"अच्छे काम में सौ अड़ंगे" वाली कहावत "अन्ना हजारे" के लोकपाल बिल में सत्य होती नजर आ रही है!
वैसे तो कभी इन नेताओ को विकास का नाम तक याद नहीं रहेगा क्योकि वास्तविक जीवन में इससे इनका कोई नता नहीं होता ये सब राजनैतिक जीवन की बातें होती है,लेकिन कोई अन्य किसी अच्छे कार्य के लिए कदम उठाये तो उसे पीछे हटाने की पूरी कोशिश करते है, और इस कम में सारे राजनैतिक प्रतिद्वंदी एक होते नजर आते है! इन सबकी यथार्थता के लिए हम नजर डालते है "अन्ना हजारे" के भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू किये गए अभियान की, जिसमे लोकपाल बिल की मंजूरी महत्वपूर्ण थी या ये कहा जाये की ये पूरा अभियान लोकपाल बिल को पास कराने के लिए ही था, जो भ्रष्टाचारियों के लिए एक "रूकावट" है! आज उसी बिल को और उससे जुड़े लोगो को राजनेताओ ने अपने मुद्दा बना लिया है! इक्कीसवीं सदी की इस मंदी में नेताओ के पास मुद्दों की मंदी है इसी कारण उन्होंने इसे ही नया मुद्दा बना डाला! नेताओं को सत्यता या असत्यता से मतलब तो होता नहीं है उन्हें केवल प्रतिद्वंदिता से मतलब होता है, वो तो केवल उस बात पर बात करते है जिस पर कोई अन्य दल समर्थन कर रहा होता है! लोकपाल बिल से जुड़े लोगो में प्रशांत भूषण, संतोष हेगडे, अरविन्द केजरीवाल आदि है, लेकिन आज का दृश्य यह है की इन सभी लोगो में किसी न किसी प्रकार की कमियों को निकलने का काम नेताओ ने शुरू कर दिया है, और ऐसा करने वाले कोई साधारण नेता नहीं बल्कि काग्रेस से दिग्गज दिग्विजय सिंह, जिन्हें मध्य-प्रदेश की राजनीती ने पानी पिला दिया, अमर सिंह जिन्हें सपा से बहार कर दिया गया, इनके अलावा ऐसे तमाम नाम है जो इस कार्य में अडंगा दल रहे है!
पहले तो खुद कांग्रेस ने पूरा जोर लगाया की इस बिल को पास नहीं कराया जाये, लेकिन उसे जनता के सामने झुकना पड़ा?
अब यहाँ प्रश्न उठता है की क्या ये लोग सरकार का ही काम कर रहे है? या फिर ये उन्ही २६ लोगो की श्रेणी में है जिनकी लिस्ट सरकार के पास है-जिनका काला धन स्विस बैंको में जमा है ! अब एक प्रश्न पर और बात कर लेते है जिसे खुद जनता उठा रही है- अन्ना हजारे उस समय कहा थे जब देश अन्य परेशानियों से गुजर रहा था, उदाहरणार्थ- महाराष्ट्रियो का उत्तर-भारतियों पर हमला आदि !
किसी इतिहासकार ने एक प्रश्न उठाया है की उस कमेटी में वही लोग क्यों जिन्हें अन्ना हजारे ने चुना है!
प्रश्न कुछ भी हो परिणाम कुछ भी निकले पर यहाँ एक बात पर हमेशा सोचना रहेगा की देश के किसी भी विकास के कार्य में इतनी वधाएं क्यों आती है, यदि हम अन्य मुद्दों पर (जैसे- महिला आरक्षण, पोटा, सीमा निर्धारण आदि ) नजर दे तो इन पर सभी की "एक राय" हो जाती है परन्तु आज देश की सबसे बड़ी समस्या के निदान के पहले कदम में इतनी परेशानियां क्यों ? यही वो घाव जो हमारे लिए नासूड बन चूका है, और यदि समय रहते हमने इस नासूड से बचने का कोई उपाय नहीं सोचा तो एक बात पक्की है यद् मुद्दा एक दी देश में गृह युद्ध छिडवा देगा ! देह के संचालको को समझाने की जरुरत है की देश के विकास के प्रत्येक मुद्दे को अपन राजनैतिक मुद्दा ण बनायें, कभी कभी देश को देश समझते हुए विकास के मुद्दों पर भी सोच लिया करें! जो देश हित में, राज्य हित में और राजनीति हित में है !!!!