"पापा...” कुछ कहना था उस रोज

"पापा...”
कुछ कहना था उस रोज
मगर मेरे लफ्जो में एक डर था,
न जाने किसका, किस बात का
कई बार सोचा
मगर हिम्मत नहीं थी
सोचकर फिर भूल गया

कुछ कहना था उस रोज
मगर अभी तक कुछ कह न पाया
पापा जब मै घर से निकला
तो भटकता रहता था
स्कूल से घर और घर से स्कूल
बस कमरे के चार कोने
और एक लम्बी सड़क
से अच्छी दोस्ती हो गयी थी मेरी...
मगर बचपन वाला
आपका कन्धा अब नहीं था यहाँ,
हंसने और घूमने के लिए...
कभी कभी रात को नींद आती
उसने भी एक प्यार की
ख्वाहिस पाल रखी थी आपकी...
यहाँ कभी टीचर में तो कभी किसी बुजुर्ग में
देखने की कोशिश करता हूँ आपको,
मगर कुछ एहसास नहीं होता,
उनमे वो बात नहीं होती, जो आपमें है...
और भी बहुत कुछ है जो
कभी कह न पाया...
आप थे तो सब कुछ साथ था
आपका गुस्सा था मगर एक हिम्मत भी थी,
आपकी व्यस्तता थी मगर एक प्रेरणा भी थी,
आपके साथ हर सुबह  नई किरण होती थी
हर दिन एक  नई खुशी होती थी,
हर पल, हर दिन
एक नयी सफलता होती थी,
मगर अब इतनी दूर,
हर दिन घड़ी के घंटे गिनता हूँ
और हर रात नींदों में लम्हे सजाता हूँ..
इतना सब कुछ था
मगर कभी कह न पाया...
 #YugalVani