वैसे तो रोजाना सैकड़ो मांगने वाले दिख जाते थे, जो मेट्रो में जाते वक्त और निकलते वक्त हमेशा एक ही जगह पर मिलते थे ! उनमे कुछ महिलाएं होती थी, कुछ बूढ़े होते थे, कुछ अपाहिज होते थे जो अपनी जीविका के लिए कुछ न कुछ मंगाते रहते थे !
मगर सब के साथ कोई बच्चा या मांगने कारण होता था जिसे दिखाकर वो लोगो से कुछ मांग करते थे ! वैसे मैंने इनमे से कभी ही शायद किसी को पैसे दिए हो लेकिन खाने का सामान या पानी कई बार दिया होगा ! और देने के साथ ही मेट्रो के अन्दर चला जाता था या बाहर आ जाता था !
आज अक्षरधाम मेट्रो में बाहर निकलते ही, जैसे मई ओवर ब्रिज पर आया तो एक करीब ७-८ साल का बच्चा बैठा खाने के लिए पैसे मांग रहा था, नजर उस पर पड़ी और ठहर सी गयी, मानो को जानने वाला मिल गया हो और पूरे शरीर में एक तेज झटका सा लगा ! थोड़ी देर बाद जब नजर हटी तो अचानक से दिमाग में घूमा एक बच्चा जिसकी उम्र पढने की है, खेलने की है, खाने की है घूमने की है वो यहाँ बैठा क्या मांग रहा है ! ऐसा लड़का जिसके दिमाग में तेज झलक रहा था वो इस बात की ट्रेनिग ले रहा है की लोगो से भूख के लिए "भीख" कैसे मांगे ? कैसे बैठू की लोग पैसे दे दे ? कौन से तरीके से मांगू की लोग खाना दे दे? किससे मांगू की वो पानी दे दे ! वैसे तो लोग बड़ी बड़ी फिल्मे देखकर गरीबो की चुटकी में मदद करने की सोच लेते है मगर वो सोच बाहर कौन नकाल सकता है ऐसे आदमी को वो कैसे पहिचाने इस प्रशिक्षण में वो लगा हुआ है ........... :(
कुछ देर सोचने के बाद कुछ बात करने की इच्छा हुयी फिर सोच इसे बुलाऊ क्या .....? नाम पता नहीं है ! फिर कुछ सोचते हुए मैंने कहा -"छोटू" तो वो छोटे बच्चा सहम सा गया, उससे शायद ही किसी ने पूछा हो या बात की हो उसके पास लोग एक- दो रुपये फेकते और घूरकर निकल जा रहे थे... तो वो डरा हुआ बोला हाँ !
शायद ममता का भूखा था और परिवार से दूर या परिवार था ही नहीं...
अब दिल में था इससे पूंछू क्या मैंने भी बड़ी हिम्मत करके पूंछा "छोटू ये सब क्यों ? घर में कोई नहीं है क्या ?............."
फिर से छोटू का जबाब डरते हुए आया "पता नहीं", उत्तर कठोर था मगर उत्तर में बच्चे का "क्रोध, डर, परेशानियाँ, भूख, प्यास..." सब कुछ झलक रहा था! तभी मैंने मेरे बैग में राखी बोतल का पानी उसे दिया और एक आधा परले बिस्कुट का पैकेट पड़ा था जो मैंने उसे खाने को दिया पहले उसने मन किया मगर फिर खा लिया !
मुझे उत्सुकता थी की मई जानू आखिर छोटू यहाँ क्यों है, फिर उसने जैसे ही पानी पिया मैंने फिर से अपना प्रश्न रख दिया : "छोटू यहाँ क्यों बैठे हो, पढाई नहीं कर सकते, घर वाले कहा है................".
फिर से उसके मन में दर था मगर कुछ कम, मगर इस बार प्रश्न को सुनते ही उसकी आँखों में अंशू आ गए और फिर डरता हुआ बोला-
"एक ढाबा में काम करता था, वहन खाना नहीं मिलता था इसलिए भैया, भूखा लगती है तेज...... "
इस उत्तर के पीछे क्या था ये नहीं पता, लेकिन उसके उत्तर में सच्चाई थी जो उसके चहरे में झलक रही थी इसलिए मैंने इस बारे में ज्यादा न पूंछकर, मैंने घर के बारे में फिर से पूंछ लिया:
उस पर छोटू बोला : नहीं पता, बचपन से एक औरत के साथ था जो उस ढाबे में काम करती थी मगर २ साल पहले वो भी नहीं रही इसलिए वो भटक रहा है"
"कहा से है" नहीं पता...
इस १५ मिनट के वक्त के बाद मैंने उसे एक २० रुपये की भेलपूरी दिलायी और उसका साथ छोड़कर अपने घर की तरफ चला आया...
अब रस्ते में हजार प्रश्न थे मेरे दिमाग में...
आखिर ये छोटू कहा आया ?
आखिर छोटे बच्चो को काम करने की जरुरत क्यों पड़ती है ?
भीख मांगना तो दूर वो उस ढाबे में काम क्यों कर रहा था ?
बच्चे इमारतो के नीचे गाड़ी धोते क्यों दिख जाते है ?
आदि अनेक प्रश्न है जो अब तक दिमाग में घूम रहे है?
क्या इनकी जिंदगी नहीं है ? घर में माँ-बाप नही है तो जीने का हक़ नहीं है ? घर नहीं है तो जीने का हक़ नहीं है ? नौकर है तो जीने का हक़ नहीं है ? आप[की गाढ़ी धोते है तो जीने का हक़ नहीं है ? आपको चाय का ग्लास देते है तो जीने का हक़ नहीं है ?
