“बाल यौन शोषण” में कितनी संजीदगी और चाहिए हमें : अंकुर मिश्रा” युगल”

“सत्यमेव जयते” के दूसरे मुद्दे की जितनी सराहना की जाये कम है, समस्या का समाधान आसान है लेकिन शुरुआत की फिक्र है, वैसे विषय ऐसा है जिसका जिम्मेदार समाज का हर जिम्मेदार व्यक्ति है, कुछ अपने अधिकारों को भूल जाते है और कुछ इनका प्रयोग ही नहीं कर पाते और शिकार हो जाता है वो “नादान” जिसे उस शोषण की परिभाषा भी नही पता ! उस “नन्ही सी जान” का विश्वास कोई नहीं करता जो झूट बोलना भी नहीं जनता, यही वास्तविकता है हमारे समाज की, या उस “नर्क” की जहां ऐसे कुकर्म या अत्याचार छोटे छोटे बच्चो पर होते है ! कुछ समय पहले एक सर्वे हुआ जिसमे यह पता चला की भारत की कुल नन्हे बच्चो के 53% बच्चो का “यौन शोषण” बचपन में हो जाता है, यह सर्वे दिल-दहला देने वाला तथ्य सामने लाया, हर २ बच्चो में से एक बच्चा इस अत्याचार का शिकार हो चुका होता है, और “अत्याचारी” कौन होता है: हमारे हमज का एक “सभ्य” नागरिक जिसकी समाज पूजा करता है ! यही काला “सत्य” है हमारे “समाज” का !
इस समस्या को लोग आसान बताते है, और अत्याचारियो को इसका लाभ मिलता रहता है, उनके इस क्रियाकलाप पर कोई फर्क भी नहीं पड़ता, जरुरत है ऐसी जागरूपता की समाज के इस अत्याचार को रोक सके और यह संभव है “पूरे समाज” की जागरूपता से ! “सत्यमेव जयते” के माध्यम से कुछ ऐसे व्यक्तितो के विचार बाहर निकल कर आये, जिनका बचपन दिल-दहला लेने वाला था ! लेकिन उनके अंदर उस “शक्ति” का समावेश था जिसके जरिये उन्होंने उस लदी को लदा जिसमे उनके “माता-पिता” ने भी उनका साथ नहीं दिया ! लेकिन जिस तरीके से उन्होंने अपने दर्दो को जनता के सामने बताया उससे भारत की जनता को जगरूप होकर, इन 53% बच्चो की जिंदगियां बचानी होगी जिन्हें हर साल किसी न किसी प्रकार यौन शोषण का शिकार होना पड़ता है ! “प्रमुख बात” इसके लिए “हमारे महान भारत” में कोई कानून नहीं है ! अतः जो करना है हमें ही करना है , “सत्यमेव जयते” के माध्यम से कुछ प्रमुख बिंदु सामने निकल कर आये जिनके जरिये हम इस अत्याचार को रोकने में कामयाब हो सकते है :-
१. हमें अपने बच्चो को ऐसी सभी चीजे बता देनी चाहिए जिनकी जानकारी उनके लिए आवश्यक है !
२. हमें उनके साथ हर हफ्ते एक वार्तालाप करना चाहिए जिसमे इस तरीके के अत्याचार से रुकने के तरीको की बात हो !
३. हमें उनकी उस बात का विश्वास करना चाहिए जिसमे वह किसी भी प्रकार के शोषण की बात कहे !
४. बच्चे की बात को कभी नजरंदाज न करे ! उस पर विचार जरुर करे, वर्ना कुछ भी हो सकता है !

इत्यादि !
इन बातों की जरुरत है आज के समाज को “आज” की वास्तविकता से अवगत करने के लिए ! समस्या का हल जागरूपता है ! बच्चो से ज्यादा “माता-पिता” को जगरूप होने की जरुरत है !
बच्चो को “1098” हमेशा याद दिलाते रहे, यह एक ऐसा जरिया है जिसके जरिये बच्चा अपनी सहायता के लिए किसी को गुहार लगा सकता है ! दस-नौ-आठ (Ten-Nine-Eight) !!

"सत्यमेव जयते" अभिव्यक्ति सत्य को सामर्थ्य दिलाने की : अंकुर मिश्र “युगल”

