उत्तराखंड जिस परिस्थिति से गुजर रहा है के सभी नागरिको, संस्थाओ को राजनैतिक दलो को मिलकर सहायता करने करने जरुरत है ! जहाँ हजारो जाने जा चुकी है, और अभी भी हजारो जाने फसी हुयी है , मुझे नहीं लगता ऐसे समय में भी किसी को लड़ने की जरुरत है ! मेरा सलाम है उन भिखारियों को जिन्होंने अपने भीख के मांगे गए पैसो से सहायता में सहायता की , उन रिक्शा चलाने वाले चालको को जिन्होंने अपने पेट काटकर उत्तराखंड के लोगो को सहायता पहुचाई ! सेना के उन जवानो को जो अपनी जान पे खेलकर लोगो की सहायता करने पहुच गए , और उसमे कुछ सहीद भी हुए ! उन सभी सहायता प्रदात्ताओ को सलाम है जिन्होंने किसी भी तरह से देश की कठिन परिस्थित में सहायता की !
लेकिन यहाँ दिल दहलाने वाली बात ये है की जिनसे ऐसे समय पर ज्यादा सहायता की उम्मीद होती है वही सरकार निकम्मापन दिखाती है, खुद के राजमहलो में हजार रुपये की पर प्लेट पर भोग चलाते है और बाहर आकर से गुजारिश करते है की उत्तराखंड की सहायता करे, जनता तो सहायता कर ही देगी ! लेकिन क्या इतनी समझ नहीं है की यदि एक दिन ये राजभोग नहीं खायेगे तो देश के कुछ जरुर कर सकते है !
वही दूसरी कहानी दो नेता उत्ताराखंड जाकर इसलिए लड़ते है की वो जनता की सहायता करेगे ! अरे मालिको आप दोनों मिलकर भी सहायता कर सकते हो !
विपत्ति है ! खैरियत रहे कभी आप पे न आये, नहीं तो कोई सहायता के लिए भी नहीं आएगा !
एक प्रदेश मुख्यमंत्री वहा सहायता के लिए जाते है तो उसके लिये खबरे उडती की अपने लोगो को बचा लिया बस, अरे इतना तो एक साधारण आदमी भी सोच सकता है की जो काम सेना दस-पंद्रह दिनों में नहीं कर पायी वो काम कोई एक दिन में कैसे कर सकता है लेकिन ये तो नेताओ की खाशियत है की किसी दूसरे नेता की अच्छाइयों को देख ही नहीं सकते है ! और ये मामला वही नहीं रुक , बिहार के महाबुद्धिमान मंत्री जी भी बोल पड़े 'हम दिखावा नहीं करते' अरे दिखावा तो यही बोलकर कर दिया मान्यवर ! खैर आपमें इतनी समझ होती तो आप देश के विकास में ही सहायता नहीं करते ! एक ऐसे दल और व्यक्ति से अलगाव नहीं करते जिससे देश को कुछ सम्भावनाये है !
वैसे इन राजनैतिक बातो का कुछ मतलब नहीं था यहाँ लेकिन वास्तविकता से भी नहीं भागा जा सकता और कभी भी याद आ जाती है ये तो !
यहाँ मेरी यही गुजारिश है नेता जी आप कृपया शांति बनाये रखे, आपका चुनाव समय अभी दूर है आप उसी में बोलियेगा ! अभी जनता को जो करना है वो कर रही है !