धार्मिकता या शर्मिंदगी ??
जब देश एक गंभीर समस्या से गुजर रहा है जहां एक बेबस और लचार लड़की ने अपनी जान गवाई, जिसके लिए कानून और सरकार सुधार के रास्ते ढूड रहे है ! देश के हर कोने में प्रार्थना सभाए हो रही है की भविष्य में ऐसी दरिंदगी न हो ! एक लड़की को कुछ दरिदे घेरकर देश के सामने एक दरिन्दागी की नीव रखते है जो पुरे देश के लिए शर्मनाक है ! सभी ऐसे कामो के न होने की प्रार्थना करते है और उन दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने की पेशकस करते है ! खुद देश के पूर्व न्यायधीश ने कहा की ‘अपराध सजा देने से कम होते है सजा की कठोरता बढ़ाने से नही’ , और यह सत्य भी है एक महीना से ऊपर होने वाला है इस अत्याचार को लेकिन अभी तक उन दरिंदों को कोई सजा नहीं मिली है ! लेकिन इस बिच अनेक ऐसे बलात्कार के मामले सामने आये जो दिल दहला देने वाले थे ! आखिर इसका मतलब क्या समझा जाये, उस नादान की मौत का कुछ भी असर नही हुआ इन हैवानो पर या फिर वो ये दिखाना चाहते है की हमारे देश की कानून व्यावस्था कितनी लाचार है !
लोग कहते है
“ वो तो सो गयी , लेकिन हमें जगा गयी”
तो वो जाग्रति कहा है ?
इसके आलावा देश के धार्मिक और हिंदुत्व के पालनहर काह्लाने वाले बापू आशाराम और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मोहन भागवत के वक्तव्यों को क्या समझा जाये जो इस समस्या का समाधान का हिस्सा न बनकर बल्कि उस लड़की को दोषी ठहरा रहे है ! आखिर इन ढोगियो को अध्यात्म गुरु की संज्ञा ही क्यों दी जाती है देश हित में बात नहीं कर सकते तो कम से कम अहित की बात तो न करे ! आखिर उनकी सोच का नजरिया क्या है ??
जिस लड़ाई में समाज की सबसे ज्यादा भूमिका होनी चाहिए उस समाज के सब्भ्रांत लोग ही ऐसे वक्तव्य देते है , इनकी जिम्मेदारी का सूचक है या मानसिक असंतुलन का ! कुछ भी हो देश की इस अहम लड़ाई में समाज की जागरूपता सबसे ज्यादा जरुरी है और दूसरा यह की इन मानसिक असंतुलित ढोगियो को नसीहत देने की जरुरत नहीं है !
अब तक लड़े है , अब भी लड़ेगे !
कल तक खड़े थे , आज भी खड़े है !
अब नहीं है वो तो क्या हुआ ?
उसकी शक्तियां हम पर है दुआ !!