बच्चे की बचपन की वो ख्वाहिसें.
ऐसी मानो खुले आसमान के परिंदे
मंदिर- मस्जिद, हिन्दू- मुस्लमान
से दूर और नासमझ, एक दम आजाद
खुद में गुल, खुश और बेपरवाह..
बच्चे की बचपन की वो ख्वाहिसें
उड़ने दो इन्हें आसमान की उचाईयों में
हकीकत के पिंजरों से बहुत दूर
जाति-पात और सरहद में कैद न करो इन्हें
उड़ने दो उड़ने दो उड़ानों दो
बच्चे की बचपन की वो ख्वाहिसें...
ऐसी मानो खुले आसमान के परिंदे
मंदिर- मस्जिद, हिन्दू- मुस्लमान
से दूर और नासमझ, एक दम आजाद
खुद में गुल, खुश और बेपरवाह..
बच्चे की बचपन की वो ख्वाहिसें
उड़ने दो इन्हें आसमान की उचाईयों में
हकीकत के पिंजरों से बहुत दूर
जाति-पात और सरहद में कैद न करो इन्हें
उड़ने दो उड़ने दो उड़ानों दो
बच्चे की बचपन की वो ख्वाहिसें...
#YugalVani
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