अम्मा भी एक कोने से सब देख रही थी...

नदियों का झर झर
पहाड़ो की उचाई
पक्षियों की चहचहाहट
और अम्मा की व्याकुलता
से सराभोर, केंद्र में केन्द्रित एक 'विलेज'

सौ-दो सौ आवाज थीं
'फिफ्टी-सिक्स्टी' घर
एक राजा की रजा थी
एक शादी थी कल...

दूल्हा था सजा
मन में था मजा
घोड़े पे गढ़ा
वर-माला में खड़ा.

दुल्हे के साथ थे बराती
'वेलकम' में थे जनाती
अम्मा भी एक कोने से सब देख रही थी
पर पटाको का एक अजीब डर था

बाराती खाना देख खाने में लग गए
जानती 'म्यूजिक' देख गाने में लग गए
एक नजारा बन गया था 'फन' का
हाँ एक और भी नजारा था दुल्हन का.

दूल्हा मन ही मन मुस्करा रहा था
एक संसय से सोच रहा था
क्या बोलू, कैसे बोलू
शारीर सन्न था, सब देख अम्मा हंस रही थी

खैर रात होती गयी
बात होती गयी
घूँघट उठाया, सिन्दूर लगाया
और सुबह होते ही, इस घर की लड़की उस घर की हो गयी

एक बावली लड़की
जो कभी अम्मा के साथ खेलती थी
आज अम्मा को रुला के चली गयी
अम्मा फिर अकेली है
अपलक निहारती है
चारो तरफ देखकर अम्मा के जब
अम्मा अपने आंसू सबसे छिपती है
केंद्र की सीमओं के साथ -साथ
'अंकुर' भी बेसुध हो जाता है
नदियों के झर-झर की तरह.....