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मानते है प्रगति पथ पर हम बहुत आगे बढे हो,
बदलो से और ऊपर चाँद-तारो पर चढ़े हो !
जलधि अम्बर एक करके स्वर्ग धरती पर बनाए ,
और मरुस्थल पर भी तुमने मृदु अम्बु के अंचल बहाए !
ब्रह्म का नितशोध करके ब्रह्म ज्ञानी तुम कहाए ,
मौत के मुख से भी जिंदगी तुम वापस ले आए !
चाहते क्या कोकिला भी गीत अब गए नही ,
क्या मधुर पुष्पों के उपवन है तुम्हे भाए नही !
नाज से मुक्ति की ऐसी एक दुनिया बनाओ ,
शान्ति हो सदभाव हो विध्वंश के सभ नाश हो!!
By
Ankur ''Yugal'' Mishra