''सत्य और साहित्य'' : 'अंकुर मिश्रा' की हिंदी रचानाएँ (कहानियाँ और कवितायेँ )
'मंदिर' नहीं व्यापार का केंद्र कहो उसे : अंकुर मिश्र ‘युगल’
ग्रामीण विकास मंत्री ‘जयराम रमेश’ के द्वरा कहे गए शब्दों में कोई राजनीती नहीं थी, देश को मंदिर नहीं शौचालयों की जरुरत ज्यादा है ! मंदिर एक आस्था का केंद्र मन जाता है और आस्था दिल से होते है दिखावे से नहीं, देश के मदिर आज खुले व्यपार के अड्डे बाण चुके है! इस तथ्य से कोई भी अनभिग्यनहीं है लेकिन क्या करे वो उस अन्धविश्वास का सीकर है जिसने उसे इस व्यापर का भागीदार बनाने के लिए विवास कर रखा है ! वो ग्रन्थ पढता है लेकिन डर से प्रेम से नहीं, मंदिर जाता है प्यार के लिए व्यापर के लिए ! इश्वर से भी व्यापर के रिश्ते है जनता के आज कल :
वो कहेगा आप मेरा ये कम कर दो तो मई ये करूँगा !!.......... ###
और इसी व्यापारिक केंद्र को बनाने के लिए हमारी सरकार, हमारे उद्योगपति करोणों की संपत्ति खर्च करते है वो भी किसी आस्था के लिए अपने लाभ के लिए, कोई सोचता है मंदिर बनवाओ चुनाव आने पर ‘वोट’ के लिए इस्तेमाल करेंगे ! कोई सोचता है मंदिर बनवाओ कर में कुछ छूट मिल जायेगी ! कोई सोचता है मंदिर बनवाओ मेरा ये कम हो जायेगा ! लेकिन किसी ने इसे धार्मिक स्थल बनवाने की नहीं सोची ! यह है हमारा देश ‘धर्म’ गुरु ..??
यहाँ आज किसी को वो दिन भी याद नहीं होगा जब स्वामी विवेकानन्द ने गीता का मतलब पुरे विश्व को बताया था, हम आधार है सभी धर्मो का लेकिन आज तो हम ही निराधार है, खुद के धर्म को व्यापर बना दिया है !
बात उस बात की जिसकी जरुरत देश को सबसे ज्यादा है, हम प्रदुषण के मामले में दिन दिन उन्नति कर रहे है, कोई गौरव के बात नही है....... ! प्रमुख आधार क्या है इस प्रदुषण का देश की जनता का मलमूत्र, खुले आसमान के नीचे शौच क्रियाएँ , खुले आसमान के नीचे कूड़ा करकट ......!
लेकिन देश की सरकार के पास, देश की जनता के पास, उद्योगपतियों के पास इसके लिए पैसे नहीं है ! जनता को खुले में जाकर प्रदुषण उर गन्दगी फैलाना मंजूर है ! सरकार को इस गन्दगी को समाप्त करने के लिए वादे करना मंजूर है, उद्योगपतियों को अपने कारखाने लगाकर प्रदुषण फैलाना मंजूर है लेकिन हजारों में बनने वाले “शौचालय” बनवाना मंजूर नहीं है ! वाही अंधविश्वास की बात आयेगी , कही से एक पत्थर निकल आये करोडो का मंदिर बन जायेगा ! करोडो की सुरक्षा लगा दी जायेगी, करोडो रुपये पंडितो और पुजारियों में खर्चा कर दिए जायेगे लेकिन इस हजारों की चीज के लिए कोषागार में , घर में पैसा नहीं है ! यदि ये ढूंढे की जिम्मेदार कौन है तो दोषारोपण की कहानियाँ तैयार हो जायेगी सरकार जनता पर और जनता सरकार पर दोष की किताब लिख देगी, चुनाव आने पर ये बाते ण जनता को यद् रहेगी और न ही सरकार को ! और प्रदुषण की यह क्रिया दोबारा से शुरू हो जायेगी ! शिकार प्रकृति होगी जिसने सबकुछ दिया ! आब भी समय है आस्था को ज़िंदा रखकर, पहले आवश्य चीजों पर धयान दो !
