फाँसी पर हँसते हँसते चढ़ा था, मगर क्या इसलिए... ?

२३ मार्च, तारीख तो सबको याद रहती है, जिनको नहीं रहती है अगल-बगल वालो से या फेसबुक-ट्विटर से पता चल जाता है की आज के दिन १९३१ में किसी ने जान दी थी देश के लिए किसी ने ! हाँ अपना अपना जीवन दिया था इस देश को !
एक दिन अचानक से देश की हालत पता करने वो शहीद सैर पर निकला ! टहलते टहलते शाम हो गयी, किसी डगर से गुजरते हुए उसने एक ‘जमादार’ से पूछा, सब सही है न अब यहाँ, सब लोग आज़ाद है न, हमारी माँ- बहने सुरक्षित है न, खाना पीना मिलता है न सबको अब यहाँ, कोई किसी को लूटता तो नहीं है, किसान आराम से है न अब देश में..... आदि अनेक सवाल उस जमादार से पूंछ डाले !
बिना रोके ‘शहीद’ ने मुस्कुराते हुए बोला अब तो बहुत आगे बढ़ गए होगे हम, बहुत बदल गए होगे हम अब, ८२ साल हो गए, काफी वक्त बदल गया अब, सब मिलजुल कर रहते होगे सब.....
‘शहीद’ और सवाल करते इससे पहले जमादार ने पूंछा कहा घूम रहे हो, कैसी बाते कर रहे हो.... और उसका दिमाग चेहरे पर गया, जमादार मन ही मन सोचने लगा कही देखा है, पहचाना सा चेहरा है.... कही तो देखा है...
आपको कही देखा है’ इतना पूंछते पूछते उसे अचानक से याद आया ये ‘भगत सिंह’ है, उसने अपने बच्चो की किताबो में पढ़ा था !



जमादार बोला “आप तो भगत सिंह हो न, जो हिंदुस्तान के लिए ‘शहीद’ हो गए थे...?”
“हाँ मै भगत सिंह ही हूँ” मुस्कुराते हुए ‘शहीद’ बोले, अब तो सब ठीक है न मेरे देश में... ?
जमादार बोला हाँ साहब सब ठीक तो है, मगर ये “मेरे देश में” समझा नहीं ? अब आप पाकिस्तान के लाहोर में हो...
आपका मुल्क ‘हिदुस्तान’ सरहद के उस पार है !
इतना सुनते ही ‘शहीद’ पलट कर चल दिए, शांत, बिना किसी मुस्कान के ! मन ही मन सोचने लगे किस लिए “शहीद” हुआ था मै ?
चेहरे पर हंसी नहीं थी अब... आखें भीग आयीं थी ....
वोह इतना कमज़ोर नहीं था.. फाँसी पर भी हँसते हँसते चढ़ा था वह ...... पर आज आखें भीग आयीं थी.. जान दी थी उसने.... जान.....

मगर क्या इसलिए ‘जान थी उसने’ ?