भारत में किसान का मतलब : “बेचारा किसान”, “बीमार किसान”, “गरीब किसान”

एक और किसान ने सबके सामने, फिर से आत्महत्या कर ली ! वैसे तो पहले भी कई किसानो ने आत्महत्या की है मगर इस बार बस नया ये थे की उसने सबके सामने की ! पूरे देश के सामने की, उसको मरते हुए देखने वालो में केवल रैली वाले लोग नहीं थे, उसे टीवी देखने वालो ने, अख़बार पढने वालो ने, सबने... सबने उसकी मौत को सुना, देखा और पढ़ा ! पत्रकारों और राजनेताओ ने उसकी मौत पर राजनीती शुरू कर दी ! कुछ महान लोग तो यहाँ तक बोल बैठे की वो किसान नहीं था ! एक व्यापारी था, उसने अच्छे कपडे पहन रखे थे, पगड़ी का धंधा था उसका, एक गाड़ी भी थी उसके पास, वो किसान कैसे हो सकता है ? बताइए ?
वाह क्या परिभाषा है ‘किसान’ की मेरे देश में... जो फटे-पुराने कपडे पहने वही किसान होता है, जिसके पैर मे प्लास्टिक के काले जूते हो वही किसान होता है, जिसके सर पर मैली पगड़ी हो वही किसान होते है ! जिसके पास लकड़ी की बैलगाड़ी और हल हो वही किसान होता है !
मेरे देश में किसान को कोई हक़ नहीं है वो अच्छे कपड़े पहने, गाड़ी रखे, अच्छे जूते पहने, अच्छे घर में रहे... कोई हक़ नहीं है, किसान का एक अच्छी जिंदगी जीने का !
भारत में किसान का मतलब : “बेचारा किसान”, “बीमार किसान”, “गरीब किसान”...
एक अजीब छवि बना रखी है हमने अपने अन्नदाताओ की, किसान कितनी भी मेहनत करले, उसकी ये छवि बदलती ही नहीं है... या तो हम बदलना ही नहीं चाहते !



कल ‘शहीद’ हुए उस किसान ने अच्छे कपडे पहन रखे थे, इसलिए उसकी मौत पर ‘भी’ उंगलिया उठ रही है, इससे अच्छा है किसान गंदे कपडे ही पहने कम से कम “किसान” तो कहलायेगा, उसे अपने नाम के लिए लड़ना तो नहीं पड़ेगा ! राजनीती वाले उसकी मौत पर राजनीती करने में लग गए, मीडिया वाले ‘शेखीबघारने’ में लग गए !  मौत, मौत होती है , मौत दुखद होती है, मौत में पीड़ा होती है फ़िर वो चाहे किसी की भी हो। जंग में भी अगर दुश्मन मारा जाए तो जीत का जश्न मनाया जाता है, दुश्मन की मौत का नहीं, और गजेन्द्र कोई दुश्मन तो नहीं था, एक किसान था मेरे देश का अन्नदाता था ।
कभी आपने सोचा है, आप हमेशा बड़े बड़े मॉल में जाकर ‘एसी’ में रखी हरी सब्जियां, दाल, आटा और बहुत सारा रशोई का सामान लाते हो, वो भी ‘एसी’ में बिना किसी परेशानी के ! जनाब ये वही चीज़ें हैं जो किसान भरी धूप में कड़ी मेहनत कर अपने खेतों में उगाता है। मॉल मे आपको इन चीजो की चमचमाहट तो खूब दिखती होगी मगर क्या आपको कभी इसके पीछे का किसान का ‘पसीना’ दिखा है ! नहीं !! और तो और अगर वो किसान अपने फटे पुराने कपड़ो के साथ माल में आ जाये तो लोग कितनी बाते सुनाते है उसे, “जाहिल और गंवार” बोलकर बोलकर !
खैर छोडिये किसान तो रोज मरते हो रहते है बस एक और मर गया ! क्या घट गया मेरे इस देश का ! आप आराम से ‘एसी’ में बैठकर टीवी देखिये, कहीं कोई दूसरा किसान आपके लिए खाने का सामान बना रहा होगा कड़ी धुप में, अपने खेत में !


