...वो आखिरी मेट्रो

...सात तारिख थी, आफिस में काम ज्यादा था इसलिए वो बिना घडी देखे काम करता रहा, तभी अचानक से घडी में नजर पहुची तो देखा रात के दस बज गए है टाइम देखकर वो फिर से जल्दी जल्दी काम में लग गया ! काम ११ बजे ख़त्म हुआ, काम ख़त्म होते ही उसने तुरंत बैग उठाया... और जल्दी जल्दी कंप्यूटर बंद करके ऑटो स्टैंड पर पंहुच गया... मगर रात ज्यादा होने की वजह से वहां कोई ऑटो नहीं दिख रहा था..
वो मन ही मन सोच रहा था की आज तो मेट्रो छूट ही जायेगी, आखिरी मेट्रो... आखिरी मेट्रो भी नहीं मिलेगी...
तभी सामने एक पूरा भरा हुआ ऑटो आया... मगर थोड़ी मिन्नत करने के बाद उसने ऑटो की थोड़ी सी जगह में उसे भी बैठा लिया...
मेट्रो स्टेशन पहुच गया,अब मन में थोड़ी ख़ुशी थी ...
आखिरी मेट्रो के आने में ५ मिनट शेष थे, वो इंतजार करने लगा और जैसे मेट्रो आई तुरंत चढ़ा और फिर पानी पीकर एक लम्बी साँस ली...
"अगर ये मेट्रो छूट जाती तो क्या होता आज, मर ही जाता मै तो... क्या राजीव चौक से मेट्रो मिलेगी....कही वहां से आखिरी मेट्रो निकल न गयी हो... अगर न मिली तो क्या होगा... कैसे जाऊंगा...पैसे भी नहीं है....!
मगर हाँ आज तोसात तारीख है.... तनख्वाह आ गयी होगी.... ठीक है कोई दिक्कत नहीं है... घर तो चला ही जाऊंगा... ऑटो या बस ही सही.... ....." और न जाने कितनी बाते उसके दिमाग में मेट्रो के साथ दौड़ रही थे !

राजीव चौक आते-आते १२ बज गए थे, वो तुरंत मेट्रो से उतरकर, दौड़ा-दौड़ा एक गार्ड के पसा पंहुचा, मगर उसने बताया की नोएडा की आखिरी मेट्रो तो जा चुकी है.............
२ मिनट के लिए दिमाग सुन्न सा हो गया... उसके जेब में पैसे नहीं थे....और फिर मुस्कराकर बाहर की तरफ चल दिया, चलो 'एटीएम' से तनख्वाह निकालकर ऑटो या बस से चला जाता हूँ !
....उसने पूरी सेलरी निकलकर पर्स में रखी और बाहर बस स्टैंड पंहुचा मगर काफी देर तक कोई बस या ऑटो नहीं आया, तभी बस का इंतजार करते-करते एक सिगरेट लेकर धुआं उड़ाने लगा, देखते ही देखते उसने ३-४ सिगरेट जला डाली... काफी देर हो गयी, मगर कोई बस अब भी नहीं आई !
वो खड़ा खड़ा सिगरेट का धुआं उड़ा ही रहा था की एक १८-१९ साल का लड़का आकर उससे ५० रुपये मांगने लगा...
उसने बड़े अट्टहास के साथ कहा- ५० रुपये मजाक है क्या.... इतने सारे पैसे का क्या करेगा....नशा करना है.... साले मेरे पास इतने पैसे नहीं है....और कोई 'भीख' में ५० रुपये मांगता है....
तभी उस लड़के ने कहा- साहब मै बड़ी दूर से आ रहा हूँ.... मेरी आखिरी  मेट्रो छूट गयी है...  बस भी नहीं है अब कोई.... अब ऑटो से ही जाना पड़ेगा, ऑटो वाला १०० रुपये मांग रहा है मेरे पास ५० रुपये है... मुझे ५० रुपये दे-दो... घर जल्दी पहुचना है, रात की वजह से ऑटो वाला विश्वास नहीं कर रहा, नहीं तो मई उसे घर जाके दे देता...
'मै आपको जनता हूँ, आप रोज गुडगाँव से चढ़ते हो मै भी वही से आता हूँ, कल आपके पैसे वापस कर दूंगा.....' वो लड़का बोला.
मगर उसने धुआं उड़ाते हुए उसकी एक भी बात न सुनी और गालियाँ देता हुआ रोड की दूसरी तरफ ऑटो के लिए जाने लगा...
तभी अचानक से एक बड़ी जोर की आवाज हुयी....!!
...और  जब उसकी आँख खुली तो खुद को अस्पताल में पाया, होश आते ही उसने अपनी घडी, सोने की जंजीर, अंगूठियाँ और जूते देखे... सब खुछ था वहां...!
फिर अचानक से उसका ध्यान पर्स पर गया, मगर पर्स गायब था !
"..जरुर उसी साले ने चुराया होगा, पूरी महीने की तनख्वाह थी... साला ले गया पूरे पैसे... ..." ये सब सोचकर परेशान होने लगा ! सर में तेज चोट लगी थी, पैर में एक-दो छोटे छोटे कट लगे थे और हाथ की एक कोहनी में पट्टी बंधी थी जहाँ से खून निकल रहा था !
परेशान होता देख नर्स आई और मुस्कराकर पूंछने लगी 'क्या हुआ सर" लेटे रहिये आपकी हालत सही नहीं है अभी... सर में तेज चोट है ! एक दो जाँच की रिपोर्ट आनी है अभी... आराम करिए आप... लेट जाइए...
मगर उसने नर्स से झिर्राते हुए कहा मै यहाँ कैसे आया और मेरा पर्स किसने चुराया....?
तब नर्स ने उससे बताया आपको किसी ऑटो से तेज टक्कर लगी थी, आप बेहोश थे, यहाँ आपको एक १८-१९ साल का लड़का लेकर आया था.... परेशान मत होइए आपका 'पर्स' मेरे पास है,उस लड़के ने  मुझे दिया था, ये रहा आपका पर्स......
पर्स लेते ही तुरंत उसने पैसे गिने... पैसे पूरे थे बस ५० रूपये कम थे...
उसकी आँखे भीग गयी... थोड़ी देर के लिए खामोश हो गया...
और उस आखिरी मेट्रो के बारे में सोचने लगा... उस लड़के के बारे में सोचने लगा...
उसे बस इतना पता था की पर्स से 50 रुपये कम है, मगर उसे ये नहीं पता की जिसने उसे टक्कर मारी थी वो वही ऑटो वाला था जिसमे वो खुद जाने वाला था...!!