अभिनेता आमिर खान ने जिस जोश से “सत्यमेव जयते” की की शुरुआत की वो वास्तव में सराहनीय है ! देश के प्रत्येक व्यक्ति को इसका इंतजार था, देखा जाये तो इसमे इंटरटेनमेंट नहीं था लेकिन मुद्दा था ! इन सबके बावजूद लोगो ने इस कार्यक्रम की जो सराहना की वो वास्तव में ये दिखाती है “मेरा भारत वास्तव में महान है”! जनता का ध्यान मुद्दों की तरफ लेन की देर है, जनता हर मुद्दे से लड़ने को तैयार है ! प्रथम शो के मुद्दे की असीमित सराहना भी कम है ! “कन्या भ्रूण हत्या” जो आज की प्रमुख समस्या है ! इस शो के दौरान ऐसे-ऐसे किस्से बहार निकल के आये जो वास्तव में दिल दहला देने वाले थे ! डाक्टर, इंजिनिअर, व्यवसायी, अध्यापक एवं एक साधारण नागरिक सभी जिम्मेदार है इस खतरनाख समस्या के ! समस्या का हिस्सा तो बेचारी एक “माँ” होती है लेकिन उसे शिकार बनाने वाले कितने होते है और इस समय में वो ये भूल जाते है की आखिर इस दुनिया के अविष्कार में “माँ” की कितनी भागेदारी है ! और उसी के अंश को समाप्त करने की थान लेते है वो !!!!! माँ के लिए एक छात्रा ने कविता लिखी :-
'माँ' जिसकी कोई परिभाषा नहीं, जिसकी कोई सीमा नहीं,
जो मेरे लिए भगवान से भी बढ़कर है
जो मेरे दुख से दुखी हो जाती है
और मेरी खुशी को अपना सबसे बड़ा सुख समझती है
जिसकी छाया में मैं अपने आप को महफूज़
समझती हूँ, जो मेरा आदर्श है
जिसकी ममता और प्यार भरा आँचल मुझे
दुनिया से सामना करने की ‍शक्ति देता है
जो साया बनकर हर कदम पर
मेरा साथ देती है
चोट मुझे लगती है तो दर्द उसे होता है
मेरी हर परीक्षा जैसे
उसकी अपनी परीक्षा होती है
माँ एक पल के लिए भी दूर होती है तो जैसे
कहीं कोई अधूरापन सा लगता है
हर पल एक सदी जैसा महसूस होता है
वाकई माँ का कोई विस्तार नहीं
मेरे लिए माँ से बढ़कर कुछ नहीं।

इस शो के बात कई बातें बहार निकल के आयी: क्या भारत माँ केवल लडको की माँ है? क्या लड़कियों पर होने वाले इस अत्याचार के लड़के ही जिम्मेदार है? क्या हमारा दायित्व नहीं है की हम “माँ” के अंश का बचाए ? इत्यादि अनेक तरह के प्रश्न बहार निकल में आये ! अनेक तरह की सांखकीय देखने के बाद देखा गया की 90% इस तरह के अत्याचार शिक्षा की कमी के कारन हो रहे है, और लगभग इतने ही मुद्दे गाँवो से आते है जहां जागरूपता की कमी है ! ........... इस मुद्दे पर मैंने कई जगरूप नागरिको से बात की जिसमे अनेक आरोप एवं हल निकल के आये :

१. मेरे एक दोस्त ने कहा की “पति” चाहे तो इस समस्या को समाप्त किया जा सकता है !
२. एक डाक्टर ने ही कहा की यदि डाक्टर ही इस जाँच से मना कर दे तो इस समस्या से निजात पायी जा सकती है !
३.एक व्यंसयी ने कहा की लड़की ही इतनी सुदृण हो जाये की वो इस तरह की किसी जाँच से सहमत न हो यदि उस पर दबाव डाला जाये तो उसे पुलिस और अपने “माता-पिता” का साथ लेना चाहिए !
इत्यादि अनेक सुझाव बहार निकलकर आये लेकिन समस्या अभी भी समस्या ही है, एक कमरे में बैठकर विचार करने से कुछ नहीं होने वाल बहार निकल कर इसके लिया कुछ करना पड़ेगा ! ऐसी ही समस्या से लड़ रहे एक संगठन “स्नेह-हालया” के कई कार्य सराहनीय है उन्होंने कई सराहनीय कार्य किया है, अगर आपको इस समस्या की समाप्ति के लिए इस लदी का हिस्सा बनना है तो अपने घर से ही इस खतरनाख समस्या को समाप्त करने का प्रयास करिये !
“माँ” का आशीर्वाद हमशा आपके साथ होगा !!

“राष्ट्रपति” का पद किसी दल का “मंत्रिपद” नहीं है मान्यवर : अंकुर मिश्र "युगल"

