गडकरी को भाजपा से नही भारत से निकालना चाहिए : अंकुर मिश्र 'युगल"

कभी विकास के लिए प्रसिध्धि पाने वाले महान राजनेता अटल बिहारी बाजपेई जैसे प्रधानमंत्री देने वाले राजनैतिक दल भाजपा की आज की राजनैतिक दशा इस तरह दयनीय हो सकती है , ऐसा शायद ही किसी ने सोचा हो ! जिस राजनेता को राजनीती की परिभाषा माना जाता है, जिसने अपने कार्यकाल में विकास के इतिहास रचे उस महानेता की पार्टी की इस दयनीय दशा का जिम्मेदार आखिर कौन है ?? इस प्रश्न का उत्तर किससे पूंछे, जनता से भाजपा के आलाकमान से या फिर खुद बाजपेई जी से ?? और वास्तविकता की नजर से देखे तो जनता और बाजपेयी जी से इस प्रश्न का उत्तर पूंछना भी मूर्खता होगी अंततः उत्तर की जिम्मेदारी आती है आज के भाजपा के नेताओ से, लेकिन क्या उनके पास किसी तरह का उत्तर हो सकता है ?? अब भी ये एक बड़ा प्रश्न है ?? इस राजनैतिक दल में महान नेताओ की कमी नहीं है, लेकिन किसी महान विचारक के कथन है : “किसी भी अच्छे और बड़े कार्य के लिए सञ्चालन का अच्छा होना अत्यंत आवश्यक है !” लेकिन क्या गडकरी और अडवाणी जैसे राजनेता भाजपा को सही सञ्चालन दे रहे है ?? जिस व्यक्तित्व के अंदर खुद के बोलने में नियंत्रण न हो , क्या वो किसी दल का नियंत्रण कर सकता है ! स्वामी विवेकानंद जैसे महपुरुष की तुलना आज के आतंकवादी दाउद से करना मूर्खता कहलायेगा या पागलपन ! जिस महापुरुष ने अपना जीवन देश सेवा के न्योछावर कर दिया उसकी बौद्धिक क्षमता की तुलना किसी भी देशद्रोही से करना खुद को देशद्रोही ही दिखाता है, और वो भी ऐसे राजनैतिक दल द्वारा जो आपकी ज्म्मेदारियो के लिए जाना जाता है ! गडकरी की इस मूर्खता या पागलपन से आतंक फ़ैलाने वाले समूहों को सकारात्मक सोच मिलेगी और देश में आतंक का शय बढ़ सकता है ! ऐसे वक्तव्यों के लिए गडकरी को देशद्रोही कहना अनुचित नहीं होगा ! उन्होंने इस कथन को क्यों कहा , क्या वो अभी तक अरविन्द केजरीवाल द्वारा लगाये गए आरोपों से नहीं उबरे या फिर उन्हें खुद के भाजपा संचालक होने का घमंड है? कारण कुछ भी हो देश को ऐसे वक्तव्य एक गलत छवि देते है , और इस तरह के कारणों को देखते हुए उन्हें अपने सञ्चालन को छोड़कर देश से माफ़ी मांगनी चाहिए, जिस देश में भ्रष्टाचार के लिए आवाज उठाने वाले असीम त्रिवेदी जैसे व्यक्ति को जेल में डाला जा सकता है तो क्या आतंकवादियो की तुलना राष्ट्रपुरुष से करने वाले को खुले आसमान के नीचे घूमने देना खतरा नहीं दे सकता ! देश के अंदर भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने की आजादी नहीं है , उसके लिए जेल के दरवाजे तुरात्त खोल दिए जाते है तो क्या आतंकवाद फ़ैलाने के लए आजादी हों चाहिए ! यह प्रश्न जनता के लिए है और जनता को यह तय करना है की आखिर देख को कौन चलाएगा, आतंक को सह देने वाला एक व्यक्ति या कोई और !!