जीविका ‘स्वप्नान्कुरण’ का एक हिस्सा है : अंकुर मिश्र’युगल’

लोग कहते है सपने नहीं देखनें चाहिए, सपने कभी साकार नहीं होते लेकिन क्या ऐसी वास्तविकता से वो खुद जागरूप होते है? आज की दुनिया में स्वप्न ही ऐसा माध्यम है जिसके जरिये लोग संघर्ष करते है और उनका उसे सच करने का एक और स्वप्न रहता है ! जिस तरह से किसी निकाय या व्यावसायिक निकाय द्वारा एक उद्देश्य दिया जाता है उसी तरह जीवन को उद्देश्य देने का कार्य ‘सपनों’ का होता है, जिसका ‘अंकुरण‘ जीविका से होता है ! मनुष्य का पहला स्वप्न उसका जीविकापार्जन होता है उसके बाद स्वप्नों की सीमाए बढ़नी लगती है वो भी ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार एक निकाय या व्यावसायिक निकाय के उद्देश्यों की सीमाए बढ़ने लगती है ! और इन स्वप्नों की पूर्ति के लिए मनुष्य पर्याप्त संघर्ष भी करता है ! वस्तुतः सोचा जाये तो ‘स्वप्न’ ही ऐसा माध्यम है जिसके जरिये मनुष्य अपने वास्तविक कर्मो से बंधा हुआ है और उसे मानवता का एहसास होता रहता है ! और इन सबके बावजूद लोग कहते है सपने नहीं देखने चाहिये ....!! कुछ मनुष्य ऐसे होते है जो सपनो के होने के बावजूद उचित कर्म नहीं करते और हमेशा रोते रहते है की ‘मेरा कुछ नहीं हो सकता है’?? जबकी उनमे कोई कमी नहीं होती कमी होती है उनके कार्य करने के तरीको में यदि वो सभी अपने कार्य करने के तरीको में ध्यान दे उन्हें उनकी कमी उन्हें जरुर दिखेगी लेकिन वो ऐसा न करके शांत बैठ जाते है और अपने सपनो को दबा देते है ! सपनो को दबाना मानव प्रजाति की सबसे बुरी कमी है! प्रयोग के तौर से देखे: सपनो की उत्पत्ति मानव के अनुसार उसके मस्तिष्क से होती है और यही उनका निवास रहता है, लेकिन कुछ कारणों के कारण लोग अपने सपनो को भूल जाते है और जीवन के किसी अन्य कार्य में व्यस्त हो जाते है, (हो सकता है वह भी किसी स्वप्न का एक हिस्सा हो!) लेकिन ऐसे में उनका एक स्वप्न इन्तजार की अवस्था में चला जाता है और धीमे- धीमे करके उसका ‘देहावसान’ हो जाता है ! यहाँ सोचने वाली बात यह है की जिस तथ्य का अंत शरीर के अंदर हुआ है वह रहेगा तो शारीर के अंदर ही !! और इसी तरह के तथ्य जीवन का हाजमा खराब करते है ! अतः जीवन के किसी भी ऊँचे या नीचे स्वप्न को कभी दबाएँ नहीं बस उस स्वप्न की परिपूर्ति के लिए आत्मविश्वास से संघर्ष करे, सपने अवश्य साकार होंगे !