नेता जी आप इतने समझदार होते तो देश का विकास ही कर रहे होते : अंकुर मिश्रा "युगल "

    उत्तराखंड जिस परिस्थिति से गुजर रहा है  के सभी नागरिको, संस्थाओ को राजनैतिक दलो को मिलकर सहायता करने करने  जरुरत है ! जहाँ हजारो जाने जा चुकी है, और अभी भी हजारो जाने फसी हुयी है , मुझे नहीं लगता ऐसे समय में भी किसी को लड़ने  की जरुरत है ! मेरा सलाम   है उन भिखारियों को जिन्होंने अपने भीख के मांगे गए पैसो से  सहायता में सहायता की , उन रिक्शा चलाने  वाले चालको को जिन्होंने अपने पेट काटकर उत्तराखंड के लोगो को सहायता पहुचाई !  सेना के उन जवानो को जो अपनी जान पे खेलकर लोगो की सहायता करने पहुच गए , और उसमे कुछ सहीद भी हुए ! उन सभी सहायता प्रदात्ताओ को सलाम है जिन्होंने किसी भी तरह से देश की  कठिन परिस्थित में सहायता की !
      लेकिन यहाँ  दिल  दहलाने वाली बात  ये है की जिनसे ऐसे समय पर  ज्यादा सहायता की उम्मीद होती है वही सरकार निकम्मापन  दिखाती है, खुद के राजमहलो में हजार रुपये की पर प्लेट पर भोग चलाते है और बाहर आकर  से गुजारिश करते है की उत्तराखंड की सहायता करे, जनता तो सहायता कर ही देगी ! लेकिन क्या इतनी  समझ नहीं है की  यदि एक दिन ये राजभोग नहीं खायेगे तो देश के  कुछ जरुर कर सकते  है ! 
            वही  दूसरी कहानी दो नेता   उत्ताराखंड जाकर इसलिए लड़ते है की वो जनता की सहायता करेगे ! अरे मालिको आप दोनों मिलकर भी सहायता कर सकते हो ! 
        विपत्ति है !  खैरियत  रहे कभी आप पे न आये, नहीं तो कोई सहायता के लिए भी नहीं आएगा ! 
एक  प्रदेश  मुख्यमंत्री वहा सहायता के लिए जाते   है तो उसके लिये खबरे उडती की  अपने लोगो को बचा लिया बस, अरे इतना तो एक साधारण आदमी भी सोच सकता है की जो काम सेना दस-पंद्रह दिनों में नहीं कर पायी वो काम कोई एक दिन में कैसे   कर सकता है लेकिन ये तो नेताओ की खाशियत है की किसी दूसरे नेता की अच्छाइयों को देख ही नहीं सकते है ! और ये मामला वही  नहीं रुक  , बिहार के महाबुद्धिमान  मंत्री जी भी बोल पड़े 'हम दिखावा नहीं करते' अरे  दिखावा तो यही  बोलकर कर दिया मान्यवर ! खैर आपमें इतनी समझ होती तो आप देश के विकास में ही  सहायता नहीं करते ! एक ऐसे दल और व्यक्ति से अलगाव नहीं करते जिससे देश को कुछ सम्भावनाये  है !
 वैसे इन राजनैतिक बातो का कुछ मतलब  नहीं था यहाँ लेकिन वास्तविकता से  भी नहीं भागा  जा सकता और कभी भी याद आ जाती है ये तो !

यहाँ मेरी यही गुजारिश है  नेता जी आप कृपया शांति  बनाये रखे, आपका  चुनाव समय अभी दूर है आप उसी में बोलियेगा !  अभी जनता को जो करना है वो कर रही है !

धर्मनिरपेक्षता को नया मुद्दा मत बनाइये, जनता सब जानती है उसे विकास चाहिए !

  एक  हिदू बाहुल्य  देश  का  नेता कहता है है की वो धर्मनिरपेक्ष है, इसमें मिडिया उनके पीछे पड़  जाती है और उस मुद्दे को देश का सबसे बड़ा मुद्दा बना देती है ! वही दूसरी ओर  वह नेता   उनके साथ काम कर चूका है जिन्हें अब वह खुद धर्मनिरपेक्ष नहीं मानता ! केवल एक व्यक्ति ने उनकी सोच बदल दी, कारण क्या हो सकता है : व्यक्तिगत विवाद या प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी ! आज ही मैंने धर्मनिरपेक्षवाद की  परिभाषा पढ़ी जिसमे खा गया है : 
सभी धर्म के लोग कानून, संविधान एवं सरकारी नीति के आगे समान है।
तो क्या भाजपा के शाशनकल में ऐसा नहीं था, क्या गुजरात में ऐसा नहीं है ! क्या गुजरात में दो संविधान चलते है हिन्दुओ के लिए अलग और मुसलमानों के लिए अलग ?
प्रिय नेता जी आप बिहार से आगे बढिए , बिहार ने आपको अपनी जिम्मेदारी दी थी क्योंकि उन्होंने सोचा था आप जिम्मेदार और समझदार है , लालू जी की तानाशाई का विकल्प है , लेकिन आप ऐसे है तो आपने बिहार की जनता के साथ विश्वासघात किया है ! देश के आधुनिक विकारो को मिटाने की कोशिश करिए उन्हें बढ़ने की नहीं देश वैसे ही गर्त में   जा रहा है , देश को विकल्प की जरुरत है !
एक व्यक्ति जिसे देश की जनता चाहती है की वह देश की बागडोर संभाले, उस बागडोर के लालची मत बनिए !
            एक दल है जिसके अन्दर से रोज सुबह कुछ कीड़े पकडे जाते है, जिन्होंने भ्रष्टाचार को अपनाया है ! एक दल है जो देश के लिए नया है प्रतिभा होने के बव्जीद अनुभव की कमी है ! ऐसी परिस्थिति में आप और भाजपा ही एक विकल्प है ! सोचना आपको है बिहार ही आपका घर है या देश को घर बनाना है ! आपको विकास से भी कुछ मतलब है या फिर बस आपको कुर्सी चाहिए !
धर्मनिरपेक्षता को नया मुद्दा मत बनाइये, जनता सब जानती है उसे विकास चाहिए !