एक चेहरा बस स्टाप के एक कोने पर नीचे की और कुछ देखता हुआ खड़ा था, न जाने कितनी बसे उसके सामने से गुजर चुकी थी कईयो ने पूंछा भी.... कहा चलना है मैडम...? मगर कोई जबाब नहीं था ! बस खड़ी थी शांत... बिल्कुल शांत... जमीन पर पड़े कई टिकट उसके पैरो से टकरा टकराकर खेल रहे थे ! कुछ ऑटो वाले सामने खड़े थे जो घूर-घूरकर थक गए थे और उम्मीद छोड़ चुके थे ! हर मिनट वहाँ एक नयी बस होती थी और नए चेहरे दिखाई दे रहे थे, मगर वो चेहरा अब भी वही था!
शाम होने लगी थी सूरज ने भी घर जाने की तैयारी कर ली थी तभी सामने से कुछ स्कूल की बसे आती दिखायी दी, एक के बाद एक करके कई बसे वहा रुकी और आगे निकल गयी... हर बस के आने के साथ उसके भाव बदल जाते थे बच्चो के बस से उतरते ही वो कुछ आगे बढती थी और फिर कुछ सोचकर पैर पीछे खीच लेती !
अब स्कूल की आखिरी बस भी निकल गयी, शाम हो गयी रात होने लगी थी....
धीमे धीमे उस लड़की ने अपने कदम अपने घर की तरफ मोड़ दिए और मायुस सा चेहरा लिए घर चली गयी...!
मैंने कई दिनों तक ये नजारा देखा फिर फिर इस छोटी सी दुनिया की रोज की इस कहानी की जानने की इच्छा हुयी, ये कब से चल रहा है ? कब तक चलेगा ? रविवार को छोड़कर वो लड़की पूरे दिन यहाँ क्या करती है? इन सब प्रश्नों के साथ मै सुबह सुबह बस स्टाप पर पहुच गया ! एक पुरानी पान की दुकान नज़र आयी, बस अभी अभी खुली थी, वो बूढ़ा ताला खोल कर चाबी जेब में ही रख रहा था....
एक लड़की जो उस कोने में रोज खड़ी होती है ? दिनभर यही खड़ी रहती है ? न कही जाती है, न कोई मिलने आता है ? बाबा क्या आप उसे.... उसे जानते हो ?
सर आपको कैसे पता ये सब, ये तो पिछले छ: महीनो से चल रहा है, रोज यही खड़ी होती है वो बेचारी.... किसी ने नहीं पूंछा, मगर आप क्यों ? क्या आप .... क्या आप जानते हो उसे ?
नहीं.. मैं नहीं जानता... पर कुछ दिनों से देख रहा हूं.. सोचा आज पता कर लूं.... कौन है ये लड़की..? ओर ये सब क्या है..? कुछ पता है आपको?
बूढ़ा कुछ देर तक चुप रहा, फिर बोला सर.. छ: महीने पहले की बात है, ये लड़की रोज बस स्टाप आती थी एक छोटे बच्चे के साथ, बड़ा ही शांत था स्कूल बैग के साथ होता था साथ में टिफिन होता था ! दोनों हँसते हँसते आते थे और फिर बच्चा स्कूल बस से स्कूल चला जाता था और माँ घर को... इसी तरह शाम को वो बच्चे को लेकर ख़ुशी से घर चली जाती थी...... !
... और एक दिन इसी बस स्टाप में....
कहते कहते अचानक वो बूढा रुका और फिर कुछ सोचकर बोला, सर... गेंद उस पार गयी... और ... वो बच्चा अपनी माँ से हाथ छुड़ा ... उस गेंद के पीछे दौड़ा....
“माँ’ थी उस बच्चे की ये लड़की...”
इस “थी” शब्द ने मुझे पूरा झकझोर दिया !
मुझसे भी कुछ कहा न गया.... मुझे मेरा जवाब मिल चुका था ..