इन पर भरोसा करो, इन्हें भी बड़ा होने दो !
किस बात का दर है कही ये आपसे आगे न निकल जाये ?
मगर सब के साथ कोई बच्चा या मांगने कारण होता था जिसे दिखाकर वो लोगो से कुछ मांग करते थे ! वैसे मैंने इनमे से कभी ही शायद किसी को पैसे दिए हो लेकिन खाने का सामान या पानी कई बार दिया होगा ! और देने के साथ ही मेट्रो के अन्दर चला जाता था या बाहर आ जाता था !
आज अक्षरधाम मेट्रो में बाहर निकलते ही, जैसे मई ओवर ब्रिज पर आया तो एक करीब ७-८ साल का बच्चा बैठा खाने के लिए पैसे मांग रहा था, नजर उस पर पड़ी और ठहर सी गयी, मानो को जानने वाला मिल गया हो और पूरे शरीर में एक तेज झटका सा लगा ! थोड़ी देर बाद जब नजर हटी तो अचानक से दिमाग में घूमा एक बच्चा जिसकी उम्र पढने की है, खेलने की है, खाने की है घूमने की है वो यहाँ बैठा क्या मांग रहा है ! ऐसा लड़का जिसके दिमाग में तेज झलक रहा था वो इस बात की ट्रेनिग ले रहा है की लोगो से भूख के लिए "भीख" कैसे मांगे ? कैसे बैठू की लोग पैसे दे दे ? कौन से तरीके से मांगू की लोग खाना दे दे? किससे मांगू की वो पानी दे दे ! वैसे तो लोग बड़ी बड़ी फिल्मे देखकर गरीबो की चुटकी में मदद करने की सोच लेते है मगर वो सोच बाहर कौन नकाल सकता है ऐसे आदमी को वो कैसे पहिचाने इस प्रशिक्षण में वो लगा हुआ है ........... :(
कुछ देर सोचने के बाद कुछ बात करने की इच्छा हुयी फिर सोच इसे बुलाऊ क्या .....? नाम पता नहीं है ! फिर कुछ सोचते हुए मैंने कहा -"छोटू" तो वो छोटे बच्चा सहम सा गया, उससे शायद ही किसी ने पूछा हो या बात की हो उसके पास लोग एक- दो रुपये फेकते और घूरकर निकल जा रहे थे... तो वो डरा हुआ बोला हाँ !
शायद ममता का भूखा था और परिवार से दूर या परिवार था ही नहीं...
अब दिल में था इससे पूंछू क्या मैंने भी बड़ी हिम्मत करके पूंछा "छोटू ये सब क्यों ? घर में कोई नहीं है क्या ?............."
फिर से छोटू का जबाब डरते हुए आया "पता नहीं", उत्तर कठोर था मगर उत्तर में बच्चे का "क्रोध, डर, परेशानियाँ, भूख, प्यास..." सब कुछ झलक रहा था! तभी मैंने मेरे बैग में राखी बोतल का पानी उसे दिया और एक आधा परले बिस्कुट का पैकेट पड़ा था जो मैंने उसे खाने को दिया पहले उसने मन किया मगर फिर खा लिया !
मुझे उत्सुकता थी की मई जानू आखिर छोटू यहाँ क्यों है, फिर उसने जैसे ही पानी पिया मैंने फिर से अपना प्रश्न रख दिया : "छोटू यहाँ क्यों बैठे हो, पढाई नहीं कर सकते, घर वाले कहा है................".
फिर से उसके मन में दर था मगर कुछ कम, मगर इस बार प्रश्न को सुनते ही उसकी आँखों में अंशू आ गए और फिर डरता हुआ बोला-
"एक ढाबा में काम करता था, वहन खाना नहीं मिलता था इसलिए भैया, भूखा लगती है तेज...... "
इस उत्तर के पीछे क्या था ये नहीं पता, लेकिन उसके उत्तर में सच्चाई थी जो उसके चहरे में झलक रही थी इसलिए मैंने इस बारे में ज्यादा न पूंछकर, मैंने घर के बारे में फिर से पूंछ लिया:
उस पर छोटू बोला : नहीं पता, बचपन से एक औरत के साथ था जो उस ढाबे में काम करती थी मगर २ साल पहले वो भी नहीं रही इसलिए वो भटक रहा है"
"कहा से है" नहीं पता...
इस १५ मिनट के वक्त के बाद मैंने उसे एक २० रुपये की भेलपूरी दिलायी और उसका साथ छोड़कर अपने घर की तरफ चला आया...
अब रस्ते में हजार प्रश्न थे मेरे दिमाग में...
आखिर ये छोटू कहा आया ?
आखिर छोटे बच्चो को काम करने की जरुरत क्यों पड़ती है ?
भीख मांगना तो दूर वो उस ढाबे में काम क्यों कर रहा था ?
बच्चे इमारतो के नीचे गाड़ी धोते क्यों दिख जाते है ?
आदि अनेक प्रश्न है जो अब तक दिमाग में घूम रहे है?
क्या इनकी जिंदगी नहीं है ? घर में माँ-बाप नही है तो जीने का हक़ नहीं है ? घर नहीं है तो जीने का हक़ नहीं है ? नौकर है तो जीने का हक़ नहीं है ? आप[की गाढ़ी धोते है तो जीने का हक़ नहीं है ? आपको चाय का ग्लास देते है तो जीने का हक़ नहीं है ?
इन पर भरोसा करो, इन्हें भी बड़ा होने दो !
किस बात का दर है कही ये आपसे आगे न निकल जाये ?