इश्वर भी कर्म को प्रथम बताते है ! कर्म ! कर्म ! कर्म !
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10 टिप्पणियां:
एक सत्य वचन कहा आपने .
well said Ankur, Now the people of india should start taking initiatives on their with their minds open. No government can help us if we dont clear our minds with the rubbish stuffs.
व्यापार के केंद्र कुछ ही मंदिर है पर अनेकानेक मंदिर ऐसे है जहाँ पर कोई नहिऊ जाता वहां के पुजरिका एक समय का भिओजन भी नहीं निकलता | इन मंदिरों को क्या टॉयलेट बनादेना चाहिए? मंदिर के साथ टॉयलेट जोड़ा जाता है पर मस्जिद कभी नहीं , या गिरिजा कभी नहीं क्यूं? अपने आप को मॉडर्न पढ़े लिखे ज्ञानवान दिखने के लिए अपने माबाप को लात मरना कोई बुद्धिमानी नहीं है , ओछापन है | आइंस्टीन जैसे विज्ञानिक वेद ज्ञान के आगे नतमस्तक होते है तो मस्मुली जनता को अपनी हद समझनी चाहिए |
bhagwan aur insaan ka vyapar puranaa hai
Saty vachan mishra ji.
गुरुदेव सारगर्भित आलेख ... लगे रहो...
@ SShukla आप कह रहे है की "अनेकानेक मंदिर ऐसे है जहाँ पर कोई नहिऊ जाता वहां के पुजरिका एक समय का भिओजन भी नहीं निकलता " जहाँ तक में जनता हूँ , हिंदुस्तान का कोई भी मंदिर एसा नहीं है जहाँ कोई नहीं जाता हो... अगर ऐसा है भी तो उसका कारण होगा मंदिर का गाँव या शहर से दूर होना... या फिर अन्धविश्वास से भरी कोई कहानी... और रही बात के उनके पूजारियो की तो में कहना चाहूँगा की धर्म पूजारियो का ठेकेदार नहीं है... आज ज्यादातर मंदिरों में ख़ासकर jo छोटे मंदिरों में पुजारी है, वो वास्तव में पुजारी है ही नहीं... मेने देखा है , जिसको कुछ नहीं सूझता वह "बाबा" बन जाता है... इनमे कई किस्मे भी होती है जेसे , निकम्मे लोग, गाँव के बर्बाद और आवारा...जिंदगी भर ऊट पटांग के काम किये आखिर में बाबा बन गए...(ये में कही सुन या पढ़ कर नहीं कह रहा देखि हुई बात है...) और शायद आपने लेख को सही से पढ़ा नहीं है, इसमें कही भी मंदिर को टॉयलेट में रूपांतरित करने की बात नहीं कही गई... और आखिर में कहना चाहूँगा की आपने तो वेदों को समझा ही नहीं.... वेद या कोई अन्य धर्म ग्रन्थ मंदिर, मस्जिद को कभी बढावा नहीं देते... मंदिर, मस्जिद तो आधार है (धेय्य, ध्याता, ध्यान)! और फिर बुद्धिमानी आवश्यक चीजो के निर्माण में रूचि रखनी pr he..! कोई मंदिर बड़ा नहीं, न ही भगवान, न ही अल्लाह, और न ही गॉड! सबसे बड़ी और मूल्यवान तो "मानव और मानवता है" आपने तो पढ़ा ही होगा " अयमात्मा ब्रह्म ,अहम् ब्रह्म अस्मि, तत्वमसि...
आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूँ !
सार्थक पोस्ट !!
आभार !!
jee ankur...kamobeshi is mudde par mere bhi yahi vichar hain
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