लोकतंत्र

“लोकतंत्र” 
जब जब सोया,
क्या गजब सोया,
नेता को सुलाया,
जनता को रुलाया..
लफ्जो के खेल में सबको खिलाया
कभी जुमलो से
तो कभी हमलो से
कभी ख़ामोशी से
तो कभी बेलगाम शोर से
जनता में उम्मीदों को हर रोज खूब जगाया..
बिगडती है बनती है
बनती है फिर बिगडती है
और फिर बिगड़कर बनती है
अजीब लोकतात्रिक सरकार है
जो हर रोज जनता के साथ
एक नया खेल खेलती है ...
फिर हजारो रातो में कभी एक रात
इतिहास का भूगोल बदलता है,
सदियों से सोया लोकतंत्र
खुद के खातिर
एक रास्ता,
एक सफर,
एक हमसफर चुनता है,
ऐसी एक रात,
तारीख बनती है,
इतिहास बनता है,
लोकतंत्र जीतता है,
और इस रात जीतने की भी कोई हद नहीं होती है...
‪#‎YugalVani‬



(Photo Credit: Jagranmudda)