'' मुझे इतना तो न मरो --राष्ट्रभाषा हिन्दी''........अंकुर मिश्र 'युगल'




''आज मै इस तरह से अपने ही घर में लज्जित हो रही हो की किसी के सामने अपने दर्द का व्याख्यान भी नहीं कर सकती !पहले तो मुझे इस बात का कष्ट रहता था की आतंकवाद, नक्सलवाद अदि मेरी माता को लगातार कष्ट दे रहे है, लेकिन उस दर्द का एहसास मुझे नहीं होता था ! अज जब लोग मुझे ही मारने लगे तो मुझे लगा की देश पर आज वास्तविक खतरा मधरा रहा है !और उस कष्ट की अनुभूति हुई जो मेरी मातृभूमि सदियों से सह रही थी ! जब श्री अटल जी ने संयुक्त राष्ट्र संघ में मेरे दर्शन सम्पूर्ण विश्व को कराये थे तो मुझे लग रहा था की मै भी अब इस सखा की सदस्य बन जाउगी !
लेकिन आज की इस व्यस्ततम दुनिया में मुझे नहीं लगता की मेरा वह सपना कोई पूरा कर पायेगा !जो करने वाला था वो असमर्थ हो गया है और जिसको सौपा गया था उसने मेरा विनाश करने की ठान रखी है! मुझे आज मेरी जन्मभूमि में ही कोई सरन देने वाला नहीं है कोई नहीं है जो मेरी दुःख भरी किलकारियों को कोई सुन सके !सब के सब मुझे कष्ट देने में लगे है.....................................................
महाराष्ट्र विधान सभा में मेरी बेइज्जती को सभी ने ख़ुशी ख़ुशी सह लिया ! किसी महान व्यक्तित्व ने मेरी पुरानी छवि को दोबारा वापस दिलाने का सहस किया था लेकिन मेरे ही भाइयो और उपासको ने उस व्यक्तित्व को ऐसा करने का दंड दे डाला !
आखिर इनकी क्या इच्छाए है जो ये मेरी बलि चढा कर पाना चाहते है !यदि ये मेरी वजह से कष्ट में है तो मुझसे कह दे तो मै अपने भाइयो,माताओ, गुरुओ,और देश्वशियो के लिए अपना भी बलिदान कर दुगीं ! lekin मुझे ऐसा भारत चाहिए जो विश्व का सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र हो जिश्मे तनिक भी बधाये न हो !
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"घोर कलयुग का सामना करती राष्ट्रभाषा के विचार"
प्रस्तुतकर्ता-- अंकुर मिश्र ''युगल''
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