लगता है 'ओवैसी और कसाब' की सजाओ से काफी दुखी है शाहरुख : अंकुर मिश्र 'युगल'

आज कल के दिनों में देश के नए नए जुमलों को मुद्दों के ऊपर में उठाने की जद्दोजहद बराबर चल रही है ! देश में मिडिया के पास या तो खबरे नहीं है या जो मुद्दे की खबरे है वो दिखाना नहीं चाहते ! उसी का नतीजा है देश में शिंदे जैसे ‘गुंडे’ बिना मतलब में जनता के सामने आ जाते है ! शाहरुख खान जैसे मंद-बुद्धि अपनी खोई हुयी छवि को फिर से बटोरने लग जाते है ! जिस व्यक्ति ने अपने छोटे से परिवार के बाहर निकलकर कभी भी देश के लिए कुछ नहीं किया हो ? फिर भी जिस देश ने उसे सिर पर चढ़ाकर वो छवि दी , जिसकी उसने कभी कल्पना भी नहीं की होगी ! वो व्यक्ति आज बोलता है उसे उसी समाज से खतरा है ! आखिर इस वक्तव्य का मतलब आम आदमी क्या सोचे ?? मेरे विचार से इस व्यक्ति के अंदर ओवैसी या कसाब जैसे विचार पनप रहे है ! जब उसके सामने उन व्यक्तियों का जनाजा उठा तो कुछ ख़यालात सामने आये ? उसे लगा अब तो इस देश में कुछ हो सकता है ! या फिर , क्या पाकिस्तान के उन भाइयो का ख्याल आ गया जिनके साथ मिलकर आतक फ़ैलाने का कुछ विचार हो ? वैसे भी पुरातन परम्परा है उस पाकिस्तान की , विकास के लिए भीख लेकर तबाही भेजने की ! और आप तो उस पहली हसरत में कामयाब हो चुके है पैसा देश से ले चुके है , तबाही की मुहीम में निकलने का इरादा ....................................................! और हाँ एक बात और याद आती है इस्लाम के जनक कहने वाले ‘ जाकिर नाइक’ के साथ भी आपके कभी अच्छे समबन्ध है ! यहाँ बात उन संबंधो की नहीं है बात है उनके आदर्शो की जो दूसरे धर्मो को हमेशा गलत बताते है ! क्या उनके साथ मिलकर कुछ करने का इरादा तो नहीं है ?? ये आपके वक्तव्य के बाद उत्पन्न हुए एक सामान्य भारतीय के विचार है ! हो सकता है ये बिल्कुल ही निरर्थक हो ! लेकिन ये भी हो सकता है ऊपर की किसी एक बात में एक प्रतिशत भी सच्चाई हो ! भाईसाहब देश में ‘दिलीप कुमार’, नासिर , अमजद खान, जीनत अमान, जावेद अख्तर अदि अनेक ऐसे मुस्लिम कलाकार हुए है लेकिन उन्हें कोई खतरा नहीं हुआ ! ये वो देश है जहा एक अंग्रेज महिला की पार्टी से सिख्ख व्यक्ति को चुनकर देश के मुस्लिम राष्ट्रपति द्वारा शपथ दिलाई जाती है और वो भी वहाँ के लिए जहां ८० प्रतिशत से ज्यादा केवल हिंदू रहते है ! ऐसे देश देश के अंदर एक सामान्य व्यक्ति को खतरा नहीं होता और आप कहते है आपको खतरा है ! आप को बताना होगा आखिर अपके इस बयां के पीछे ख्याल क्या आया ?? यदि यह केवल व्यंग था तो आपने अपने उस खेमे में ठोस पहुचाया है जिअकी जमीं पर अआप खड़े हो ! और अगर इस बात के पीछे कुछ मकसद है तो ..................... उसे देश जानना जोर चाहेगा !! एक ऐसा व्यक्ति जो अपनी फिल्मो के माध्यम से देश में प्यार की भावना फैलता है उसका वक्तव्य आता है की उसे देश के अंदर ही खतरा है ! आखिर क्यों ? यहाँ इस क्यों के पीछे प्रश्न तो कई है लेकिन उत्तर तो खुद वही दे सकते है !!

