"रोबोट" के साथ एक नए युग की शुरुआत !!!!अंकुर मिश्र "युगल"



आज देश को विकास के लिए जिन महत्वपूर्ण तथ्यों की जरुरत है,उनकी पूर्ति के लिए हमारा "बालीबुड" भी आगे आता नजर आ रहा है !हाल ही में आयी "शंकर जी " के निर्देशन एवं "रजनी कान्त" के अभिनय की फिल्म "रोबोट" के जरिये जो चलचित्र समाज को दिखाया गया है इससे हमें कुछ सोचने पर विवस जरुर होना पड़ता है वो अलग बात है की विश्व के अनेक सिनेमा ऐसी फिल्मो को बहुत पहले से दिखाते आ रहे है ,परन्तु हमारे भारत में ये ऐसी पहेली फिल्म है जिसमे मानव, तकनीक के बारे में जरुर सोचेगा !दशको से चली आ रही बालीबुड जिसने अभी तक अधिकतर "प्यार","मोहब्बत" वाली फिल्मो का ही निर्माण किया है उसने "रोबोट" को बनाकर बालीबुड की नयी नीव राखी है !फिल्म के जरिये जो प्रदर्शन किया गया है वास्तव में सराहनीय है ,"इलेक्ट्रोनिक्स के प्रयोग से अभिनेता जिस तरह एक मानव सामान आकृति को तैयार करता है जो बाद में एक गलत आदमी के हाथ में पहुच जाने के कारन मानव की ही दुश्मन बन जाती है,सोचने के लिए बिबस जरुर करती है ,हमारे छोटे-छोटे बच्चो को फिल्म से बहुत कुछ सिखाने को मिलता है !
मै यह नहीं कह रहा की यह विश्व स्तर बहुत अच्छी फिल्म है, मै तो यह कह रहा हु की यह फिल्म भारत के लिए बहुत ही अच्छी है ,आधुनिकता का सन्देश ,आज पर विज्ञानं की पकड़,विज्ञानं के गलत स्तेमाल का नतीजा एवं भ्रष्टाचार रूपी अभिशाप को फिल्म ने दिखाकर एक मिशाल कायम की है जो शराहनीय है !!!!

सर्वश्रेष्ठ करने का सर्वश्रेष्ठ मौका !! अंकुर मिश्र"युगल"



३ अक्तूबर में प्रवेश करते ही हमारे इतिहास में नया इतिहास जुड़ने को तैयार खड़ा है,आज हम उन खेलो के आयोजन की सुरुआत कर रहे है जो हमरे लिए अदुइतीय है जिसमे १-२ नहीं बल्कि ७१ देशो के लगभग ५००० खिलाडी अपने अपने राष्ट्रों के लिए संघर्ष करेगे !
जब हमें इन खेलो के आयोजन की जिम्मेदारी सौपी गई थी तब से अब तक विश्व के कुछ राष्ट्रों को छोड़कर सम्पूर्ण विश्व ने हमारी निंदा की ,हमारे ऊपर टिप्पणिया की !पर वो शायद भूल गए हम वही "सोने की चिड़िया" वाले हिन्दुस्तानी है जिसने कभी आपका पेट "पला" है ,आपको ज्ञान दिया है ,आपमे सदाचारो का "अंकुरण" किया था ,और आज वो हमसे ही आंख मिलाने की कोशिश कर रहे है !हमारे १९५१ब के खेलो को भूल गए क्या !!
विश्व के वासियों हमारे काम करने के तरीके को समझो हम किसी काम का ढिंढोरा नहीं पीटते हमारे परिणाम हमारे कार्य को सर्वश्रेष्ठ सिध्ध करते है,और बताते है की हम वही अर्यवासी है !
और मै यहाँ यह बताकर ढिंढोरा नहीं पीट रहा बल्कि वास्तविकता बता रहा हूँ ! हमारे "राष्ट्र मंडल" खेल सर्वश्रेष्ठ होगे हमारी सुरक्षा को ढीला समझने वाले राष्ट्रों को पता होना चाहिए हम "शांति" प्रिय है, हमारा पहला हथियार "अहिंसा" है ,परन्तु अब यहाँ जरुरत पड़ी तो हम अपने दूसरे हथियार "हिंसा" का उपयोग हमारी शांति के विनाशको के ऊपर जरुर करेगे !
हम अपने राष्ट्र मंडल खेलो को सर्वश्रेष्ठ बनायेगे, हम १३० करोण भारतीय उन ५००० प्रतिभाओ का उत्साहवर्धन करेगे!हम सब उनके साथ है आज देश में हर नागरिक के अन्दर जोश और जज्बे का जो संग्रह है उससे हम निहाल हो जायेगे !