'माँ' जिसकी कोई परिभाषा नहीं, जिसकी कोई सीमा नहीं,
जो मेरे लिए भगवान से भी बढ़कर है
जो मेरे दुख से दुखी हो जाती है
और मेरी खुशी को अपना सबसे बड़ा सुख समझती है
जिसकी छाया में मैं अपने आप को महफूज़
समझती हूँ, जो मेरा आदर्श है
जिसकी ममता और प्यार भरा आँचल मुझे
दुनिया से सामना करने की शक्ति देता है
जो साया बनकर हर कदम पर
मेरा साथ देती है
चोट मुझे लगती है तो दर्द उसे होता है
मेरी हर परीक्षा जैसे
उसकी अपनी परीक्षा होती है
माँ एक पल के लिए भी दूर होती है तो जैसे
कहीं कोई अधूरापन सा लगता है
हर पल एक सदी जैसा महसूस होता है
वाकई माँ का कोई विस्तार नहीं
मेरे लिए माँ से बढ़कर कुछ नहीं।
इस शो के बात कई बातें बहार निकल के आयी: क्या भारत माँ केवल लडको की माँ है? क्या लड़कियों पर होने वाले इस अत्याचार के लड़के ही जिम्मेदार है? क्या हमारा दायित्व नहीं है की हम “माँ” के अंश का बचाए ? इत्यादि अनेक तरह के प्रश्न बहार निकल में आये ! अनेक तरह की सांखकीय देखने के बाद देखा गया की 90% इस तरह के अत्याचार शिक्षा की कमी के कारन हो रहे है, और लगभग इतने ही मुद्दे गाँवो से आते है जहां जागरूपता की कमी है ! ........... इस मुद्दे पर मैंने कई जगरूप नागरिको से बात की जिसमे अनेक आरोप एवं हल निकल के आये :
इत्यादि अनेक सुझाव बहार निकलकर आये लेकिन समस्या अभी भी समस्या ही है, एक कमरे में बैठकर विचार करने से कुछ नहीं होने वाल बहार निकल कर इसके लिया कुछ करना पड़ेगा ! ऐसी ही समस्या से लड़ रहे एक संगठन “स्नेह-हालया” के कई कार्य सराहनीय है उन्होंने कई सराहनीय कार्य किया है, अगर आपको इस समस्या की समाप्ति के लिए इस लदी का हिस्सा बनना है तो अपने घर से ही इस खतरनाख समस्या को समाप्त करने का प्रयास करिये !
१. मेरे एक दोस्त ने कहा की “पति” चाहे तो इस समस्या को समाप्त किया जा सकता है !
२. एक डाक्टर ने ही कहा की यदि डाक्टर ही इस जाँच से मना कर दे तो इस समस्या से निजात पायी जा सकती है !
३.एक व्यंसयी ने कहा की लड़की ही इतनी सुदृण हो जाये की वो इस तरह की किसी जाँच से सहमत न हो यदि उस पर दबाव डाला जाये तो उसे पुलिस और अपने “माता-पिता” का साथ लेना चाहिए !
“माँ” का आशीर्वाद हमशा आपके साथ होगा !!