‘सचिन और आडवाणी’ दोनों को जरुरत है सन्यास की : अंकुर मिश्र ‘युगल’

देश को अपने-अपने क्षेत्र में महान उपलब्धिय दिलाने वाले दो महानायक सचिन और अडवाणी, आज प्रत्येक देशवाशी के लिए समस्या बने हुए है ! क्रिकेट के लिए उपलब्धियां की मशाल रचने वाले सचिन ने देश के लिए जो क्रिकेट में योगदान दिया है वह वास्तव में सराहनीय है ! एक् १६ साल के लड़के ने जिस तरह से क्रिकेट में आकर देश को वो उपलब्धि प्रदान की जिसके लिए टीम तरश रही थी, इसके पहले टीम में गावस्कर , कपिल देव और बिशन सिंह बेदी जैसे खिलाड़ी तो थे लेकिन इन सबके बावजूद क्रिकेट में भारत का विश्वमानचित्र में कोई आस्तित्व नहीं था, खिलाड़ी तो खेलते थे लेकिन जीतने के लिए नहीं, केवल हार से बचने के लिए ! लेकिन इस महानायक के आते ही विश्व के गेंदबाजों के छक्के छूट गये ! टीम ने २००७ में २०-२० विश्वकप जीता, २०११ में विश्वकप जीता और हजारों के तादात में रन बना डाले, इनके हर रन के साथ एक् नया रिकार्ड बन जाता है ! लेकिन अब इस बल्लेबाज का पदार्पण उस उम्र में हो चूका है, जिस पर किसी भी क्रिकेटर का खेलना नाजायज है , आलोचक प्रतिदिन नए-नए शब्द ढूढते है, और सत्य भी है विश्व के किसी भी क्रिकेटर ने इस उम्र तक क्रिकेट नहीं खेला, और इसीलिए जरूरत है इस महानायक को सन्यास लेने की जिसके बाद टीम में युवाओ को मौका मिल सके ! वही दूसरी ओर है राजनीती के महानायक लाल कृष्ण आडवानी, जिन्होंने जनता पार्टी को तब संभाला जब भारतीय राजनीती में इस पार्टी का कोई अस्तित्व भी नहीं था , कोई भी इसे स्वीकारने को तैयार नहीं था, नब्बे के दसक में इस पार्टी को लोकसभा चुनाव में २ सीटे ही मिल पाई, लेकिन अगले ही चुनाव में जिस तरह से आडवाणी का हिंदुत्व का जादू चला, ऐतिहसिक है ! इनके पहले पार्टी में नेता तो थे लेकिन उनका आस्तित्व नहीं था , राममंदिर का मुद्दा केवल मुद्दा बना हुआ था, इस महानायक ने हिंदुत्व के लिए जो जागरूपता देश भर में लायी वो वास्तव में सराहनीह है ! उनकी रथ यात्रा में वो जादू चला की अगले ही चुनाव में पार्टी ने इतिहास रच डाला, और देश को अटल बिहारी बाजपेयी जैसे प्रधानमंत्री दिए ! लेकिन वो अभी भी प्रधानमंत्री के प्रतीक्षा सूचि में है और भाजपा के भावी प्रत्यासी बने हुए है ! पार्टी में सुषमा स्वराज , अरुण जेतली और नरेन्द्र मोदी जैसे भावी नेता है लेकिन इन सबके बावजूद इस पार्टी में आज की जो खलबली है, वो पार्टी के भविष्य में खिलाफ है ! समस्या एक् है इस महानायक जिनकी उम्र ८० वर्ष से ज्यादा है और फिर भी पार्टी को जकडे हुए है ! समस्या दोनों के साथ एक् जैसी है, हिंदुत्व के महानायक और क्रिकेट के बादशाह दोनों की उपलब्धियों को नकारा नहीं जा सकता पर आज के आज की जरुरत है दोनों के सन्यास की ! इनका सन्यास ही आज के भारतीय क्रिकेट और भाजपाई राजनीती का हल हो सकता है !

