जिस देश में शर्मा जी की चाय 7 रुपये की बिकती है, उस देश में खाना 5 रुपये में..

आज सुबह जब मै 'मोर्निग वाक' से  लौटकर  पार्क में वापस आया और वहाँ उस बातचीत हिस्सा बना जिसका वर्णन यहाँ करने से मै अपने आप को नहीं रोकपाया ! उन वरिष्ठ नागरिको के आलावा आज एक चाय वाले चाचा भी वहाँ आये हुए थे ! यहाँ वरिष्ठ का  मतलब उम्र और ज्ञान दोनों से है, वैसे तो इन 'सीनियर सिटीजंस' से मै रोज मिलता और बाते  लेकिन आज उन चाय वाले चाचा का आगमन कुछ विशेष था !
देश में अलग अलग कोनो से  राजनीतिग्य बाते कर रहे है की हमारे यहाँ खाना 5 रुपये का मिलता है , हमारे यहाँ 12 रूपये का मिलता है ! तो यहाँ भी वाही बात चल रही थी , ये बात चाय वाले अंकल के समझ में नहीं आयी तो उन्होंने पूरी बात पूंछी और समझने के बाद घबरा गए और बोल पड़े 'हाय राम 5 रुपये का खाना' मै तो एक ग्लास  चाय भी 7 रुपये की देता हूँ,  और उसकी कमायी के बाद भी  नहीं चल  पाता और हमारी सरकार 5 रुपये में खाना देकर पूरा देश चला लेती है !........................................"
उस चाय वाले की बात को  सोचा, जिस देश में शर्मा जी की चाय 7 रुपये की  बिकती है , उस देश में खाना 5  रुपये में कैसे मिल सकता है !  हमारी सरकार के  ऐसे काल्पनिक कथनो से तो यही लगता है की या तो सरकार के सभी  मंत्री-संत्री पागल हो चुके है या उनके पास विकास करने के लिए कुछ शेष नहीं बचा !
वही दूसरी तरफ इन सब बातो की जिम्मेदार है हमारी मीडिया, जो एक किसान की मौत को दिखाए या  दिखाए लेकिन एक नेता के थूकने की  को मुद्दा जरूर बना देते है !तो यही सार था इस वास्तविकता का जिस देश में चाय  सात रुपये में मिलती है वहाँ 5 रुपये में खाना  कहा से मिल सकता है !देश में तो मजाक चल  रहा है आइये आप भी इसका एक हिस्सा बनिए !

मिडिया इतनी भी खोखली मत बनो : अंकुर मिश्र 'युगल'

मै अन्ना हजारे की बात से पूरी तरह सहमत हूँ, पत्रकारिता विकास का एक ऐसा स्तम्भ है जिसके जरिये किसी भी परिस्थिति में देश को बचाया जा सकता है ! आम जनता की आवाज उठाने का एक ऐसा माध्यम जो संसार के कोने कोने तक आसानी से जा सकती है ! गाँव की उन्नति तो रही है लेकिन उससे ज्यादा अवनति हो रही है, मंजिले तो ऊँची हो रही है लेकिन सोच और दिमाग नीचे हो रहा है ! गरीब को सहायता तो मिल रही है लेकिन उससे ज्यादा उसे लूटा जा रहा है ! जब किसी घटना के बाद पुलिस वाला रिपोर्ट लिखने के पैसे लेता हो , विकास के किसी टेंडर को पास करने के लिए नेता पैसे लेता हो, नौकरी के लिए एक कंपनी पैसे लेती हो, इलाज के लिए सरकारी डाक्टर पैसे लेता हो ,…………………।
तब भी भारतीय मिडिया इनको कभी नहीं दिखाती है !
उन्नति और विकास जरुरी है लेकिन खोखलेपन के साथ नहीं ! यह जरुरी है हम क्रिकेट में विश्वविजेता बनते है तो उसे दिखाए लेकिन यह भी जरुरी है यदि किसी गाँव में गरीब मर रहा है तो सरकार को दिखाए ! अम्बानी या मनमोहन सिंह के घर की पार्टी आप दिखाए लेकिन ये भी जरुरी है की गाँवो में अस्पताल और स्कूल नहीं है तो उसे भी दिखाये ! यह भी जरुरी है आप किसी अभिनेता या राजनेता की उपलब्धी दिखाए लेकिन उस बच्चे की समस्याए जरुर दिखाए जिसके पास पढने के लिए किताबे नहीं है !
लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है आप, जनता के लिए भरोषा है आप फिर भी उस निकम्मी सरकार  के आगे बिक जाते है आप !
मै अन्ना हजारे जी की इस पकती से पूर्णतयः सहमत हूँ : "गांव के विकास का मतलब नई पंचायत इमारत का निर्माण या मौजूदा इमारतों की ऊंचाई बढ़ाना नहीं है. इमारतों की ऊंचाई बढ़ने के साथ-साथ लोगों के सिद्धांत नीचे की ओर गिरते हैं. यह विकास नहीं है. विकास का मतलब लोगों को भीतर से मज़बूत बनाना है."
‘पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है, जिसे मज़बूत होना चाहिए, लेकिन चिंता की बात यह है कि इस स्तम्भ को भी घुन लग गया है.’