वंशवाद से नहीं विकासवाद से चलता है देश : अंकुर मिश्र 'युगल'

आखिर कुछ आच्छा दिखने लगा भाजपा में, एक बुरे दौर से गुजर रही भाजपा ने लोकसभा चुनाव के पहले कुछ अनोखे पहलुओ पर काम करते हुए देश को दिखा दिया की ये किसी परिवारवाद पर चलने वाला दल नहीं है ! वास्तव में जिस देश में दो दलों की ही सरकारी दावेदारी रहती हो , और उसमे भी एक दल ऐसा है जिसे लोकतान्त्रिक दल खा भी नहीं जा सकता ! कांग्रेस, जो अपने आप को देश का सबसे बड़ा दल कहता है और आजादी के बाद सबसे ज्यादा शासन किया है लेकिन मेरे अनुसार यह एक ऐसा दल है जिसने देश में सबसे ज्यादा कुशासन किया है और देश की आजादी के बाद की सभी लड़ाइयाँ गवाह है, पाकिस्तान गवाह है की इस बड़े दल ने देश को क्या दिया है ? एक लोकतान्त्रिक दल में राजतन्त्र जैसा माहौल पैदा करके इस दल ने जिस तरह से तानाशाही भरा शासन किया है, वह अनदेखा नहीं है ? एक दल जिसकी बागडोर हमेशा एक परिवार के हाथो में रही, पार्टी में अनेक महान नेताओ के होते हुए बड़े पदों पार हमेशा ऐसे राजनेताओ को बैठाया गया जिन पर गाँधी परिवार खुद शासन कर सके , मनमोहन सिंह जिसका सबसे बड़े उदहारण है ! पार्टी में अनेक ऐसे बड़े नेताओ के होते हुए ‘राहुल गाँधी’ उपाध्यक्ष का पद दिया जाना और अध्यक्ष का पद खुद सोनिया गाँधी के पास होना किसी लोकतान्त्रिक दल को नही दिखाता, पार्टी में जयराम रमेश, शशि थरूर अवं अनेक ऐसे युवा नेता है जो देश को राहुल गाँधी या गाँधी परिवार से अच्छा चला सकते है लेकिन उन्हें इस दल में ऐसे पद न मिलना किसी तानाशाही को ही दिखा सकता है ! वही देश में दूसरी तरफ एक ऐसा दल है जो अपनी आपसी लड़ाइयो से ही जूझता रहता है, दल मेंकुछ अच्छाइयां है जो इसे कांग्रेस से अलग करती है पहली बात पार्टी में किसी वंशवाद का न होना देश के सभी धर्मो के लोगो को पड़े पदों में बैठालना. इसी दल ने देश को अटल बिहारी बाजपेई जैसे प्रधानमंत्री व् आब्दुल कलम जैसे राष्ट्रपति दिए है ! पड़े पदों में उस व्यक्ति को बैथालना जो उपयुक्त है ! आभी वर्तमान में नितिन गडकरी को हटाकर राजनाथ सिंह को अध्यक्ष बनाना इस बात को ही दिखता है को भाजपा केवल आर. एस . एस. के इशारों पर नहीं चलत और जारुरत पडने पर उसका साथ भी नहीं छोडती ! यह भाजपा का समर्थन नहीं था बल्कि वह सच्चाई थी जिसे देश बराबर नजरंदाज कर रहा है, जानते हुए भी अपना भला करने में असमर्थ है ! एक विकाशशील देश को दशको से वही पर खड़ा किये है ! देश वंशवाद , जातिवाद , आरक्षण, भरष्टाचार से नहीं चलता देश बढ़ता है विकास से और हम विकास नहीं निकास कर रहे है एक साच्ची बात से !

