‘आत्मा’ एक प्रश्न जो हमेशा मस्तिस्क में एक संदिग्ध अवस्था में रहता है !
आखिर क्या है ये आत्मा, इसकी वास्तविकता क्या है ?
किसी भी तथ्य पर कैसे भरोषा कैसे किया जाये इसका भी कोई वास्तविक प्रमाण नहीं है ! अध्यात्म की सुने या वैज्ञानिको की हमेशा संदेह की अवस्था रहती है !
“अन्यों अंतर आत्मा विग्यानमया” उपनिषदों में “आत्मा” के सन्दर्भ में कहा गया है !
लेकिन वास्तविकता यही है की जिस तरह किसी भी निर्जीव वास्तु से कार्य करवाने के लिए एक उर्जा की जरुरत होती है ठीक वैसे ही शरीर को कार्य के लिए उर्जा का निर्गमन में आत्मा की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है, और मानव शारीर में ‘दिमाग’ और ‘आत्मा’ ही ऐसे तो जीवित तथ्य है जिनकी सहायता से मानव शरीर चलता है !
जैसे किसी तत्व के लिए इलेक्ट्रान, प्रोटान और न्यूट्रान आवश्यक होते है ठीक उसी प्रकार किसी शरीर की सबसे आवश्यक तथ्य ‘आत्मा’ ही है ! आध्यात्म में कहा गया है ‘आत्मा’ अजर अमर है ! लेकिन इसका रूपांतरण होता रहता है ! जिस तरह कोई व्यक्ति शारीर पुराने वश्त्र छोडकर नए वश्त्र धारण करता है उसी तरह एक आत्मा अपना स्थानांतरण एक शारीर से दूसरे शारीर में करती है !
असीम उर्जा के भंधारण, आत्मा की परिभाषा अतुलनीय है !
शरीर की चुनिन्दा चीज जिसके बिना शारीर का की अस्तित्व नहीं है ! शारीर जो की पञ्च तत्वों का आकर्षित ढांचा है अंततः इन्ही में बिलिन हो जाता है लेकिन आत्मा का केवल स्थानांतरण ही होता है !