...फिर वो सामान उठाकर "नंगे पांव" घर को चल दिये !

आज काफी दिनों बाद घर जाना हुआ, बदलाव बदलते-बदलते यहाँ भी पहुच चुका है ! घरो का झुण्ड गाँव में तो पहले ही बदल गया था अब गाँव क़स्बा बन गया है ! बैलगाड़ी की जगह मोटर गाड़ी चलने लगे है, इतवार की जगह सन्डे होने लगा है, बुजुर्ग लोग पहले टहलने जाते थे मगर अब 'वाक्' पर जाने लगे है, शहर से काफी कुछ बदलाव इस छोटे से कस्बे में भी 'इंटर' का चुका है ! लोग इसे देखकर काफी खुश है, वो इसे 'इंजॉय' भी कर रहे है और आगे बढ़ रहे है !
मै  भी शाम को दोस्तों के साथ "वाक्" पर निकला, बाज़ार जाकर 'पानी के बतासे' खाने की इच्छा हुयी मगर बाज़ार पंहुचा तो लोग इसका नाम भी भूल गए थे, अब यहाँ "पानी पूरी" का चलन हो गया है, कभी एक रुपये के पांच मिला करते थे मगर अब १० रुपये के पांच मिलने लगे है ! फिर भी मन नहीं माना, तो 'पानी पूरी' खाकर, बाज़ार की शैर में निकल पड़े ! चलते चलते उस कोने में पहुचे जहाँ से बचपन में 'स्कूल' जाया करते थे और ठीक कोने में एक बाबा बैठे रहते थे जिनसे नमस्ते करते थे...
तभी मन हुआ 'स्कूल' घूमने चलते है मगर दोस्तों ने बताया स्कूल तो वहां से हटकर कही और पहुच गया है, फिर मन मारकर उसी कोने के सामने खड़े होकर बाते करने लगे. वो कोने वाले बाबा अब भी उसी कोने में बैठे थे, उनसे उसी बचपन वाले अंदाज में नमस्ते किया... और फिर अचानक से दिमाग में एक सोच का समुन्दर बहने लगा...
उस बुजुर्ग बाबा को देखकर मै सहम सा गया, मैने स्कूल से निकलकर कालेज की पढाई कर ली और अब नौकरी भी करने लगा, इन सब में लगभग १५ साल का वक्त तो लग ही गया होगा, मगर बाबा अब बभी वैसे ही है, वही है...
आँखों में मोटे लेंस का चश्मा, जिसके अन्दर से उनकी आँखे भी दिख जाती है जिनसे उनकी आँखों की झुर्रियां साफ़ नजर आती है, कांपते हुए हाथ जो कभी कभी चाय का ग्लास पकड़ते हुए जल भी जाता है, सर पर कुछ सफ़ेद बाल, बदन में  सफ़ेद 'बंडा' और 'धोती'.... मगर अब बाबा का सर कमजोरी और बुढ़ापे की वजह से हमेशा नीचे की ओर झुका देखा , नज़रे नीचे नीचे राहगीरों के पैरो पर थी, दिनभर में हजारो पैरो की तश्वीरे उनके रात के सपनो में आती होगी,और बाबा तब भी सोचते होंगे, सब के सब सही है, इनमे से कोई भी मेरे पास नहीं आएगा....फिर अगले दिन उठकर अपना फटा और भरी बैग लेकर उसी कोने में बैठ जाते होंगे और राहगीरों के पैरो को देखने लगते होंगे, और सोचने लगते होंगे की आज किसी एक की चप्पल या जूता तो फटा होगा....आज कोई न कोई तो जरुर आएगा.... कई दिनों से शांत राखी सुई और धागे....आज हाथ में जरुर आयेगे...
मगर इसी सोच में उनके कई और दिन गुजर जाते है...
अब यहाँ सोचना जाहिर है
'बाबा' यहाँ, क्यों ? क्यों बैठते है आकर ? क्या जरुरत है इस बुढ़ापे में भी ? आखिर क्या मजबूरी है अब ?
पूरे दिन में कभी कभी उनके पास कोई एक चप्पल या जूता लेकर लेकर आ जाता है, वो भी ऐसी जर्जर हालत में होते है की उस पर आलपिन या घर के सुई धागे का अत्याचार हो चूका होता है... तब भी बाबा उसे पूरे मन से सुधारने में लग जाते है और उसके बाद उन्हें इसके ४-५ रुपये मिल जाते है...
मगर एक दिन में ४-५ रुपये में क्या होता है वो भी कभी कभी, क्या वो यहाँ तक ४-५ रुपये के लिए आते है ? ? ?
बाबा के सामने बैठे मै ये सब सोच ही रहा था की अचानक से एक नवयुवक उनके सामने आकर खड़ा हो गया... बाबा की नज़रे उनके पैर पर ही थी, आधा मिनट तक जब उस नवयुवक ने कुछ नहीं कहा, तब बाबा ने अपनी गर्दन ऊपर उठाते हुए, लड़खड़ाती आवाज में  कहा "साहब बताइए क्या सींना  है... ?"
सच में अभी तक मैंने इतनी मीठी आवाज नहीं सुनी थी, जहा कोई नहीं आता है, वहां पर भी लोगो को इतनी इज्जत मिलती है ? आजकल वो जमाना नहीं रहा जब लोग घर वालो के जूते चप्पल 'मोची' बाबा के यहाँ से सही करवाते थे.... जमाना बदल गया है, ट्रेन से मेट्रो तक लोग आसानी से पहुच गए है, चप्पल जूते टूटने के बाद कोई  सिलवाता नहीं है, ऐसे ज़माने में भी बाबा यहाँ आकर क्यों बैठते है, इतने तनाव के बाद भी इतना मीठा कैसे बोल सकते है ................? कैसे ?

