''सत्य और साहित्य'' : 'अंकुर मिश्रा' की हिंदी रचानाएँ (कहानियाँ और कवितायेँ )
ओवैसी प्रश्न तो बहुत है , सामने होता तो जरुर पूंछता : अंकुर मिश्र ‘युगल
‘ओवैसी’ के पागलपन को आखिर हिंदुस्तान किस तरह स्वीकारे ? वह व्यक्ति जिसे जनता के बहुमत से सरकार का हिस्सा बनाया गया है उसके वक्तव्यों को १२५ करोड़ की जनता किस रूप में स्वीकारे !
उसने देश के हिन्दुओ को ही अनादरित नहीं किया उसने तो उन सच्चे मुसलमानों का भी आपमान किया है जिनका मुस्लिम धर्म खुद सिखाता है दूसरे धर्मो की इज्जत करना !
और कब तक इरादा है बातचीत से काम चलने का , एक तरफ शांति का के लिए क्रिकेट मैच होता है वही दूसरी ओर भारतीय सिम के अंदर घुसकर अपनी नामर्दानगी की ताजपोशी करता है हमारा पडोसी देश ! हमने जिसे हमेशा अपनी मौसी का दर्जा दिया है, हमने जिस देश की हरकतों को हमेशा नासमझ समझकर माफ़ किया , जिसके लिए हमेशा हमने शांति का पथ पढ़ा है आज वही भाई फिर से अपनी तुच्छ हरकतों पर उतर आया है ! सोते हुए सैनिको को मारना कही की मर्दानगी या जज्बा नहीं होता ! जज्बा दिखाना है तो बोलकर देखो एक बार ! हम शांत है ये हमारी सराफत है , कमजोरी नहीं ! वाही दूसरी तरफ हमारी ही मिट्टी में रहकर हमें ही दोषी ठहराने वाले उस ओवैसी के लिए तो कसाब की सजा भी कम है ! वैसे तो हमने कभी जताया नहीं है फिर भी यदि जबाब सुनने का मन है तो देश १०० करोड़ हिंदू नहीं बल्कि एक सच्चे दिल के मुस्लमान से ही पूंछ लो नासमझ ‘ओवैसी’ वो तुम्हे बता देगा की तुम्हारा खुद का धार्मिक स्टार कितना गिरा हुआ है !
तुम किस कसाब के लिए बात कर रहे हो जो खुद को दोषी ठहरा चूका था !
१०० करोड़ हिन्दुओ का मुकाबला तुम २५ करोड़ मुसलमानों से करोगे ?? अरे पहले अपने उन २५ करोड़ मुसलमानो से तो पूंछ लो क्या वो तुम्हारे साथ है ? चंद किराये के टट्टुओ को इकठ्ठा करके तालियाँ बजवाना शक्ति प्रदर्शन नहीं होता !
ओवैसी तू हिन्दुओ के भागवानो की बात करता है, यही हजारों भागवान तेरे २५ करोड मुसलमानों की जीविका बनाते है ! खैर तू इतना समझदार नहीं है अपने उन भाहियो की भावनाओ को समझ सके !
तू बाबरी मस्जिद की बात करता है ? तू ताजमहल की बात करता है ? तू लालकिला, जामा-मस्जिद यहाँ से लेकर जायेगा ? ............... क्या ये सब करने में तेरे साथ और कोई होगा ?
ऐसे ही अनेक प्रश्न है तुझसे , तू सामने होता तो एक पत्रकार और लेखक की हैसियत से जरुर पूंछता ! दिल में एक और तमन्ना है यदि तू सामने होता तो हिन्दुस्तानी होने के नाते एक ‘थप्पड़’ जरुर लगाता, ये एक हिंदू होने के नाते नहीं होता बल्कि ये एक मानुषी होने के नाते होता ! शायद उससे एक जानवर रूपी शारीर में कुछ फर्क पड़ता !
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें