''सत्य और साहित्य'' : 'अंकुर मिश्रा' की हिंदी रचानाएँ (कहानियाँ और कवितायेँ )
एक अपील : एक काम देश के नाम !!!
आजाद भारत की उम्र 64 वर्ष पूरी होने वाली है और उसने इसी छोटी सी उम्र में इतने आघात सह लिए है जिससे देश में विनाश का 'साया' मडराने लगा है ! पहले ही उसे खंडित कर –कर के अनेक टुकडो में बाँट दिया है ,संयुक्त भारत से खंडित भारत में बदल दिया है ! आजादी के 137 वर्ष पहले यह भारत एक बड़ा साम्राज्य का धारक था लेकिन अंग्रेजो की कूटनीतियों ने इसे मात्र 137 वर्षों में 7 भागो में बाँट दिया ! जिसमें आज हम भी एक भाग है सोचिये यदि सात भाग हो जाने के बावजूद हम इतनी बड़ी शक्ति है उन सात भागो के साथ हम क्या होंगे ! खैर - यहाँ बात है आज के भारत के जो आधुनिकताओ से इतना घिर चुका है की यहाँ के निवासी अपनी अवश्यकताओ को पूरा करने के लिए किसी अन्य की नही सोचते ! गरीबो का शोषण इस हद तक पहुछ चुका है “किसी गरीबी योजना का लाभ लेने के लिए लगी पंक्ति में भी गरीब सबसे पीछे ही होता है” नेताओ और बड़े अधिकारियो की बात क्या करें, यह सारी महानता तो उन्ही की है उन्ही के नियम कानून तो देश के गरीब को और गरीब और अमीर को और अमीर बनाने में सहायक है ! देश की 80% सरकारी योजनाओ का लाभ गरीबो को नहीं मिलता है ! उन्हें अपने किसी सरकारी काम के लिए दफ्तरों के हजार चक्कर लगाने पड़ते क्योंकि उसके पास मुद्रा रूपी प्रसाद देने को नहीं होता ! किसी बड़े की शिकायत से गरीब पर कार्यवाही जरुर होती है पर किसी गरीब के कहने पर बड़ों पर कार्यवाही नहीं होती ! आज यह है हमारा देश !!
लेकिन अभी इतना ज्यदा उम्रदराज नहीं हुआ है की इस देश की इस तरह की बिमारियों को रोका न जा सके ! किसी देश के लिए ६४ साल ज्यादा नहीं होते है बस हमें अभी से “अति – आत्मविश्वासी” बनने के जरुरत है !
हम इजराइल का इतिहास देखते है, यह वह देश जिसमे एक समय पर यहूदियों को पूरी तरह से बहार कर दिया गया था लेकिन उनके आत्मविश्वास की वजह से आज पुनः वह देश विश्व के मानचित्र में अपनी अलग पहचान बना चुका है! फिर भी हम तो अभी भी अपने ही देश में है तो क्या हम “एक काम देश में नाम” नहीं कर सकते! इजराइल के निवासी जब वहाँ से अलग हुय्र तो वो अलग अलग देशो में चले गए और फिर उन्होंने वहाँ से अपने देशवाशियो से संपर्क साधना सुरु किया उनका ध्येय वाक्य था “अगली बार येरुसलम में मिलेगे” और उन्होंने यह कर दिखाया !हमें भी ध्येय बनाकर देश के लिए कुछ करना होगा वरना “इकबाल की पक्तियों पर सोचना पड़ जायेगा ---
“ "वतन की फिक्र कर नादान मुसीबत आने वाली है !
तेरी बरबादियों के मश्वरे हैं आसमानों में !
न समझोगे तो मिट जाओगे ए हिंदुस्तान वालों!
तुम्हारी दास्तान भी न होगी दास्तानों में।"
अभी भी समय है आवाज भी उठ चुकी है, उस आवाज में शक्ति भी आ चुकी है उसे समर्थन भी पर्याप्त है, उसी पर्याप्त संख्या से सरकार घबरा चुकी है ! लेकिन यह कार्य केवल उस पर्याप्त जनसंख्या का नहीं है यह कार्य है 120 करोड़ भारतीयों का जिसने दुनिया को तो हिला दिया है ! अब देश के लिए कुछ करना है इसे अपील समझे या सुझाव लेकिन हर भारतीय का कर्तव्य है की उसे “भ्रष्टाचार की इस लड़ाई में अपना सहयोग देना होगा” अभी तक हमने सरकार की तानाशही देखी है लेकिन सरकार अब हमारी अहिंषा देखेगी !अब सब के दिल में बस एक ही ध्येय वाक्य होगा – “16 तारीख को दिल्ली में मिलेगे “.....
न तेरा है न मेरा है !
ये हिंदुस्तान सबका है !
नहीं समझी गयी ये बात !
तो नुकसान सबका है !!
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लोकपाल बिल सर्कार की तरह नहीं जनता की तरह बनेगा, उसमे प्रधानमंत्री भी आएंगे और उनके संत्री भी आएंगे! संसद भी आयेगी और अधिकारी भी आएंगे ! इसमे हर उस तबके के व्यक्तित्व को आना होगा जो सरकारी कार्यों में रूकावट पैदा करने की चेष्टा करता है !!
वंदे मातरम !!!
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