घर के सामने का वो दरवाजा...

घर के सामने का वो दरवाजा 
जब भी खुलता है 
जिंदगी के और करीब ले जाता है,
मेरा कुछ हिस्सा यहाँ छोड़कर, 
उसके पास ले जाता है,
कभी बच्चे की हंसी,
तो कभी माँ का चिल्लाना,
कभी हसीन सपने,
तो कभी उदास खामोशियाँ
वहाँ से बाहर निकाल लाता है...
घर के सामने का वो दरवाजा
जिंदगी के और करीब ले जाता है,
कभी हलके रंगों से ढकी दीवारे,
तो कभी गहरे रंगों की खूटियाँ,
कभी हवा में नाचते परदे
तो कभी शांत जड़ी तश्वीरे,
मेरी अशांत आँखों को जब-जब दिखती है
एकदम खामोश सा कर जाती है
घर के सामने का वो दरवाजा
जिंदगी के और करीब ले जाता है,
कभी बरसात से बचाता
तो कभी धुप अन्दर ले जाता
कभी परदों से दिलदार
तो कभी सीमाओं की दीवार
कभी तूफानों को इंकार
तो कभी हवाओ से इकरार
करता घर के सामने का वो दरवाजा
जिंदगी के और करीब ले जाता है,
कभी बच्चों की उम्मीद दिखाता,
तो कभी माँ का इंतज़ार करता
कभी लोगो को विदा करता
तो कभी खुशियों का इजहार करता
लाखो खामोशियो के बावजूद
न जाने क्या क्या कह जाता...
घर के सामने का वो दरवाजा
जिंदगी के और करीब ले जाता है,
रोज खुलता है रोज बंद होता है
दिन में कई बार...
एक रोज घर के सामने का वो दरवाजा
न खुलेगा कभी न बंद होगा कभी
न हिलेगे परदे कभी, न झाकेंगी आँखे उसको कभी
न हवाओ से आवाजे होगी कभी,
न मुझसे बाते होगी कभी
बूढी आँखों की तरह बंद हो जायेगा
मानो मौत का आलिंगन हुआ हो...
घर के सामने का वो दरवाजा
जिंदगी के और करीब ले जाता है...
‪#‎YugalVani‬