग करती है पहली बात पार्टी में किसी वंशवाद का न होना देश के सभी धर्मो के लोगो को पड़े पदों में बैठालना. इसी दल ने देश को अटल बिहारी बाजपेई जैसे प्रधानमंत्री व् आब्दुल कलम जैसे राष्ट्रपति दिए है ! पड़े पदों में उस व्यक्ति को बैथालना जो उपयुक्त है ! आभी वर्तमान में नितिन गडकरी को हटाकर राजनाथ सिंह को अध्यक्ष बनाना इस बात को ही दिखता है को भाजपा केवल आर. एस . एस. के इशारों पर नहीं चलत और जारुरत पडने पर उसका साथ भी नहीं छोडती ! यह भाजपा का समर्थन नहीं था बल्कि वह सच्चाई थी जिसे देश बराबर नजरंदाज कर रहा है, जानते हुए भी अपना भला करने में असमर्थ है ! एक विकाशशील देश को दशको से वही पर खड़ा किये है ! देश वंशवाद , जातिवाद , आरक्षण, भरष्टाचार से नहीं चलता देश बढ़ता है विकास से और हम विकास नहीं निकास कर रहे है एक साच्ची बात से !

ओवैसी प्रश्न तो बहुत है , सामने होता तो जरुर पूंछता : अंकुर मिश्र ‘युगल


‘ओवैसी’ के पागलपन को आखिर हिंदुस्तान किस तरह स्वीकारे ? वह व्यक्ति जिसे जनता के बहुमत से सरकार का हिस्सा बनाया गया है उसके वक्तव्यों को १२५ करोड़ की जनता किस रूप में स्वीकारे !
उसने देश के हिन्दुओ को ही अनादरित नहीं किया उसने तो उन सच्चे मुसलमानों का भी आपमान किया है जिनका मुस्लिम धर्म खुद सिखाता है दूसरे धर्मो की इज्जत करना !
और कब तक इरादा है बातचीत से काम चलने का , एक तरफ शांति का के लिए क्रिकेट मैच होता है वही दूसरी ओर भारतीय सिम के अंदर घुसकर अपनी नामर्दानगी की ताजपोशी करता है हमारा पडोसी देश ! हमने जिसे हमेशा अपनी मौसी का दर्जा दिया है, हमने जिस देश की हरकतों को हमेशा नासमझ समझकर माफ़ किया , जिसके लिए हमेशा हमने शांति का पथ पढ़ा है आज वही भाई फिर से अपनी तुच्छ हरकतों पर उतर आया है ! सोते हुए सैनिको को मारना कही की मर्दानगी या जज्बा नहीं होता ! जज्बा दिखाना है तो बोलकर देखो एक बार ! हम शांत है ये हमारी सराफत है , कमजोरी नहीं ! वाही दूसरी तरफ हमारी ही मिट्टी में रहकर हमें ही दोषी ठहराने वाले उस ओवैसी के लिए तो कसाब की सजा भी कम है ! वैसे तो हमने कभी जताया नहीं है फिर भी यदि जबाब सुनने का मन है तो देश १०० करोड़ हिंदू नहीं बल्कि एक सच्चे दिल के मुस्लमान से ही पूंछ लो नासमझ ‘ओवैसी’ वो तुम्हे बता देगा की तुम्हारा खुद का धार्मिक स्टार कितना गिरा हुआ है !
तुम किस कसाब के लिए बात कर रहे हो जो खुद को दोषी ठहरा चूका था !
१०० करोड़ हिन्दुओ का मुकाबला तुम २५ करोड़ मुसलमानों से करोगे ?? अरे पहले अपने उन २५ करोड़ मुसलमानो से तो पूंछ लो क्या वो तुम्हारे साथ है ? चंद किराये के टट्टुओ को इकठ्ठा करके तालियाँ बजवाना शक्ति प्रदर्शन नहीं होता !
ओवैसी तू हिन्दुओ के भागवानो की बात करता है, यही हजारों भागवान तेरे २५ करोड मुसलमानों की जीविका बनाते है ! खैर तू इतना समझदार नहीं है अपने उन भाहियो की भावनाओ को समझ सके !
तू बाबरी मस्जिद की बात करता है ? तू ताजमहल की बात करता है ? तू लालकिला, जामा-मस्जिद यहाँ से लेकर जायेगा ? ............... क्या ये सब करने में तेरे साथ और कोई होगा ?
ऐसे ही अनेक प्रश्न है तुझसे , तू सामने होता तो एक पत्रकार और लेखक की हैसियत से जरुर पूंछता ! दिल में एक और तमन्ना है यदि तू सामने होता तो हिन्दुस्तानी होने के नाते एक ‘थप्पड़’ जरुर लगाता, ये एक हिंदू होने के नाते नहीं होता बल्कि ये एक मानुषी होने के नाते होता ! शायद उससे एक जानवर रूपी शारीर में कुछ फर्क पड़ता !