......तभी साहब ने एक थैला देते हुए जबाब दिया बाबा इनको सीं देना... बाबा ने थैला लिया और बिना दाम बताये काम करना शुरू कर दिया... सारा काम करने के बाद जब बाबा ने साहब से पैसे मांगे तो साहब ने उसमे भी बाबा पर झिर्राते हुए ४-५ रुपये कम दिए, और गुस्से से सामान लेकर चले गए....
ये सब देखकर बार बार फिर से वही प्रश्न दिमाग में आ रहा है : वो रोज यहाँ आते क्यों है ? आजकल कौन जूता चप्पल सही कराता है ? किसके पास टाइम है ?.....
खैर इन सब को कौन ध्यान देता है, तेज गति से सबके पैर चले जा रहे है !
शाम का अँधेरा हो रहा था 'बाबा' ने समान बांधते हुए भी पैरो को घूरना जारी रखा मगर कोई नहीं आया, एक आशा निराशा में बदली...
फिर वो सामान उठाकर "नंगे पांव" घर को चल दिये...
#YugalVani

आज फिर मजाक बना है, उसके गाँव का एक किसान मरा है...

आज फिर मजाक बना है, 
उसके गाँव का एक किसान मरा है, 
कल तक जब 
कड़-कडाती धूप,
थर-थराती सर्दी,
गड-गड़ाती बरसात
में 
बिना गमझे, 
बिना छाता
बिना चप्पल 
बिना कम्बल 
पैदल उस खेत में जाता था,
जहाँ की दाल और अनाज 
से 
तुम्हारी थाली में खाना सजता है,
आज फिर उसका मजाक बना है...
जब तक वो था,
उस पर सब भारी थे,
तुम्हारे खाने का मालिक होकर भी 
किसी मालिक का नौकर था,
कल सबके लिए खाना उगा पाए,
कभी कभी खुद भूखा सोता था,
तब कोई नहीं आया 
...मतलब कोई नहीं 
आज एक एक करके 
सब चिल्ला पड़े 
"उस गाँव में फिर एक किसान मरा है"
उसकी वजह से मरा है 
उसकी सरकार की वजह से मरा है 
ऐसे मरा है वैसे मरा है....
किसी ने नहीं छोड़ा आज उसे
आज फिर उसका मजाक बना है...
मजाक मजाक में सरकार ने 
मुआवजा देने को कह दिया,
जनाब बस पैसो में मत लगाओ उसकी कीमत, 
वर्ना कभी चुका नहीं पाओगे कर्ज उनका, 
वो अन्नदाता था तुम्हारा...
आज फिर मजाक बना है, 
उसके गाँव का एक किसान मरा है,
#YugalVani