“करो या मरो” की वास्तविकता : अंकुर मिश्र "युगल"


शहीद दिवस के अवसर में कुछ ऐसे व्यक्तित्वो से मिलन हुआ जिनका कितना भी व्याख्यान किया जाये कम है ! हिंदी साहित्य की महान प्रतिभा “डा. मदनलाल वर्मा ‘क्रांत’ जी” एवं आई.ए.एस.“डा. सिन्हा जी”! इन महान व्यक्तित्यो के किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है ! इतिहास की महान पुस्तकों के इन रचयिताओ ने “शहीद दिवस” में कुछ ऐसी महान बातें बताई जो वास्तव में सत्यता के बावजूद बहुत ही कम लोगो को मालूम है !
महात्मा कहे जाने वाले मोहनदास कर्म चंद्र गाँधी ने आखिर किस अहिंसा की शक्ति से देश को आजाद कराया, वो भारत का नहीं बल्कि अग्रेजो का कम कर रहे थे ! क्या उनके किसी भी आन्दोलन से लगा की “आजाद भारत” की सोच रखते थे ! खुद को राष्ट्रपिता कहलवाने से भी नहीं सकुचाये , पिता तो निर्माता होता है क्या वो भारत के निर्माता थे ????
अनेक ऐसे आंदोलनों का हिस्सा बने जिनका भारत की आजादी का कोई वास्ता नहीं था ! क्या जरुरत थी नमक आन्दोलन की ? 1942 में नारा दिया “करो या मारो“ क्या कुछ असर हुआ इस नारे का अंग्रेजो पर ! या ये नारा उन्ही के लिए था ???
नारा था “करो या मारो” लेकिन उसमे भी अहिंसा का पाठ था, अंग्रेजो के खिलाफ अहिंसा की सीमा में रहकर लड़ो और उसके बाद मर जाओ , कही भी “मारने” का कोई शब्दांश नहीं था !!
क्या इन सबके बावजूद “महत्मा गाँधी” आजादी के महानायक थे ????
या महानायक वो था जिसने जिसने ३२ वर्ष की आयु में फंसी का फंदा चूमा जिसने महलों को छोडकर कारावासो में पना अधिकांश समय बिताया ! जिसने केवल सोचा नहीं उसे कर दिखाया !!
इन सब प्रश्नों के उत्तर हमें सोचने है, देश हमारा है देश का इतिहास हमें लिखना है ,
गहन चिंतन और इतिहास मंथन से वास्तविकता सामने जरुर आयेगी !!
कुछ पंक्तियाँ “डा. मदनलाल वर्मा” जी की :
भगत सिंह सुखदेव राजगुरु की कुर्बानी याद करें,
वैसी शक्ति हमें भी दे यह माँ से हम फरियाद करें;
नव-सम्वत्सर पर सबको है पावनतम संदेश यही-
इस जीवन का एक-एक क्षण व्यर्थ न हम बर्बाद करें.