वैसे तो प्रतिदिन ही हिंदी के शब्दकोष में कोई न कोई नया शब्द आप नया जोड़ते ही है, उसका क्या मतलब है उससे आपको कोई मतलब नहीं होता, कभी बोल दिया, कभी अचनक से निकल गया या कभी कही से सुन लिया.. आज कुछ ऐसे ही शब्दों की बाते करते है जिनका प्रयोग और मतलब तो साधारण है लेकिन आज इनका स्थान उचाईयों पर है ‘आम आदमी’, ‘झाड़ू‘, ‘अरविन्द’, ‘केजरीवाल’ और भी बहुत सारे शब्द इस श्रेणी में शामिल है ! अर्थ तो सामान्य है लेकिन आज राजनीतिज्ञों की व्यक्तिगत जीवन में भी ऐसे शब्दों का प्रयोग दुर्लभ हो गया है ! भाजपा, कांग्रेस और अन्य कुछ डालो के लोग साधारण बोलचाल में भी साधारण आदमी को ‘आम आदमी’ कहने से डरते है, घर की सफाई करते समय भी झाड़ू को झाड़ू करने से डरते है क्योंकि इनका प्रयोग करने से लाभ मिलता है झाड़ू वाली आम आदमी की आम आदमी पार्टी को ! ये तो थी एक छोटी सी बात जो राजनीतिज्ञों को परेशान किये हुए है !
लेकिन एक आदमी तो इन शब्दों से ऊपर है “अरविन्द केजरीवाल” राजनेता अब इस नाम को लेने से भी कतराते है, वर्ना उन्हें नुकसान ही उठाना पड़ता है ! टीवी वाले पीछे पड़े रहते है, जनता साथ खड़ी रहती है,मंत्री सड़क पर चलते है, खले आसमान में शर्दी की रात में सोते है, फिर भी हक़ मांगते है..!
लेकिन कभी कभी शक होता है क्या सच में इस कलयुग में भी कोई ऐसा है जो जनता की भलाई के लिए इतना संघर्ष करे, या फिर सारा खेल टीवी के लिए है ? या ये कहे की अरविन्द एंड टीम टीवीखोर हो चुकी है ?
हाँ "टीवीखोर” भी एक नया शब्द है हिंदी के शब्दकोष में,इसका कापीराइट फ़िलहाल एक पत्रकार के पास सुरक्षित है, जो कभी “मै हूँ पत्रकार” की टोपी लगाने की बात करते है.. स्कूल टाइम अंग्रेजी से डरते थे लेकिन अब प्राइम टाइम को चलाते है ! रवीश कुमार, कभी जिससे मुलाकात आई.आई.टी. में होती है तो कभी दिल्ली की सड़क की चुनाव रैलियों में और कभी जयपुर के साहित्य मेले में, हमेशा नये शब्दकोष के साथ और ठोस रणनीति के साथ....
प्राइम टाइम देखते हुए एक नया शब्द सुनने को मिला टीवीखोर, वैसे तो वास्तव में मुझे भी इसका अर्थ समझ में नहीं आया लेकिन जो अर्थ मैंने समझा उसके अनुसार तो यही लगता है की “जो टीवी में हमेशा आना चाहते हो”, लेकिन अरविन्द और टीम को टीवीखोर कैसे कह सकते है, इस बात पर तो कोई बाबा भी विस्वास नहीं कर सकता. सलमान, सहरुख, कटरीना और प्रियंका भी हमेशा टीवी पर देखे जाते तो क्या ये भी टीवीखोर है? बाबा रामदेव, बाबा आशाराम भी टीवी पर बहुत आते है क्या ये बेचारे भी टीवीखोर है ? अरनब गोस्वामी को भी कभी कभी टीवी पर चिल्लाते हुए पाया जाता है तो क्या उसे भी टीवीखोर मान ले? और भी अनेक ऐसे लोग है जिन्हें मई अपनी समझ के हिसाब से टीवी खोर मान सकता हूँ... लेकिन अब भी संदेह है सभी लोग अलग अलग क्षेत्रो से है सभी को टीवीखोर कहना भी जायज नहीं होगा.. !
तो एक आन्दोलनकारी को या मुख्यमंत्री को टीवीखोर कैसे मान सकते है!
रवीश जी शब्द छोटा है, अब आपका कापीराइट है तो मतलब तो बड़ा ही होगा. कोशिश करूँगा की “टीवीखोर” का सही मतलब अगले प्राइमटाइम में समझ सकू... :)