‘क्रांति अथवा महाक्रान्ति’, ‘राजनैतिक अथवा सामाजिक संगठन’?

आज से ढाई साल पहले एक ऐसे आन्दोलन की शुरुआत हुयी थी जिसमे पहले एक आदमी से बेडा उठाया था, एक से दस हुए, दस से सौ हुए, सौ से हजार और हजार से लाख ! कारण एक मुद्दा था जिसने समाज को ग्रसित कर रखा था, जनता एक बदलाव चाहती थी, राजनैतिक और सामाजिक बदलाव ! समस्याओ का समाधान चाहती थी ! जनता के इस विशाल आन्दोलन ने देश की सरकार को झकझोर दिया और सरकार ने झूठे वादे कर डाले, जनालोकपाल पास कर देगे........
आन्दोलन समाप्त कर दिया, बाद में सप्ता पक्ष के कुछ नेताओ ने बोला की राजनीती में आओ, बहस करो बिल पास करा लो. ! तब जनता को करारा झटका लगा, और उसने राजनीती में एक इमानदार विकल्प ढूँढना सुरु कर दिया ! तब कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओ में कुछ विचारविमर्श हुआ और इस सामाजिक संगठन ने राजनैतिक रूप ले लिया ! अब भी लक्ष्य सामाजिक ही थे, भ्रस्टाचार और बेईमानी को लोकतन्त्र से दूर करना, जनालोकपाल को पास कारना. राज्नैतीं दल में भी जनता का सैलाब जुड़ता गया और एक ऐतिहासिक महाक्रान्ति का रूप लेने में इसे समय नहीं लगा.
मै यहाँ बात कर रहा हूँ अन्ना आन्दोलन से निकली आम आदमी पार्टी की, जिसे जनता अब भी नहीं समझ पायी ‘राजनैतिक दल’ कहे या फिर ‘सामाजिक संगठन’ ! एक ऐसी टीम जिसमे कुछ भी करने का जज्बा है एक आम आदमी से शुरू होकर आज करोडो आम आदमी की हो चुकी है ‘आम आदमी पार्टी’.! मै इसी कड़ी का एक पहलू हूँ.!
अन्ना आन्दोलन का वो प्रारूप भी देखा जिसमे लोगो ने उनके उपवास के लिए उपवास रखने शुरू कर दिए थे, जिसने उस समय की राजनीती के अराजक तत्वों का साथ देना छोड़ दिया था, पूरा देश एक परिवार हो चुका था !

अरविन्द केजरीवाल के साथ रहकर मैंने उनकी सच्चाई का वो प्रारूप देखा जिसमे उसे मौत भी नहीं हिला सकती, जो हर सदस्य के लिए अपने आप में प्रेरक बन जाते है ! मनीष सिसोदिया के साथ मैंने बेईमानी की इस लड़ाई के लिए कुछ भी करने का जज्बा देखा, कुमार विश्वास पार्टी का एक ऐसा पहलु जिन्होंने कड़ी से कड़ी को जोड़ने का कार्य किया, संजय सिंह, योगेन्द्र यादव आदि अनेक ऐसे व्यक्तियों का संगठन जो एक अच्छे समाज में गठन के लिए अपनी जान गवाने से भी नहीं डरता ! ऐसे व्यक्तियों के साथ रहते हुए इस पार्टी में एक सामाजिक सेवा के लिए पथ प्रदर्शक की कमी महसूस नहीं हुयी, मै राजनीती से हमेशा घृणा करता था, अन्ना आन्दोलन के समय इस घृणा में और तेजी आयी लेकिन जब जनता के सर्वे के अनुसार आम आदमी पार्टी बनी और फिर इसमें साथ मैंने काम करते हुए आम आदमी का लगाव देखा तो राजनीति से प्रेम सा होने लगा !
दिल्ली चुनाव पार्टी के लिए अग्नि परीक्षा थी, दीवाली – दशहरे बिना मनाये पार्टी अपनी इस परीक्षा की तैयारी में डटी रही, विरोधी पार्टियों के अव्हेलनाओ को झेलती रही क्योंकी अब महसूस हो चुका था आम आदमी , पार्टी के साथ है ! विरोधी डालो ने अपने सारे अच्छे-बुरे दांव खेल लिए, मिडिया का दुरुप्योक कर स्टिंग अपरेसन करवा लिए, लेकिन इमानदार सफाई को कोई कितना भी चाहे गन्दा नहीं कर सकता, इसलिए सभी तथ्य गलत साबित हुए! आखिर में घड़ी आयी दिल्ली चुनाव की वोट डाले गए और एक बात तो ४ दिसंबर को ही साबित हो गयी की इस आन्दोलन ने जनता को जागा दिया है, जिस दिल्ली में कभी चुनाव ५७ प्रतिसत हुआ करता था आज वहां ६६-६७ प्रतिशत चुनाव हुआ ! लोग राजनैतिक और सामाजिक सुधार के लिए जाग चुके है !
८ दिसंबर जिसका इन्तजार दिल्ली के साथ साथ पूरे देश को यहाँ तक की विदेशी मिडिया को था ! इस दिन एक ऐसे समाज का भविष्य निर्धारण होना था जिससे राजनैतिक मनमानियो को रोकने के साथ-साथ विकास की राजनीती का सन्देश छुपा था, इस समाज की हार देश में भ्रष्टाचार और बेईमानी को बढाने में सहायक हो सकती थी, लेकिन विजय हुयी आम आदमी और उसके परिश्रम की ! ऐसे परिणाम आये जिन्होंने देश के राजनैतिक विशेषज्ञों के साथ-साथ मिडिया को भी झकझोर दिया, जिस मिडिया ने आम आदमी के लिए १०-१५ सीटो के अनुमान लगाये थे उन आम आदमियों ने देश की राजनीती को एक नया विकल्प दिया !
दिल्ली चुनाव परिणामो में आम आदमी पार्टी को ७० में से २८ सीटो में विजय प्राप्त हुयी और २१-२० स्थानों में वह दूसरे स्थान पर रही. इस तरह से आम आदमी पार्टी ने एक भारतीय राजनीती को नया विकल्प दिया है !इस तरह से ये अडिग सफ़र था जो एक जन आन्दोलन से शुरू होकर राजनैतिक दल का रूप ले लेता है जिसके पास विकास के वाही मुद्दे है जो जन आन्दोलन के समय था !
अब फिर से प्रश्न जनता का है क्या आम आदमी पार्टी अपने वादों को पूरा करने में वचन वद्ध रहेगी?

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