बात राष्ट्रपति पद की जो किसी देश के लिए सबसे महत्वपूर्ण पद होता है!
एक लोकतान्त्रिक देश में प्रधानमत्री के पद को जिस गरिमा से देखा जाता है वास्तव में “राष्ट्रपति” का पद उससे भी ऊँचा होता है, उसकी गरिमा एवं उस पद पर बैठा व्यक्तित्व देश को किसी दूसरे देश के सामने प्रस्तुत करता है, देश की प्रथम व्यक्ति की तुलना उस व्यक्ति को दी जाती है ! ऐसे ही महत्वपूर्ण पद के लिए हमारे देश में चुनाव होने वाले है, लेकिन चुनाव पद्दति को देखने से जो लचीलापन एवं भ्रश्ताचारिता समझ में आती हो वो वास्तव में द्रिश्नीय है, देश को राष्ट्रपति पद में जो व्यक्तित्व आज तक प्राप्त हुए है उनमे से “अब्दुल कलाम” एवं “राजेंद्र प्रसाद” ही अतुलनीय थे, यह एक ऐसा पद है जहां किसी राजनैतिक व्यक्ति को नही बैठालना चाहिए ! लेकिन भारत के “राष्ट्रपति” चयन की जो प्रक्रिया है उससे किसी नैतिक व्यक्तित्व को पहुचाना मुश्किल ही लगता है! इस महत्वपूर्ण पद के चयन के लिए देश की राजनैतक डालो में जिस तरह का वाद विवाद, घमासान मचा हुआ है, उससे यही लगता है की “राष्ट्रपति” का पद किसी दल का “मंत्रिपद” हो ! राजनैतिक दलों का ये घमासान देश के इस पद के लिए उपयुक्त व्यक्तित्व को यहाँ पहुचने में वाधा बन जाता है, और देश को ऐसा राष्ट्रपति मिल जाता है जो देश का नहीं बल्कि किसी राजनैतिक दल विशेष का होता है! २०१२ राष्ट्रपति की चुनाव में “कलाम” जैसे महान व्यक्तित्वो के होने के बावजूद राजनेता ऐसे व्यक्तियों को चुनने में लगे है जो राजनितिक पृष्ठभूमि से सने हुये है , और भरत के प्रत्येक राजनेता की पृष्ठभूमि तो लगभग प्रत्येक नागरिक को पता होगी ! राष्ट्रपति के चुनाव पद्दति में परिवर्तन करना तो कथिक कम है लेकिन क्या जनता से इस पद के उम्मीदवार के लिए “मतदान” नहीं होना चाहिए ! राजनेताओ को इस पद में तो राजनीती नहीं करनी चाहिए, वो सुबक की चाय से रत के खाने तक के हर चीज में राजनीती करते है लेकिन देश के इस सर्वोच्च पद के लिए भ्रष्ट राजनीती देश को किस कठघरे में खड़ा करेगी ये तो भविष्य ही बताएगा !

भ्रष्टाचार "लोकपाल" से नहीं "घर" से ख़त्म होगा -"कलाम ": अंकुर मिश्र "युगल"

भ्रष्टाचार "लोकपाल" से नहीं "घर" से ख़त्म होगा : अंकुर मिश्र "युगल" पूर्व राष्ट्रपति एवं महं वैज्ञानिक अब्दुल कलाम द्वारा दिए गए संदेश में कहा गया की यदि भारत से भ्रष्टाचार ख़त्म करना है तो केवल "लोकपाल: पर्याप्त नहीं है उसके लिए हर छोटे से छोटे बच्चे को जगरूप होना पड़ेगा ! हर बच्चे को अपने माता-पिता को भ्रष्टाचार करने से मना करना होगा , यही एक ऐसा उपाय है जिसके जरिये देश में भ्रष्टाचार पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है , "लोकपाल" से केवल देश के जेलों को भरा जा सकता है लेकिन यदि हर घर से भ्रष्टाचार का खात्मा हो जाये तो जेलों की जरुरत नहीं पड़ेगी, और हमें देश को बचाने के लिए जरुरी ही नहीं की जेलों को ही भरा जाये उससे कानून व्यवस्था में भी फर्क पड़ेगा और समस्या समस्या ही बनी रहेगी ! इन वक्तव्यों को लोकपाल के लिए संघर्ष कर रहे "अन्ना हजारे" ने भी स्वीकार किया ! वैसे इन वक्तव्यों में ताकत भी है! "अब्दुल कलाम " की पुस्तक "विसन-२०२०" भी इन्ही सब पर जोर देती है, देश के ऐसे महानायक जो २०१२ में होते हुए भी २०२५ की सोचते है, जिनका अनुभव देश के प्रत्येक क्षेत्र में है, देश को परमाणु शक्ति से ओत-प्रोत कर दिया, बच्चो के प्यारे "महान वैज्ञानिक" देश की हर समस्या में साथ देने वाले ,, उनके ये वक्तव्य हर छोटे बच्चे को प्रोत्साहित करेगे ! बच्चे ही परिवार का वो हिस्सा होते है जिनकी किसी भी बात को घर वाले मान सकते है ! देश की सबसे बड़ी समस्या "भ्रष्टाचार" से लड़ाई के लिए उनके इन वक्तव्यों से देश को काफी सहायता मिलेगी ! देश से बुरे ह्लातो को खात्मा करना है न की बुरे आदमी बनाना, अतः जेल भरने से कोई फायदा नहीं है ! सबसे छोटी इकाई "घर" ही ऐसा तथ्य है जिसके जरिये जिस समस्या ने निपटा जा सकता है !