मेरा घर तीसरे मंजिल में
था, बगल में एक परिवार रहने आया था यही कुछ ५-६ महीने हुए थे ! इतवार का दिन था मै
कुछ लिखने की कोशिश कर रहा था तभी अचानक दरवाजा खुलने की आहट आयी, पहले लगा हवा का
झोका होगा मगर पीछे देखा तो दो छोटी छोटी आँखे और एक छोटी सी नाक दिखाई दे रही थी
! वो आखे मुझे ही देखे जा रही थी मेरे इशारा करने पर, दरवाजा जरा सा और खुला बिलकुल जरा सा....
फिर दोबारा बुलाने पर
दरवाजा तेजी से खोल एक ७-८ साल की बच्ची सीधे मेरे पास आकर खड़ी हो गयी, शांत आँखों
में मानो बल्ब लगे हो ऐसे चमक रही थी, साथ में मेज पर रखे कागजो पर ऐसे नज़रे गडा
राखी थी मानो मेरे लिखने का जायजा लिया जा रहा हो ! काफी सोचने के बाद मैंने उससे
पूंछा...
क्या नाम है बेटे आपका?
उसका मन उन कागजो से हटा
तक नहीं...
फिर मैंने कहा, बेटे आपका
नाम क्या है ?
मानो इस बार भी उसके
ध्यान में कोई फर्क नहीं पड़ा, उसकी नजर अब भी किताबो में ही थी...
बेटे... बेटे नाम ? नाम
क्या है आपका ?
अब इस बार वो अपना चेहरा
मेरी तरफ घुमाकर हसने लगी....
नाम? बेटे ? नाम क्या है
आपका ?
उसका मुस्कुराना जारी था,
अब मुझे अजीब सा लग रहा था ! वो कुछ बोल नहीं रही थी बस मुस्कुराये जा रही थी! कुछ
भी नहीं बोल रही थी, मन ही मन डरने लगा मै... कही ये ? नहीं नहीं ऐसा नही हो
सकता....
कई ख्याल आ रहे थे मन में
! तभी डरते हुए मैंने पेन उठाया हाथ में और एक कागज़ में लिखा...
“बेटे आपका नाम क्या है ?”
मैंने इतना लिखा ही था की
उसने अपने हाथो से मेरी ठुड्डी पकड़कर सर ऊपर किया और ‘मुस्कुराने’ लगी...
हंसी ?
उसने अपने दोनों हाथ सर पर
रखे जैसे मैंने कोई बड़ी बेवकूफ़ी कर कि हो और फिर से दोनों हाथों को होठों के पार ले
जाकर वही इशारा किया
" ख़ुशी " ? अरे हाँ। "मुस्कान"
मेरे मुस्कान कहते ही उसकी
मुस्कान हंसी में बदल गयी, मैंने मुस्कान उस नोटबुक पर भी लिख दिया, ये सोच कर शायद कि उसने मेरे होंठ सही पढ़े हैं, वो अपना नाम उस नोटबुक पर लिखा देख और खुश हो गयी।
पन्नों ,
मेरे और उसके बीच इसी तरह कुछ देर तक बातें हुई
, मैंने एक नयी नोटबुक निकाली और उस पर उसका नाम लिख
दिया और पहले पन्ने पर लिखा " तुम्हारा नाम क्या है " वो बड़ी तेज़ थी,
समझ गयी कि मैं उससे उसकी भाषा सीखना चाहता हूँ।
उसने फटाफट इशारों से मुझे समझा दिया, मैंने उन्ही इशारों को फ़िर से दोहराया ,
और उसने अपने हाथ अपने होठों कि तरफ ले जाकर इशारा
कर के जवाब भी दिया, फिर हम दोनों काफ़ी
देर तक हँसे।
अब जब भी मेरी छुट्टी
होती वो मेरे पास आ जाती और उसकी भाषा में हम खूब बाते करते ! मैं उसके लिए कुछ किताबें
ले आया था, जब भी वो आती उन किताबों
में जाने क्या ढूंढती , मेज़ पर रखे हुए पेनों
से खेलती और मुझे अपनी भाषा में हमेशा कुछ नया सिखा जाती । ये सिलसिला करीब डेढ़ महीने
तक चलता रहा , हम अच्छे दोस्त बन
गए थे, वो छुट्टी के दिन आकर अपने दोस्तों के बारें में
बताती , किताबों में तस्वीरें
देखती कुछ देर बैठती और चली जाती। मैं हमेशा उस से एक चीज़ सीखता ,
उसको दोहरा कर उसको दिखाता ,
और वो सर हिला कर हंसती। एक अलग ही दुनिया हो गयी
थी हम दोनों कि, मुझे ये एहसास हो
चूका था कि वो क्यों इस तरह मेरे करीब आ गयी थी , सारी दुनिया उसे कुछ न कुछ सीखाने में लगी हुई थी ,
और एक मैं था जो उससे सीखता था अजीब सा लगता था
कि चुप रह कर भी वो कितना कुछ बोल जाती थी !
एक दिन, शाम का वक्त था
बारिश तेज हो रही थी मै जल्दी जल्दी दफ्तर से निकलकर घर जा रहा था, पूरा भीग चूका
था, कपकपी छूट रही थी ! अपने घर के नीचे पहुचते ही जल्दी जल्दी ऊपर जाने लगा मगर तभी
एक बड़े से ट्रक और कार पर नजर पड़ी ! ट्रक में किसी का सामान लदा हुआ था, कोई जा
रहा था ! मै ये सब देखते हुए जल्दी जल्दी ऊपर गया, बगल वाले घर में ताला पड़ा था !
मैंने अपना दरवाजा खोला और कपडे बदलकर चाय गैस में रखी ! फिर तौलिया लेकर खिड़की
में गया ! मेरा ध्यान फिर उस कार कि खिड़की पर गया, फिर वो चेहरा सामने आया , बारिश में भीगता हुआ, वो मेरी ही खिड़की कि तरफ देख रही थी , वो जब नहीं देख रही थी तब भी वो हाथ मेरी खिड़की कि तरफ ही इशारे कर रहे थे ,
उसने मुझे देख लिया था,
वो वही इशारे बार बार दोहरा रही थी ,
मैंने अपना चेहरा थोडा और बाहर निकाल कर समझने कि
कोशिश कि। एक तो बारिश कि उन टकराती बूँदो से मेरी आँखें ठीक से खुल नहीं रही थी ,
और वो जो इशारे कर रही थी वो मैं समझ नहीं पा रहा
था। उसने वो मुझे सीखाया नहीं था, मैं भी क्या जवाब देता , एक हथेली बाहर निकाल कर हिलाता रहा, पर वह अब भी वही इशारा कर रही थी , जाने क्या कहना चाहती थी , जाने क्या बताना था उसको , बाल पूरे माथे से चिपक गए थे , मैं भी फिर से भीग गया था।
कुछ तो कहना चाह रही थी
वो , जिसे मै आज तक नहीं समझ पाया ! फिर मै दरवाजे के पास पंहुचा तो वहां पर एक
कागज पड़ा था ! जिसमे J लिखा हुआ था बस !
जिसे पूरी दुनिया कुछ
सिखाने की कोशिश कर रही थी, वो न जाने कितना सिखा गयी मुझे ! फिर भी आखिरी में कही
गयी बातो को मै आज तक नहीं समझ पाया ! उसका वो पन्ना न जाने कितने गमो की मुस्कान
रखता है...
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