क्या "स्त्री" होना अपराध है ?

क्या "स्त्री" होना अपराध है ?
दिन भर ताना सुन
कर भी,
कितनी खुश होती है वो...
बिना 'खाने' के 
दिन गुजर जाता है
उसका...
बिना 'शिकायत' के 
जिंदगी गुजार देती है 
'वो'...
फिर भी उस पर ये 'इन्सान' 
इतना 'शैतान' क्यों है ?
हैवान क्यों है ?
क्या अपराध किया जो वो "स्त्री" हुयी ?
राते बिता देती है वो 
रोटी से बाते करके...
अगर एक दिन 'मै' देर से आया...
घर में अकेले पूरी 'जिंदगी'
बिता देती है 'वो' 
सीमा में खड़े 'पति' के लिए....
साथ कोई हो न हो
'वो' हमेशा साथ खड़ी होती है...
कभी भी,
कही भी,
कैसे भी,
फिर भी उसकी सांसो में चीत्कार क्यों ? 
क्या अपराध है उसका 
यही की वो "माँ", "पत्नी" या "बहिन" है ?

न जाने कितने 'वार'
व्रत में गुजर देती है वो, 
हमेशा 'पति' के जूठन से 
खोलती है सारे व्रत वो,
फिर भी मुस्कराने पर 
"बदचलन" बता दिया उसे... 
घर से बाहर निकली 
तो 'दामिनी' बना दिया उसे...
आखिर अपराध क्या था ?
यही की वो "नारी" थी ?
#YugalVani
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