वालमार्ट के पास है दो ही विकल्प , रुकेगा या लूटेगा : अंकुर मिश्र "युगल"

इतिहास गवाह है भारत में जितने भी विदेशी आये है उनके पास केवल दो ही विकल्प थे : उन्होंने या देश को लूटा है या फिर यही पर बस गए है ! मुग़ल शासको ने देश में आक्रमण किया लेकिन उनकी नीति देश को लुटाने की कभी नहीं थी, उन्होंने यही बसकर अपने परिवार के साथ जीवन यापन किया ! लेकिन वाही यदि हम अंग्रेजो के शाशन काल में नजर डाले तो विपरीत था , उन्होंने देश में आना इसलिए उचित समझा क्योंकि हम सोने की चिड़िया थे और हमें खोखल करना उनका लक्ष्य था जो उन्होंने किया और बाद में किसी अंग्रेज शासक ने ये भी लिख दिया की हम तो मुठ्ठी भर लोग आये थे भारत से एक् पत्थर ही कफी था हमें भागने के लिए, लेकिन अब कोई क्या कर सकता है उस अंग्रेज का और हमारे जैसे भारतवासियों का जो उन नेताओ के गुलाम बनकर बैठ जाते है जीनको वो खुद चुनकर भेजता है ! जिस तरह से किसी समय में पेप्सी और कोक ने देश में पदार्पण किया था और हम नेताओ की सुनते रहे थे और हसते हसते आज गुलाम बन बैठे है इसी तरह हो सकता है वालमार्ट भी एक् दिन हमारा राजा बन बैठे लेकिन ऐसी केवल कल्पना की जा सकती है ! हमारे नेताओ में संसद में जिस तरह से वालमार्ट को लेन की जद्दोजहद की वो वास्तवमें सराहनीय है, विरोध करने वालो की कुतर्क और पक्ष में होने वालो के तर्क अब तक जनता के समझ में नहीं आये ! जिस वालमार्ट को जनता के लिए लाया जा रहा है उस जनता से तो एक् भी बार नहीं पूंछा गया की ये आना चाहिए या नहीं ! राज्यसभा और लोकसभा के अंदर आपस में आंखमिचौली खेलकर एक् और प्रधितना की जंजीर जकड दी नेताओ ने देश पर ! और सबसे सरल बात तो यह है की ईस्ट इण्डिया कंपनी ने कोलकता से पदार्पण किया था तो उसे दिल्ली तक आने में समय लगा लेकिन इस वालमार्ट का पदार्पण तो दिल्ली से ही हो रहा है तो उसे तो और सरलता होगी अपने लक्ष्यों को पाने में ! वो चाहे तो देश में रुक सकता है या फिर लूट कार यहाँ से जा सकता है ! भारत के अंदर अभी तक व्यापारिक कंपनियों ने दो ही रवैये अपनाए है, अब सोचना वालमार्ट को है ! अभी एक् नए दल आम आदमी के मुखिया ने कहा की वालमार्ट के लिए जन-मत होने चाहिए, उन्हें तो जनता के बारे में यही सोचना चाहिए जिस देश में कसाब और अफजल गुरु जैसे आतंकवादी को सालो तक मेहमान बनाकर रखा जाता है , भ्रष्टाचार को रोकने लिए कोई कड़ा कानून नहीं होता, पेप्सी और कोक जैसी बाहरी कंपनियों का शाशन होता है वहाँ इस वालमार्ट के लिए कैसा जनमत ! यहाँ तो यह कहना अनुचित नहीं होगा की जनता का जनमत केवल एक् दिन होता है चुनाव में और उसी दिन उसकी कीमत होती है उसके बाद या पहले जनता केवल और केवल नेताओ की नौकर(सेवक) होती है! इस देश में कैसा जन-मत ! यहाँ आज जन-मत की कीमत होती तो क्या करोड़ो के घोटाले करने वाले कलमाड़ी , यदुरप्पा जैसे नेता जिन्दा होते है ! जनता का काम है सर्कार द्वारा थोपे गए कानूनों पर अम्ल करना ! उनके द्वारा आपस में आरक्षण औअर क्षेत्रवाद की राजनीती में हिस्सा लेना बस !