एक स्थिति होती है जिसमे लोग अपने आपको रखते है और एक परिस्थिति होती है जिसमे कोई कैसे भी रह सकता है लेकिन दोनों दशाओ में एक छोटे से छोटे आम आदमी के पास ‘हिसाब’ नाम की चीज होती है! एक बच्चा एक रुपये का और एक कंपनी हजार करोड़ रुपये का हिसाब रखती है, एक चाय वाला “चाय के कपो” का और पान वाला “पान की बिक्री” के एक एक पाई का हिसाब रखता है, पानी बेचने वाला “पानी के बिके ग्लासों का” और गाड़ी बेचने वाला ‘गाड़ियों’ का हिसाब रखता है................. यहाँ हर आदमी के पास हिसाब की किताब होती है!
ऐसी दशा में द्रश्यनीययह यह है की हमारे राजनेताओ के पास विदेश जाने के करोणों के खर्चे का हिसाब तो है लेकिन “करोडो के चंदे” का हिसाब नहीं है, एक रात में लाखो के ‘डिनर’ का हिसाब तो है लेकिन जनता के विकास में लगाये गए वास्तविक पैसे का हिसाब नहीं है! काँमन वेल्थ खेलो का फर्जी हिस्साब है लेकिन ‘आम आदमी’ के एक पैसे का हिसाब नहीं है ! अभी हाल ही में सुना की दिल्ली की तीन पार्टिया, अपनी पार्टियों के चंदे पे बात कर रही है, जो जायज भी था, इनमे आम आदमी पार्टी ने अपने चंदे का हिस्साब जनता को दिया लेकिन भाजपा और कांग्रेस के करोणों के चंदे का हिसाब अब तक आम आदमी जानने का इच्छुक है, दोनों ऐसी पार्टिया है जिन्होंने भारतीय राजनीती में शासन किया है, और एक ने तो ६० साल से ज्यादा शासन किया है! खुद को लोकतंत्र मान चुके दोनों बड़े राजनैतिक दल आखिर क्या सोच कर जनता को हिसाब नहीं देना चाहते ?
क्या ये पैसा सच में भारत का नहीं है?
क्या इसमे पाकिस्तान, चीन या अमेरिका की हिस्सेदारी है ?
क्या ये पैसा किसी आतंकवादी संगठन ने दिया है ?
क्या किसी पार्टी के पास ‘पैसे का पेड़ है’?
.....आदि अनेक ऐसे प्रश्न जो कई लोगो ने मुझसे पूंछ चुके है और मुझे भी सोचने और शक करने पर विवस कर दिया! यहाँ प्रश्न केवल हिसाब या पैसा का नहीं उठता, प्रश्न है आम आदमी के अधिकारों का, जो व्यक्ति अपने वोट की ताकत से सरकार बना सकता है तो क्या वो उसके नोटों का हिसाब भी नहीं पूंछ सकता !
आज एक आम आदमी होने के नाते क्या मेरे पास वो ताकत भी नहीं है की मै अपने नेता से अपने पैसे के बारे में पूंछ सकू. क्या उस नेता में इतनी भी काबिलियत नहीं है की वो जनता को हिसाब दे सके. जनता को और व्यक्तिगत मुझे(एक आम आदमी) को इस पैसे का हिसाब चाहिए. जन आन्दोलन की आवाज तो जानती ही है दोनों पार्टियाँ साथ में अभी भी इस लोकतान्त्रिक देश में अदालतों में न्याय होता है, हक़ की लड़ाई में कोई दर भी नहीं होता ! Cont……..
ऐसी दशा में द्रश्यनीययह यह है की हमारे राजनेताओ के पास विदेश जाने के करोणों के खर्चे का हिसाब तो है लेकिन “करोडो के चंदे” का हिसाब नहीं है, एक रात में लाखो के ‘डिनर’ का हिसाब तो है लेकिन जनता के विकास में लगाये गए वास्तविक पैसे का हिसाब नहीं है! काँमन वेल्थ खेलो का फर्जी हिस्साब है लेकिन ‘आम आदमी’ के एक पैसे का हिसाब नहीं है ! अभी हाल ही में सुना की दिल्ली की तीन पार्टिया, अपनी पार्टियों के चंदे पे बात कर रही है, जो जायज भी था, इनमे आम आदमी पार्टी ने अपने चंदे का हिस्साब जनता को दिया लेकिन भाजपा और कांग्रेस के करोणों के चंदे का हिसाब अब तक आम आदमी जानने का इच्छुक है, दोनों ऐसी पार्टिया है जिन्होंने भारतीय राजनीती में शासन किया है, और एक ने तो ६० साल से ज्यादा शासन किया है! खुद को लोकतंत्र मान चुके दोनों बड़े राजनैतिक दल आखिर क्या सोच कर जनता को हिसाब नहीं देना चाहते ?
क्या ये पैसा सच में भारत का नहीं है?
क्या इसमे पाकिस्तान, चीन या अमेरिका की हिस्सेदारी है ?
क्या ये पैसा किसी आतंकवादी संगठन ने दिया है ?
क्या किसी पार्टी के पास ‘पैसे का पेड़ है’?
.....आदि अनेक ऐसे प्रश्न जो कई लोगो ने मुझसे पूंछ चुके है और मुझे भी सोचने और शक करने पर विवस कर दिया! यहाँ प्रश्न केवल हिसाब या पैसा का नहीं उठता, प्रश्न है आम आदमी के अधिकारों का, जो व्यक्ति अपने वोट की ताकत से सरकार बना सकता है तो क्या वो उसके नोटों का हिसाब भी नहीं पूंछ सकता !
आज एक आम आदमी होने के नाते क्या मेरे पास वो ताकत भी नहीं है की मै अपने नेता से अपने पैसे के बारे में पूंछ सकू. क्या उस नेता में इतनी भी काबिलियत नहीं है की वो जनता को हिसाब दे सके. जनता को और व्यक्तिगत मुझे(एक आम आदमी) को इस पैसे का हिसाब चाहिए. जन आन्दोलन की आवाज तो जानती ही है दोनों पार्टियाँ साथ में अभी भी इस लोकतान्त्रिक देश में अदालतों में न्याय होता है, हक़ की लड़ाई में कोई दर भी नहीं होता ! Cont……..