‘आप’ बना सकते है लोकतंत्र के इस उत्सव को एतिहासिक : आम आदमी की जुबानी

आजादी की ६७ पूरे हो गए है, देश लोकतंत्र घोषित है! लेकिन क्या सच में एक आम नागरिक स्वतंत्र है ? खुश है ? क्या वो अपने ४-५ साल के बच्चे को ईमानदारी से बोल सकता है की “बेटा तुम एक इमानदार देश में हो”? क्या वो खुद से ईमानदारी के साथ बोल सकता है की वो इमानदार देश का नागरिक है, उसकी सरकार ईमानदार है? क्या सच में वो प्रतिदिन प्रयोग के सामानों की महंगाई से परेशान नहीं है? क्या उसे १०० रुपये किलो की प्याज और ५० रुपये किलो का दूध नहीं सताता? क्या उसकी चाय की चीनी का मूल्य मिर्च की तरह नहीं चुभता ? क्या उसे हजारो घोटालो में घुटे खुद के पैसो की घुटन नहीं सताती ?
इसी तरह के हजारो प्रश्न है जो एक आम आदमी को सता रहे है लेकिन वो किससे कहे? आज सबसे बड़ा प्रश्न यही है! एक सहारा जिसे उसने पांच साल पहले यह सोचकर वोट दिया था की यह हमारे हक़ की लड़ाई लडेगा लेकिन आज वो खुद के बैंक एकाउंट की लड़ाई में लग गया. उसने उसे यह सोचकर वोट दिया था की यह हमारे परिवार को सुरक्षा देगा लेकिन आज उसी सहारे का परिवार इज्जत लूटता है, उसके समाज और देश के विकास के लिए जिसे जिताया था आज वो उस आम आदमी को ही कुविकसित कर रहा है !
अचानक उस बेचारे ने एक दिन सोचा इस बार दूसरी पार्टी को जिताते है और वो सफल भी हुआ लेकिन वो दूसरी पार्टी का नेता भी उसी तरह से लूटने लगा..
फस गया बेचारा आम आदमी.... XX-YY-XX-YY-XX-YY-XX-YY……..XX-YY के लूप में!
कौरवो के इस चक्र में बेचारा अभिमन्यु की तरह फसा है आज का आम आदमी.
इस दशा में उसे फिर से आवश्यकता है की वो अपने सबसे बड़े अधिकार “वोट” का प्रयोग सही ढंग से करे,
वोट किसे देना? क्यों देना है?.......................जैसे प्रश्न सोचकर ही उसे वोट देना चाहिये!
जिस तरह से एक आम आदमी साल में हजार पर्व मिलजुलकर मनाता है उसी तरह पांच साल में आने वाले लोकतंत्र के इस पर्व को अलग महत्त्व तो देना बनता है ! सभी दीवाली, दशहरा, होली, ईद, क्रिसमस में पुरे दिन व्यस्त रहते है, कुछ न कुछ खास करते है उसी तरह से क्या पांच साल में आने वाले इस त्योहार में १-२ घंटे का समय भी नहीं दे सकते ? देश आपका है, समाज आपका है हजार त्योहारों में से ये त्योहार आपका है तो सेलेब्रेसन भी आपका ही बनता है! इससे फायदा भी आपका है, दुसरे त्योहारों में तो आपका पैसा खर्च होता है लेकिन इस त्योहार में आपको मौका मिलता है की आप ऐसे व्यक्ति को चुन सके जो आपके खर्च कम कर सके !
घरो से निकलिए अपने हक़ के लिए अपना वोट डालिए, आपका वोट एक ऐसे समाज का विकास कर सकता है जिसकी भारत को आवश्यकता है, आज की राजनीती में कूटनीति का सहारा है यह तो सब जानते है नेता इतने गिर चुके है की जनता को बेकूफ बनाना उसने एक खेल समझ रखा है, पैसे के बदले वोट, दारु के बदले वोट, सामान के बदले वोट और ऐसे अनेक हथकंडे अपना रहे है जिससे बार बार भ्रष्टाचार का रौला होता है मंत्रिमंडल में, सरकार में और बदनाम करते है लोकतंत्र के मंदिर को... और बाद में कहते है ये इतना महंगा है वो इतना माँगा है.
अतः वो तो नहीं बदल सकते लेकिन जो बदल सकते है उनके बदलने से ही समाज बदल सकता है, यदि आप वोट डालने नहीं जा रहे तो कृपया इस बार जरुर जाईयेगा, ये उन वोट बेचने वालो के चहरे पर तमाचा होगा जो बेईमानी के दलदल में पिसे चले जा रहे है !
आम आदमी ने भाजपा- कांग्रेस की जिंदगी अच्छी तरह जी ली है, यदि इसी भ्रष्टाचार और बेईमानी भरी जिनदगी से प्यार है तो वैसा ही करिए जैसा अभी तक कर रहे थे लेकिन यदि समाज में परिवर्तन चाहिए तो आपको घरो से निकलना होगा और मताधिकार का प्रयोग सोच-समझकर करना होगा.
मै यहाँ एक ऐसी नवोदित पार्टी की बात जरुर करूँगा जो हाल ही में एक जन आन्दोलन से बनी है “आम आदमी पार्टी” कुछ लोगो से सुना है की वो आन्दोलन अन्ना हजारे का था, कुछ लोग कहते है की वो आन्दोलन अरविन्द केजरीवाल का था मेरी समझ से ये सब तो परे है लेकिन मै ये कहूँगा मै इस आन्दोलन में तीन दिन तक जेल में रहा था यह आन्दोलन तो मेरा था, हर उस आदमी का था जो सड़क पर आया था तो आना या केजरीवाल का कैसे हुआ? आन्दोलन जनता का होता है व्यक्ति विशेष का नहीं.. तो उस आन्दोलन से अन्ना या केजरीवाल के साथ-साथ पूरे देश का नाम आना चाहिए!
हाँ मै यहाँ ये बताना चाहुंग मै एक भाजपा नेता का बेटा हूँ और मेरे पिता जी को १९९१ के अयोध्या दंगो में पैर में गोली लगी थी लेकिन मै भाजपा से बिलकुल अलग हूँ और आज से दो साल पहले तक मुझे राजनीती में थोड़ा भी इंटरेस्ट नहीं था लेकिन उस जन आन्दोलन और उसकी मानगो ने मुझे राजनीती के बारे में सोचने पर विवस कर दिया, आखिर सवाल देश का था तो मुझे भी लगा की रास्ता गलत नहीं है और आज मुझे गर्व है की मै ऐसे लोगो के साथ खड़ा हूँ जिन्होंने अपना सब कुछ दांव में लगा रखा है जिनमे से मै खुद एक हूँ पापा से शर्त है आप की सरकार को लेकर, एक नौकरी से हाथ धो चुका हू, गाँव वालो से हजारो वादे है एक अच्छी सरकार को लेकर और अब तो दोस्तों को भी जबाब देना है की मेरी लड़ाई गलत नहीं थी. मै सही था मेरे साथ खड़े लोग सही थे पूरा देश सही था.. ऐसी दशा में बस एक ही उपाय बचाता है जो ऊपर के तीनो बिन्दुओ का हाल हो सकता है “आप- आम आदमी”..

एक साधारण सी गुजारिश है, प्रार्थना है, निवेदन है की लोकतंत्र के इस त्योहार का इस बार का उत्सव कुछ एतिहासिक होना चाहिए जिससे अगले पांच सालो तक आपको पछताना न पड़े, छोटे छोटे बच्चे एक ऐसे देश का सपना देश सके जो “सच में ईमानदार हो”....

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