मैं अब भी रोज़... उसको देखता हूं.... वो माँ अब भी उस स्कूल बस का इंतज़ार करती है.... अब भी... स्कूल के बच्चे अब भी वहीँ उतरतें हैं ... और वो स्कूल की पिली बस.. रोज़ आती है.... वो क्या सोचती है ... उसे कैसा लगता है.... यह शायद ... शब्दों में कहना कठीन होगा.....
शायद इतना कहना काफी होगा... की वो अब भी रोज़ आती है उस बस स्टॉप पर...
हाँ वो एक ‘माँ’ थी....
शाम होने लगी थी सूरज ने भी घर जाने की तैयारी कर ली थी तभी सामने से कुछ स्कूल की बसे आती दिखायी दी, एक के बाद एक करके कई बसे वहा रुकी और आगे निकल गयी... हर बस के आने के साथ उसके भाव बदल जाते थे बच्चो के बस से उतरते ही वो कुछ आगे बढती थी और फिर कुछ सोचकर पैर पीछे खीच लेती !
अब स्कूल की आखिरी बस भी निकल गयी, शाम हो गयी रात होने लगी थी....
धीमे धीमे उस लड़की ने अपने कदम अपने घर की तरफ मोड़ दिए और मायुस सा चेहरा लिए घर चली गयी...!
मैंने कई दिनों तक ये नजारा देखा फिर फिर इस छोटी सी दुनिया की रोज की इस कहानी की जानने की इच्छा हुयी, ये कब से चल रहा है ? कब तक चलेगा ? रविवार को छोड़कर वो लड़की पूरे दिन यहाँ क्या करती है? इन सब प्रश्नों के साथ मै सुबह सुबह बस स्टाप पर पहुच गया ! एक पुरानी पान की दुकान नज़र आयी, बस अभी अभी खुली थी, वो बूढ़ा ताला खोल कर चाबी जेब में ही रख रहा था....
एक लड़की जो उस कोने में रोज खड़ी होती है ? दिनभर यही खड़ी रहती है ? न कही जाती है, न कोई मिलने आता है ? बाबा क्या आप उसे.... उसे जानते हो ?
सर आपको कैसे पता ये सब, ये तो पिछले छ: महीनो से चल रहा है, रोज यही खड़ी होती है वो बेचारी.... किसी ने नहीं पूंछा, मगर आप क्यों ? क्या आप .... क्या आप जानते हो उसे ?
नहीं.. मैं नहीं जानता... पर कुछ दिनों से देख रहा हूं.. सोचा आज पता कर लूं.... कौन है ये लड़की..? ओर ये सब क्या है..? कुछ पता है आपको?
बूढ़ा कुछ देर तक चुप रहा, फिर बोला सर.. छ: महीने पहले की बात है, ये लड़की रोज बस स्टाप आती थी एक छोटे बच्चे के साथ, बड़ा ही शांत था स्कूल बैग के साथ होता था साथ में टिफिन होता था ! दोनों हँसते हँसते आते थे और फिर बच्चा स्कूल बस से स्कूल चला जाता था और माँ घर को... इसी तरह शाम को वो बच्चे को लेकर ख़ुशी से घर चली जाती थी...... !
... और एक दिन इसी बस स्टाप में....
कहते कहते अचानक वो बूढा रुका और फिर कुछ सोचकर बोला, सर... गेंद उस पार गयी... और ... वो बच्चा अपनी माँ से हाथ छुड़ा ... उस गेंद के पीछे दौड़ा....
“माँ’ थी उस बच्चे की ये लड़की...”
इस “थी” शब्द ने मुझे पूरा झकझोर दिया !
मुझसे भी कुछ कहा न गया.... मुझे मेरा जवाब मिल चुका था ..
मैं अब भी रोज़... उसको देखता हूं.... वो माँ अब भी उस स्कूल बस का इंतज़ार करती है.... अब भी... स्कूल के बच्चे अब भी वहीँ उतरतें हैं ... और वो स्कूल की पिली बस.. रोज़ आती है.... वो क्या सोचती है ... उसे कैसा लगता है.... यह शायद ... शब्दों में कहना कठीन होगा.....
शायद इतना कहना काफी होगा... की वो अब भी रोज़ आती है उस बस स्टॉप पर...
हाँ वो एक ‘माँ’ थी....
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