नेता जी “Walks Out” या “Bunk”? : अंकुर मिश्र "युगल"

हम सभी ने स्कूल और कालेजो में “class bunks” तो खूब की होगी कभी इनसे कुछ फायदे हुए होगे और कभी नुकसान लेकिन वो उस स्तर पर भी ठीक नहीं था, ऐसा करने से खुद पर कुछ असर पद हो या न लेकिन उस कार्य से जुड़े अनेक लोगो को जैसे “कालेज प्रोफ़ेसर”, “माता-पिता”, और अन्य अनेक लोगो को कुछ न कुछ फर्क जरुर पड़ा होगा !! लेकिन उस बात पर हम ध्यान नहीं देते क्योंकि वो एक बचपना था और उससे यदि किसी पर सबसे ज्यादा फर्क पड्त था तो वो हम खुद दे !!


लेकिन आज देश के संचालक जब हमारे पैसे से बनी “विधानसभाओ” और “लोकसभा” का अपमान करते है और प्रतिदिन किसी न किसी बहाने से “walks-Out” करते है क्या वो सही है ????
किसी बेतन पर कार्य करने वाले साधारण सख्श के लिए भी कार्य करने की कुछ न कुछ समय सीमा होती है उसे सप्ताह में ५-६ दिन कार्य करने पड़ता है ! लेकिन क्या हमारे देश के मंत्रियो के पास इतना भी काम नहीं है की वो प्रतिदिन घूमने और “Bunk” करने में व्यस्त रहे !
इनका वार्षिक कार्यकाल तो पहले से ही कुछ महीनो का होता है और जो होता है उसमे भी ये अधिकतर समय “walks Out” में रहते है और बहाने होते जनता के तमाम “बिल” !!! अरे जनता का इतना ही ख्याल है तो उस संसद भवन या विधान सभा में बैठकर उस पर बहस करिये न !!
उस बिल की कमियों और अच्छाइयों पर बात करिये न ! उसे जनता के पक्ष में और अच्छा बनाने का प्रयास करिये न ! एक बार ये सोच कर इस पर सोचिये की जो मासिक बेतन आपको दिया जाता है वो किस लिए है, जिन गाडियों में आप घूमते है उसमे “तेल” किसके पैसो का होता है, जिस पड़ को लेकर इतना गुमार है उसे किसने दिया है !!
ये किसी विशेष पार्टी या विशेष व्यक्ति के लिए नहीं बल्कि देश किकी हार उस पार्टी और सदस्य के लिए है जो संसद या विधानसभाओ से किसी भी तरह से जुड़े है ! “पक्ष हो या विपक्ष” दोनो को इस पर सोचने की जरुरत है !!
वर्तमान राजनीती का तो ये हाल है की “पक्ष और विपक्ष” दोनों अपने को दो देशो में रखकर किसी मुद्दे पर बात करते है, जनलोकपाल की बात क्यों करे क्योंकि इसका समर्थन विरोधी पार्टियां कर रही है, वही दूसरी ओर एफडीआई की बात क्यों करे क्योंकि इसका समर्थन सरकार कर रही है ! हमारे महान नेता बस इसी सुविचार में लगे हुए है वो भूल चुके है जिसके काम से वो वहाँ है जिसने उन्हें वहाँ भेजा है, “वो जनता है” !!
इस संसद के “walks-out’ की सबसे बड़ी जिम्मेदार “विपक्षी” पार्टियां है, सरकार तो हमेशा अपनी सोच को ही अंगे बढाना चाहेगी लेकि विपक्ष को भी अपने अधिकार मिले हुए है !
क्या बात न करने से कुछ हल निकल सकते है ? क्या बहस न होने से कोई बिल पास हो सकता है ?
मेरे हिसाब से तो नहीं और होगा भी तो किसी विशेष समूह के अनुसार !
वर्मन की इस प्रणाली को देखते हुए लगता है की संसद और स्थानीय विधान-सभाओ की कार्य करने की प्रणाली में कुछ परिवर्तन आवश्यक है ऐसा करने से देश की दिशा और दशा में दोनों में परिवर्तन आयेगा, महीनो से पड़े “बिलो” में बात होगी, व्यक्तिगत मंत्रिपद की कार्यप्रणाली में बात होगी और अन्य ऐसे कार्य होगे जिनकी आज आवश्यकता है ! जिस तरीके से साधारण व्यक्ति की प्रतिदिन की कार्य की कुछ समय सीमा होती है उसी तरह से “इनके भी कार्य करने की कुछ समय सीमा होनी चाहिए !
यदि दिन में “walks-Out” करें तो रत में अतिरिक्त समय निकालकर इनसे कार्य करवाया जाये !
आखिर ये देश के संचालक है इनके द्वारा पास कराये गए विधेयकों से देश चलता है जनता के लिए “नियम” होते है वो ! इतने बड़े कार्य को इतनी आसानी से कैसे कर सकते है हमारे , हमारे द्वारा चुने गए, हमारे पैसो से पल रहे हमारे “राजनेता”, कुछ “साधारण” से ज्यादा तो करना ही पड़ेगा इन्हें !!