"सर्वशिक्षा-श्रेष्ठशिक्षा", एक छोटा सा कदम 'मलाला' के संघर्ष के नाम !!

वो दिन और थे जब पुरुष किसी महिला के बचाव में खड़ा होता था ! आज की महिलाए खुद के साथ साथ समाज की सुरक्षा करने में भी सक्षम है ! देश सेवा के लिए सेना में या राजनीती में हर जगह इन्होने अपनी शक्तिशाली छवि बनायीं हुयी है ! लेखनी की ताकत हो या उद्योग जगत की उचाई हर जगह इन्होने अपना परचम लहराया है ! ऐसा करने वाली महिलाओ व लड़कियों में भारत ही नहीं बल्कि विश्व के हर देश का अलग स्थान है ! गाँव की लड़की अब  शहर में आकर पढ़ती है, जमीन से आसमान तक का सफ़र तय करती
 है ! वही दूसरी तरफ यही माँ के रूप में 'प्यार' और ममत्व का भण्डार रखती है !
 तो यहाँ सोचना उन्हें है, जो अब भी अपनी माँ, पत्नी, बहन या बेटी को कमजोर मानते ! सोचना उन राक्षसों को है जो उनकी मजबूरी का फायदा उठाते है! 
16 साल की लड़की 'मलाल' का संदेस केवल महिलाओ या लडकियों के लिए नहीं है उसका यह सन्देश  सारी मानव जाती के लिए है ! संयुक्त राष्ट्र संघ में मनाया गया 'मलाला' का जन्मदिन सरे विश्व के लिए सन्देश है की अपने कर्म को इमानदारी और परिश्रम से करो, आज जो केवल कथन बन गया है उस पट अमल की जरुरत है !
मनुष्य के सबसे बड़े हथियार उसकी लेखनी होती है !
"मलाला" की अपील "चलो किताबें और कलम उठाओ. ये हमारे सबसे ताकतवर हथियार हैं. एक बच्चा, एक शिक्षक, एक किताब और एक कलम ही दुनिया को बदल सकते हैं. शिक्षा ही एकमात्र हल है." वास्तव में आज का  समाज सुधारने  का सबसे बड़ा हथियार है ! हमें किसी भी क्रांति की जरुरत नहीं होगी यदि सबको सही शिक्षा मिलने लगे !
तो बस जरुरत है छोटे से अभियान की
"सर्वशिक्षा श्रेष्ठ शिक्षा", एक छोटा सा कदम मलाला के संघर्ष के  नाम ! 

जनता ही हमेशा पीड़ित क्यों राजनेता क्यों नहीं : अंकुर मिश्र "युगल"

आखिर वो समय जल्द जल्द ही आ रहा है जिसका नेताओ  इन्तजार रहता है , जनता इनकी गलतियों का खामियाजा भुगतती है  यही घटनाएँ इन नेताओ के हथियार होते है !
इनके निवारण के लिए बात कोई नहीं करेगा बात होगी  तो बस 'तुमने क्या किया और तुमने क्या किया?" ! 
छत्तीसगढ़ में नकसली हमले हुए उसमे बड़े बड़े वादे हुए, मारे गए सुरक्षाकर्मियों के लिए 'ये करेगे वो करेगे' लेकिन ये सब करना तो दूर वहां एक और एसपी को मार डाला गया और सरकार के बस वादे रह गए ! 
यदि ख़ुफ़िया विभाग ने दो जुलाई तक सतर्कता बरतने के निर्देश दिए थे तो ये घटना कैसे हुए और इसका जिम्मेदार कौन है ? 
ये किसकी नाकामी है ?........
वही दूसरी तरफ उत्तराखंड विपदा में राजनीती हो रही है ! 
वहां की सफाई और समाधान की बाते न करके बात हो रही है , 
आखिर जिम्मेदार कौन है ? 
प्रकृति ? 
कांग्रेस ?
 भाजपा? 
या कोई और ?....
सरक्रार त्याग पत्र दे , विपक्ष सप्ता को काम नहीं करने दे रहा है आदि बाते ही नेताओं का आधार है तो बेचारी जनता क्या करे ! 
उसे तो हमेशा पीड़ित ही रहना पड़ेगा !
बिहार में बम ब्लास्ट हुए , घायल कौन हुआ ? कौन कौन मरा ? किसकी संपत्ति में घाटा हुआ? इस बात Se किसी को मतलब नहीं है !
कांग्रेस के एक समझदार नेता दिग्विजय सिंह , तुरंत बोले इसमे कही मोदी का हाथ तो नहीं है !
भाजपा से किसी ने कहा नितिश कुमार की सुरक्षा व्यवस्था में कमी है ! 
कुछ विशेसग्य इस बहस में लग गए की ये धमाके क्यों किये गए ! 
अब इन्हें कौन समझाए ये सरे काम पहले ही निपटा लेने चाहिए थे ! 
नेताओ की आपसी बहस के बीच बेचारी जनता और कब तक पिसेगी ! ये सब राजनीतिग्य क्यों नहीं भोगते !
हमारे  देश की यही विडंबना है जिसे झुठलाया नहीं जा सकता ! पर जनता जागरूक हो रही है और वह नेताओ की ड्रामेबाजी को समझने लगी है !