किसके बीच होगा लोकसभा फाइनल : “आप-भाजपा”/“भाजपा-कांग्रेस”/“कांग्रेस-आप”

आशुतोष का ‘आप का तिलिस्म और खतरे की घंटी’ पढने के बाद कुछ लिखने का मन हुआ, जिस तरह से उन्होंने भाजपा, कांग्रेस और आप का राजनैतिक आकलन किया वो वास्तव में लोकसभा चुनाव में एक अलग गणित बना सकता है, मोदी के सपने तोड़ सकता है, यूपीए ३ और राहुल के घर को उजाड़ सकता है और हो सकता है देश को एक ऐसा प्रधानमंत्री मिल जाये. वैसे नए प्रधानमंत्री के तिलस्म की कल्पना करना लोकतंत्र के आज को देखते हुए ज्यादा ही कल्पनीय होगा पर भाजपा और कांग्रेस की लोकसभा नीतियों में फर्क जरुर पड़ेगा.
कहते है राजनीती के लिए एक हफ्ता का समय बहुत होता है और आज के इस नए राजनैतिक अवतार ने इसे सच भी कर दिया ४ दिसंबर को जब वोटिंग हुयी तब किसी ने सोचा भी नहीं होगा की आपकी ‘आप’ २८ सीटे जीतेगी और सर्कार बनाएगी लेकिन लोकतंत्र की कहावत सच हुयी और आज दिल्ली में आप’की सरकार है ! फिर दूसरा तिलस्म तब हुआ जब २८ दिसंबर को सपथ लेने के बाद अरविन्द ने मुख्यमंत्री के रूप में विकास की नीव रखनी सुरु की, पहले पानी फिर बिजली और फिर भ्रष्टाचार के खिलाफ एक्सन लिए, इन सभी को देखकर तो यही लगता है की यदि कोई चाहे तो विकास के लिए भी एक हफ्ता का समय बहुत होता है !
यदि आप का यह कार्यक्रम जरी रहा तो दिल्ली की तरह देश की जनता भी भाजपा और कांग्रेस के खिलाफ चली जाएगी और दोनो महा नेताओ के सपने अधूरे रहा जाएगी.
मैंने हमेशा सुना है अरविन्द और कुमार विश्वास के भाषणों को, ये कहते थे ‘हम राजनीती करने नहीं आये हम तो राजनीती बदलने आये है’ और आज इनकी बात सच होती नजर आ रही है, जनता सच में राजनीती के बदलाव को देख रही है ! वो आम आदमी पार्टी को अपना और देश का तीसरा विकल्प समझने लगी है, और आज यह विकल्प इस कद्र छा गया है की २०१४ लोकसभा ‘राहुल और मोदी’ की जगह ‘अरविन्द और मोदी’ के रूप में बदल चूका है !
दोनों पार्टियों ने आप के तरीके अपनाने सुरु कर दिये है लेकिन जनता यह नहीं भूल सकती की कांग्रेस में वंशवाद और भाजपा में धर्मवाद की राजनीती है ! कांग्रेस ने सभी लोगो को लेकर चलना तो चाह लेकिन कमान हमेशा अपने हाथ में राखी वाही भाजपा नि लोगो अयोध्या के नामपर इस कद्र लड़ाया है की आम जनता भी इनकी नीतियों को समझ चुकी है! हाँ लोगो को यहाँ ये मानना होगा की  कांग्रेस में अंबेडकर की जगह थी, तो जगजीवन राम भी कम ताकतवर नहीं थे। यानी कांग्रेस ऐसी पार्टी है, जो सभी विचारों का संगम है। वैचारिक लचीलापन ही उसकी पूंजी है। इसलिए लंबे समय तक समाजवादी रास्ते पर चलने के बाद 1991 में जब उसने बाजारवाद का मार्ग अपनाया, तो पार्टी में ज्यादा विरोध नहीं हुआ। अर्जुन सिंह जैसे लोगों ने थोड़ी आपत्ति जरूर जताई, लेकिन वह क्षणिक था। साल 2009 के बाद कांग्रेस की नीतियों में एक और बदलाव देखने को मिला। उसने बाजारवाद को मानवीय स्वरूप देने की कोशिश की।शिक्षा का अधिकार, भूमि अधिग्रहण बिल, खाद्य सुरक्षा बिल लेकर आई। इसने बाजारवाद पर जोर के बावजूद कल्याणकारी योजनाओं में सब्सिडी झोंकने का काम किया। इसी वजह से आज फिर कांग्रेस को 'लेफ्ट ऑफ द सेंटर' पार्टी कहा जाता है।
वाही आप एक ऐसी पार्टी है जो इन सब बातो को लेकर तो चलती ही है साथ में वो किसी वंशवाद की राजनीती पर भरोषा नहीं करती वो ‘स्वराज’ के सिद्धांत का अनुसरण करती है और मोहल्ला सभ में भरोषा रखती है जनता को क्या चाहिए जनता से पूंछती है फिर उसमे काम करती है ऐसे में आप कांग्रेस के यूपीए ३ के सपने तोड़ सकती है!
देखा जाये तो बराबर का खतरा मोदी और भाजपा पर भी है,  बीजेपी अपनी विचारधारा में धर्म के आधार पर अल्पसंख्यकों को साथ लेकर चलने से परहेज करती है।
इसलिए गुजरात के दंगों पर वह माफी नहीं मांगती। मोदी मुस्लिम टोपी नहीं पहनते हैं। आप के साथ यह दिक्कत नहीं है। आज आप एक ऐसा संगठन है जो देश के हर वाढ को लेकर चलने का जज्बा रखता है ! लेकिन मोदी को ऐसे वर्ग ने उठाया है जो मोबाईल की दुनिया से निकला है युवा है, हमेशा धर्मवाद की राजनीती में भरोषा रखता है !
उक्त तथ्यों के आलावा आप के लिए लोगो का रुझान भी लाभदायक साबित हो सकता है- जिस तरह से समाज के प्रतिष्ठित लोग आप के साथ आ रहे है उनकी विचारधारा और आप की विचारधारा का समायोजन हो रहा है उससे तो यही लगता है की अगला लोकसभा चुनाव देश के एक अद्भुत तिलस्म दे सकता है जिसके कल्पना कोई पत्रकार, कोई नेता, कोई समाजसेवी या कोई आम आदमी अभी से नहीं कर सकता !