धार्मिकता या शर्मिंदगी : अंकुर मिश्र ‘युगल’

धार्मिकता या शर्मिंदगी ?? जब देश एक गंभीर समस्या से गुजर रहा है जहां एक बेबस और लचार लड़की ने अपनी जान गवाई, जिसके लिए कानून और सरकार सुधार के रास्ते ढूड रहे है ! देश के हर कोने में प्रार्थना सभाए हो रही है की भविष्य में ऐसी दरिंदगी न हो ! एक लड़की को कुछ दरिदे घेरकर देश के सामने एक दरिन्दागी की नीव रखते है जो पुरे देश के लिए शर्मनाक है ! सभी ऐसे कामो के न होने की प्रार्थना करते है और उन दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने की पेशकस करते है ! खुद देश के पूर्व न्यायधीश ने कहा की ‘अपराध सजा देने से कम होते है सजा की कठोरता बढ़ाने से नही’ , और यह सत्य भी है एक महीना से ऊपर होने वाला है इस अत्याचार को लेकिन अभी तक उन दरिंदों को कोई सजा नहीं मिली है ! लेकिन इस बिच अनेक ऐसे बलात्कार के मामले सामने आये जो दिल दहला देने वाले थे ! आखिर इसका मतलब क्या समझा जाये, उस नादान की मौत का कुछ भी असर नही हुआ इन हैवानो पर या फिर वो ये दिखाना चाहते है की हमारे देश की कानून व्यावस्था कितनी लाचार है ! लोग कहते है
“ वो तो सो गयी , लेकिन हमें जगा गयी”
तो वो जाग्रति कहा है ? इसके आलावा देश के धार्मिक और हिंदुत्व के पालनहर काह्लाने वाले बापू आशाराम और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मोहन भागवत के वक्तव्यों को क्या समझा जाये जो इस समस्या का समाधान का हिस्सा न बनकर बल्कि उस लड़की को दोषी ठहरा रहे है ! आखिर इन ढोगियो को अध्यात्म गुरु की संज्ञा ही क्यों दी जाती है देश हित में बात नहीं कर सकते तो कम से कम अहित की बात तो न करे ! आखिर उनकी सोच का नजरिया क्या है ?? जिस लड़ाई में समाज की सबसे ज्यादा भूमिका होनी चाहिए उस समाज के सब्भ्रांत लोग ही ऐसे वक्तव्य देते है , इनकी जिम्मेदारी का सूचक है या मानसिक असंतुलन का ! कुछ भी हो देश की इस अहम लड़ाई में समाज की जागरूपता सबसे ज्यादा जरुरी है और दूसरा यह की इन मानसिक असंतुलित ढोगियो को नसीहत देने की जरुरत नहीं है !
अब तक लड़े है , अब भी लड़ेगे ! कल तक खड़े थे , आज भी खड़े है ! अब नहीं है वो तो क्या हुआ ? उसकी शक्तियां हम पर है दुआ !!