नई किताब

नई किताब 
मतलब एक नई दुनिया 
एक नया चेहरे,
एक नया शहर,
नये नये विचार 
सब कुछ नया, एक-दम नया 
एक नई किताब के साथ आता था
बाबा के साथ पढने को 
मगर,
मगर बस कल तक...
आज वक्त के साथ 
सब गुजर गए 
'बाबा' भी और वो 'किताबे' भी 
कल उस नई किताब के 
पन्नो के 'बीच' 
एक नया 'खिला' हुआ 'फूल' रखा था,
सब तल्लीन थे इकरार में, 
प्यार में 
कभी फूल पन्ने की खुसबू सूंघता
तो कभी पन्ना फूल की खुसबू
मगर,
मगर बस कल तक...
आज... आज, 
बच्चो के हाथ में तो एक नयी 'ई-किताब' है 
जिससे 'बाबा' बेहिसाब और
बच्चे की परेशानियाँ लाजबाब है
'आज' की इस नई किताब के साथ...
परसों तक 'वो' बच्चे 
बिना कलम, बिना दवात और बिना तख्ती 
को जाने... पहचाने 
पेड़ो के पत्तो से कहानियों 
की एक किताब बना लेते थे
अजनबी चेहरों के साथ अजनबी शहर में
मगर आज मुकम्मल है एक नई 'ई-किताब' 
"बाबा" की किताब से बहुत दूर...
‪#‎YugalVani‬

'मोहब्बत' न रही अब

'मोहब्बत'
न रही अब
ख़त्म हो गयी,
मर गयी
इक लाश बन गयी...
अब उसके साथ है
एक चादर
लफ्ज,
अल्फाज
और शायरी की...
'दिल में बाकी थी
जो अर्जियां
सब इन्जार में है
अब दफन होने के...
कल तक जो जिंदगी थी
अब... अब वो मोहब्बत
पड़ी है अकेले लाश बनकर...
लाश से 'अल्फाजो का चद्दर'
इस कदर चिपटा है
मानो इन्ही की मोहब्बत थी
मै, तू  और हम तो बस
बस
परवाने थे,
बस मोहब्बत की खिदमत के लिए
लायक नहीं थे मोहब्बत के.
#YugalVani


वो नन्ही सी यादें

वो नन्ही सी यादें 
न जाने... न जाने कहाँ खो गयी
अंधेरे से उजाले में लाया
संवारा और निखारा था उन्हें
कुछ अंकुरि'त रिश्तों के भरोशे
वो आंगे बढ़ाया था उन्हें...
नन्ही यादें
बिन गम, बिन खता
हर चीज देख मुस्कुराई थी वो,
सपनो को सर पर चढ़ाकर बेठी थी
मगर बस कुछ देर
आसमान में कुछ सपने उड़े भी थे
मगर बस कुछ देर
चाँद सी सजी थी वो यादे... नन्ही
न जाने... न जाने कहाँ खो गयी
'युगल' यादें 'तेरी और मेरी'
यादों में बदल गयी
अब मै अकेला,
यादें अकेली...
दोनों लिपटे है,
एक दूजे के साथ
रात के डर और
पिघली यादो के लबरेज से..
वो नन्ही सी याद
न जाने... न जाने कहाँ खो गयी...
#YugalVani



इंसान, दिल और बारिश

बारिश..
एक बारिश ने
कहा कुछ भी नहीं
ऐसी भी आदते होती हैं
दिल...
मगर दिल ने
सबकुछ सुना
ऐसी भी आदते होती हैं...
बारिश...
बारिश का वो शोर
जिसमे शहर के कुछ घर
शहम कर बैठ गए...
बारिश की वो ठंडक
मानो जैसे समसफ़र के साथ
हम खुद बैठ गए...
इंसान...
बारिश के उस पानी में
कुछ इंसान बेखौफ भीगातें रहे
तो कुछ बस अपने
मोबाईल और पैसे लपेटते रहे...
इंसान, दिल और बारिश
सब मनचले है
अपनी मर्जियों पर चलाते है
अपना कारोबार...
बिन बताए - बेवक्त
आते है और चले आते है
अजीब अदब है
ख़राब लगता है कभी-कभी?
‪#‎YugalVani‬