ओवैसी प्रश्न तो बहुत है , सामने होता तो जरुर पूंछता : अंकुर मिश्र ‘युगल


‘ओवैसी’ के पागलपन को आखिर हिंदुस्तान किस तरह स्वीकारे ? वह व्यक्ति जिसे जनता के बहुमत से सरकार का हिस्सा बनाया गया है उसके वक्तव्यों को १२५ करोड़ की जनता किस रूप में स्वीकारे !
उसने देश के हिन्दुओ को ही अनादरित नहीं किया उसने तो उन सच्चे मुसलमानों का भी आपमान किया है जिनका मुस्लिम धर्म खुद सिखाता है दूसरे धर्मो की इज्जत करना !
और कब तक इरादा है बातचीत से काम चलने का , एक तरफ शांति का के लिए क्रिकेट मैच होता है वही दूसरी ओर भारतीय सिम के अंदर घुसकर अपनी नामर्दानगी की ताजपोशी करता है हमारा पडोसी देश ! हमने जिसे हमेशा अपनी मौसी का दर्जा दिया है, हमने जिस देश की हरकतों को हमेशा नासमझ समझकर माफ़ किया , जिसके लिए हमेशा हमने शांति का पथ पढ़ा है आज वही भाई फिर से अपनी तुच्छ हरकतों पर उतर आया है ! सोते हुए सैनिको को मारना कही की मर्दानगी या जज्बा नहीं होता ! जज्बा दिखाना है तो बोलकर देखो एक बार ! हम शांत है ये हमारी सराफत है , कमजोरी नहीं ! वाही दूसरी तरफ हमारी ही मिट्टी में रहकर हमें ही दोषी ठहराने वाले उस ओवैसी के लिए तो कसाब की सजा भी कम है ! वैसे तो हमने कभी जताया नहीं है फिर भी यदि जबाब सुनने का मन है तो देश १०० करोड़ हिंदू नहीं बल्कि एक सच्चे दिल के मुस्लमान से ही पूंछ लो नासमझ ‘ओवैसी’ वो तुम्हे बता देगा की तुम्हारा खुद का धार्मिक स्टार कितना गिरा हुआ है !
तुम किस कसाब के लिए बात कर रहे हो जो खुद को दोषी ठहरा चूका था !
१०० करोड़ हिन्दुओ का मुकाबला तुम २५ करोड़ मुसलमानों से करोगे ?? अरे पहले अपने उन २५ करोड़ मुसलमानो से तो पूंछ लो क्या वो तुम्हारे साथ है ? चंद किराये के टट्टुओ को इकठ्ठा करके तालियाँ बजवाना शक्ति प्रदर्शन नहीं होता !
ओवैसी तू हिन्दुओ के भागवानो की बात करता है, यही हजारों भागवान तेरे २५ करोड मुसलमानों की जीविका बनाते है ! खैर तू इतना समझदार नहीं है अपने उन भाहियो की भावनाओ को समझ सके !
तू बाबरी मस्जिद की बात करता है ? तू ताजमहल की बात करता है ? तू लालकिला, जामा-मस्जिद यहाँ से लेकर जायेगा ? ............... क्या ये सब करने में तेरे साथ और कोई होगा ?
ऐसे ही अनेक प्रश्न है तुझसे , तू सामने होता तो एक पत्रकार और लेखक की हैसियत से जरुर पूंछता ! दिल में एक और तमन्ना है यदि तू सामने होता तो हिन्दुस्तानी होने के नाते एक ‘थप्पड़’ जरुर लगाता, ये एक हिंदू होने के नाते नहीं होता बल्कि ये एक मानुषी होने के नाते होता ! शायद उससे एक जानवर रूपी शारीर में कुछ फर्क पड़ता !

धार्मिकता या शर्मिंदगी : अंकुर मिश्र ‘युगल’

धार्मिकता या शर्मिंदगी ?? जब देश एक गंभीर समस्या से गुजर रहा है जहां एक बेबस और लचार लड़की ने अपनी जान गवाई, जिसके लिए कानून और सरकार सुधार के रास्ते ढूड रहे है ! देश के हर कोने में प्रार्थना सभाए हो रही है की भविष्य में ऐसी दरिंदगी न हो ! एक लड़की को कुछ दरिदे घेरकर देश के सामने एक दरिन्दागी की नीव रखते है जो पुरे देश के लिए शर्मनाक है ! सभी ऐसे कामो के न होने की प्रार्थना करते है और उन दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने की पेशकस करते है ! खुद देश के पूर्व न्यायधीश ने कहा की ‘अपराध सजा देने से कम होते है सजा की कठोरता बढ़ाने से नही’ , और यह सत्य भी है एक महीना से ऊपर होने वाला है इस अत्याचार को लेकिन अभी तक उन दरिंदों को कोई सजा नहीं मिली है ! लेकिन इस बिच अनेक ऐसे बलात्कार के मामले सामने आये जो दिल दहला देने वाले थे ! आखिर इसका मतलब क्या समझा जाये, उस नादान की मौत का कुछ भी असर नही हुआ इन हैवानो पर या फिर वो ये दिखाना चाहते है की हमारे देश की कानून व्यावस्था कितनी लाचार है ! लोग कहते है
“ वो तो सो गयी , लेकिन हमें जगा गयी”
तो वो जाग्रति कहा है ? इसके आलावा देश के धार्मिक और हिंदुत्व के पालनहर काह्लाने वाले बापू आशाराम और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मोहन भागवत के वक्तव्यों को क्या समझा जाये जो इस समस्या का समाधान का हिस्सा न बनकर बल्कि उस लड़की को दोषी ठहरा रहे है ! आखिर इन ढोगियो को अध्यात्म गुरु की संज्ञा ही क्यों दी जाती है देश हित में बात नहीं कर सकते तो कम से कम अहित की बात तो न करे ! आखिर उनकी सोच का नजरिया क्या है ?? जिस लड़ाई में समाज की सबसे ज्यादा भूमिका होनी चाहिए उस समाज के सब्भ्रांत लोग ही ऐसे वक्तव्य देते है , इनकी जिम्मेदारी का सूचक है या मानसिक असंतुलन का ! कुछ भी हो देश की इस अहम लड़ाई में समाज की जागरूपता सबसे ज्यादा जरुरी है और दूसरा यह की इन मानसिक असंतुलित ढोगियो को नसीहत देने की जरुरत नहीं है !
अब तक लड़े है , अब भी लड़ेगे ! कल तक खड़े थे , आज भी खड़े है ! अब नहीं है वो तो क्या हुआ ? उसकी शक्तियां हम पर है दुआ !!