''सत्य और साहित्य'' : 'अंकुर मिश्रा' की हिंदी रचानाएँ (कहानियाँ और कवितायेँ )
आखिर हम यहाँ ही क्यों है?,आखिर हम ही क्यों है?- अंकुर मिश्र "युगल"
क्या हम कभी सोचते है -
आखिर हम यहाँ क्यों है ?
आखिर हम यहाँ ही क्यों है?
आखिर हम क्यों है?
आखिर हम ही क्यों है?
मुझे नहीं लगता की हम इस तरीके के प्रश्नों को अपने दिमाग में कभी भटकने भी देते होंगे, हम तो बस अपने कार्य कलापों में व्यस्त रहते है!
लेकिन यह प्रश्न वो प्रश्न है जो एक बार दिमाग में आ गए तो अच्छे से अच्छे "निकम्मे"(काम चोर) मनुष्य को असाधारण बना देते है !
हमारे जीवन का लक्ष्य अपना लक्ष्य पाना तो होता है पर उस लक्ष्य को पाने के बाद हम संतोष रूपी जंजीर में जकड जाते है , जबकि वास्तविकता यह है हम यहाँ केवल हमारे लिए नहीं है, इस दुनिया में एक पत्थर भी खुद के लिए नहीं है और कहे तो खुदा भी खुदा के लिए नहीं है,उसी तरह हम भी है जो हमारे लिए नहीं है! हमें यही सोचना है की हमारा "हम" हमें न जकड पाए और हम सोचे "आखिर हम यह क्यों है?"आखिर हम ही यहाँ क्यों है?"," यदि हम प्रश्न पर विचार करे तो हमें समझ में आयेगा की हम यहाँ किसी विशेष कार्य की वजह से है, अब यह कार्य हमारे परिवार में हो सकता है, हमारे समाज में हो सकता है, हमारे देश में हो सकता है ! बस यहाँ आवश्यकता है हम उनकी आवश्यकता को समझे और "आखिर हम यहाँ क्यों है?"और "आखिर हम ही यहाँ क्यों है" जैसे प्रश्नों का उत्तर खोजे !!!
इसी तरह हम सोचे तो एक साधारण सा दिखने वाला अशधारण प्रश्न हमारे दिमाग में आता है की "आखिर हम क्यों है?" और "आखिर हम ही क्यों है?" !
यह प्रश्न तो साधारण है पर इसके उत्तर पर व्याखान कोई नहीं दे सकता या देने में कठिनता होगी ! जबकि उत्तर हमें कही से खोजना नहीं है उत्तर तो हमारे अंदर से ही मिलता है की किसी विशेष काम को करने के लिए विशेष व्यक्ति की जरुरत होती है और "विशेष" व्यक्ति एक ही होता है! बस अब सोचना क्या है हमारी रचना उस विशेष कम को करने के लिए हुई है बस हमें वो विशेष कार्य खोजना है और उसको हल करना है ! यही हमारे दूसरे प्रश्न का उत्तर है -"आखिर हम क्यों है?", और "आखिर हम ही क्यों है?"!!
उत्तर तो मिल गए पर इनको वास्तविक जीवन में अमल करना बहुत ही कठिन कार्य है पर असंभव नहीं है !अब हम इस ब्रह्माण्ड की सबसे अनोखी रचना है तो हम कठिन कार्य को सरल बना ही सकते है , ऐसा मेरा सोचना है ! मै सोचता हूँ मनुष्य कोई भी कार्य कर सकता है बस उसे निचे दिए ६ बिन्दुओ पर अमल करना होगा, इनका अमल करने पर असंभव कार्य में भी संभवता का "अंकुरण" होने लगता है-
-धैर्य
-कठिन परिश्रम
-आत्ममंथन
-आत्मनियंत्रण
-समय का सदुपयोग
-विश्वास (स्वयं पर)
"सत्य , साहित्य और समाज "
अंकुर मिश्र "युगल"
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9 टिप्पणियां:
Margdarshk aalekh ke lie aabhara gurudev
behtreen
padkar nayi urja ka sanchar hua....
shukriya....
बहुत सुंदर लेख ..
कभी समय मिले तो http://shiva12877.blogspot.com ब्लॉग पर भी अपने एक नज़र डालें .
Bahut hi sundar hai mishra ji.....
बेहद प्रभावशाली विचार हैं.
बहुत सही कहा आपने कास लोग ऐसा सोचे !!!
niceee Think
@संतोष जी बहुत बहुत धन्यवाद...
@शिवा जी बहुत बहुत धन्यवाद.
@प्रफुल्ल जी ,नितिन एवं सभी को धन्यवाद अपने अपने समय दिया और इस लेख को पढ़ा !!!
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