''सत्य और साहित्य'' : 'अंकुर मिश्रा' की हिंदी रचानाएँ (कहानियाँ और कवितायेँ )
वालमार्ट के पास है दो ही विकल्प , रुकेगा या लूटेगा : अंकुर मिश्र "युगल"
इतिहास गवाह है भारत में जितने भी विदेशी आये है उनके पास केवल दो ही विकल्प थे : उन्होंने या देश को लूटा है या फिर यही पर बस गए है ! मुग़ल शासको ने देश में आक्रमण किया लेकिन उनकी नीति देश को लुटाने की कभी नहीं थी, उन्होंने यही बसकर अपने परिवार के साथ जीवन यापन किया ! लेकिन वाही यदि हम अंग्रेजो के शाशन काल में नजर डाले तो विपरीत था , उन्होंने देश में आना इसलिए उचित समझा क्योंकि हम सोने की चिड़िया थे और हमें खोखल करना उनका लक्ष्य था जो उन्होंने किया और बाद में किसी अंग्रेज शासक ने ये भी लिख दिया की हम तो मुठ्ठी भर लोग आये थे भारत से एक् पत्थर ही कफी था हमें भागने के लिए, लेकिन अब कोई क्या कर सकता है उस अंग्रेज का और हमारे जैसे भारतवासियों का जो उन नेताओ के गुलाम बनकर बैठ जाते है जीनको वो खुद चुनकर भेजता है !
जिस तरह से किसी समय में पेप्सी और कोक ने देश में पदार्पण किया था और हम नेताओ की सुनते रहे थे और हसते हसते आज गुलाम बन बैठे है इसी तरह हो सकता है वालमार्ट भी एक् दिन हमारा राजा बन बैठे लेकिन ऐसी केवल कल्पना की जा सकती है !
हमारे नेताओ में संसद में जिस तरह से वालमार्ट को लेन की जद्दोजहद की वो वास्तवमें सराहनीय है, विरोध करने वालो की कुतर्क और पक्ष में होने वालो के तर्क अब तक जनता के समझ में नहीं आये ! जिस वालमार्ट को जनता के लिए लाया जा रहा है उस जनता से तो एक् भी बार नहीं पूंछा गया की ये आना चाहिए या नहीं ! राज्यसभा और लोकसभा के अंदर आपस में आंखमिचौली खेलकर एक् और प्रधितना की जंजीर जकड दी नेताओ ने देश पर !
और सबसे सरल बात तो यह है की ईस्ट इण्डिया कंपनी ने कोलकता से पदार्पण किया था तो उसे दिल्ली तक आने में समय लगा लेकिन इस वालमार्ट का पदार्पण तो दिल्ली से ही हो रहा है तो उसे तो और सरलता होगी अपने लक्ष्यों को पाने में ! वो चाहे तो देश में रुक सकता है या फिर लूट कार यहाँ से जा सकता है ! भारत के अंदर अभी तक व्यापारिक कंपनियों ने दो ही रवैये अपनाए है, अब सोचना वालमार्ट को है !
अभी एक् नए दल आम आदमी के मुखिया ने कहा की वालमार्ट के लिए जन-मत होने चाहिए, उन्हें तो जनता के बारे में यही सोचना चाहिए जिस देश में कसाब और अफजल गुरु जैसे आतंकवादी को सालो तक मेहमान बनाकर रखा जाता है , भ्रष्टाचार को रोकने लिए कोई कड़ा कानून नहीं होता, पेप्सी और कोक जैसी बाहरी कंपनियों का शाशन होता है वहाँ इस वालमार्ट के लिए कैसा जनमत !
यहाँ तो यह कहना अनुचित नहीं होगा की जनता का जनमत केवल एक् दिन होता है चुनाव में और उसी दिन उसकी कीमत होती है उसके बाद या पहले जनता केवल और केवल नेताओ की नौकर(सेवक) होती है! इस देश में कैसा जन-मत ! यहाँ आज जन-मत की कीमत होती तो क्या करोड़ो के घोटाले करने वाले कलमाड़ी , यदुरप्पा जैसे नेता जिन्दा होते है ! जनता का काम है सर्कार द्वारा थोपे गए कानूनों पर अम्ल करना ! उनके द्वारा आपस में आरक्षण औअर क्षेत्रवाद की राजनीती में हिस्सा लेना बस !
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