अपना दीप जलाना होगा : अंकुर मिश्र "युगल"


खुली चुनौती देता हमको , बढ़ता हुआ अँधेरा !
पल-पल दूर जा रहा हमसे, उगता हुआ सवेरा !!
निशा नाचती दिशा-दिशा में उडी तिमिर की धुल !
अपना दीप जलना होगा , झंझा के प्रतिकूल !!
आत्मा की चिर दीप्त वर्तिका, को थोडा उकसा दो !
मांगो नहीं ज्योति जगती से, लौ बन के मुस्का दो !!
जगमग जगती के “अंकुरण” से, खिले ज्योति के फूल !
माथे से फिर विश्व लगाये, इस धरती की धुल !!
अमा ,क्षमा मांगे भूतल से, भागे सघन अँधेरा !
अवनी का अलोक स्तंभ, बन जागे भारत मेरा !!
आर्य संस्कृति के परवाने, आओ सीना ताने !
दीप बुझाने नहीं , ज्वलित पंखो से दीप जलाने !!
तब समझूंगा तुम जलने की, कितनी आग लिए हो !
और दहकते प्राणों में, कितना अनुराग लिए हो !
........ ""श्री लाखन सिंह भदौरिया जी "