''सत्य और साहित्य'' : 'अंकुर मिश्रा' की हिंदी रचानाएँ (कहानियाँ और कवितायेँ )
कवि !तुने यों गाया तो क्या ,....ankur mishra
कवि !तुने यों गाया तो क्या ,
जग बंधन से यों बंधा रहा ,
''अंकुरित'' कली जब खिल उठी,
युग-युग से से झस्न्कृत स्वालहरी,
अपने तारो से मिल न सकी!!!!!!!!
चांदनी चाँद की रात रात भर
हंसती रही मुस्कराती है
बेशक मतवाली लहरों में
चमकीली मस्ती आती है!!!!!!!!!!!!!!
पर प्रर्थ नहीं इसका
प्रियवर! यह सरे जग को भाता है
अरे प्रोषिता तप्त ह्रदय
अव्व्मी जलवा चिल्लाता है
प्रति प्रातः पदेश!!!!! ........
श्रमी रवि मुश्काराया तो क्या
कवि! तुने यों गया तो क्या गाया!!!!
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