हमने आज़ादी की ६२वीं सालगीरह भी मना ली.पर क्या हम सही मायने में आज़ाद हैं? ये कैसी आज़ादी है की आज अपने देश का कोई भी बच्चा १० मिनट शुद्ध हिन्दी में बात भी नहीं कर सकता . देश की विधी व्यवस्था आज भी अंग्रेजों के मुताबीक चल रही है. जब हम आज़ादी के पचासवीं ज़श्न मनाने वाले थे तब तक हमारे देश का बजट शाम के पाँच बजे शुरु होता था इसलिये क्युँकि हमें अपना बजट अँग्रेजों को दिखाना होता था और उनके यहाँ उस वक्त दिन के ११ बज रहे होते थे जो उनके सदन की कार्यवाही शुरु होने का समय है. फिर सदन में इसका विरोध हुआ और बजट का समय बदला गया.हमरे देश मे अंग्रेजों ने अपने यहाँ की शिक्षा व्यवस्था लागु की ये १८३५ की बात है जब भारत में गवर्नर जनरल बेंटिक था.उसने शिक्षा को बढावा देने के नाम पर जगह जगह विद्यालय और महाविद्यालय खोले ताकी वो हमारे देश को अपने अनुसार ढाल सकें पर हमारे तब के नेता आज जैसे नहीं थे उन्होंने इसका विरोध किया और जगह जगह राष्ट्रीय विद्यालय और महाविद्यालयों का निर्माण किया.बनारस और इलाहाबाद में विद्यापीठ खोले गये. अलीगढ में जामिया मिलीया ईश्लामिया खोला गया. रविन्द्रनाथ नें शान्तीनिकेतन में विश्वभारती कि स्थापना की.पर आज आज़ादी के ६२ साल में हमने क्या किया? हर भावी नेता से हर शहर हर गाँव में अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों की माँग की. आखिर ऐसी कौन सी मजबुरी है कि हम अँग्रेजी पढने को विवश हैं? आज आलम ये है की कोई भी अभिभावक अपने बच्चे को सरकारी विद्यालयों में नहीं डालना चाहते कारण ये है कि वहाँ की शिक्षा व्यवस्था ही सही नहीं है. इस बात को खुद देश के सभी शिक्षा पदाधिकारी प्रमाणित करते हैं इनमें से एक भी ऐसे नहीं होगें जिनकी संतान किसी सरकारी विद्यालय मे पढते हों.क्युँ? क्युँकि वो जानते हैं कि वहाँ शिक्षा के नाम पर सिर्फ़ छलावा है और वहाँ पढना या न पढना बराबर ही है तो फ़िर वो अपने बच्चे के भविष्य के साथ कैसे खेलेंगे? विडंबना ये है की आज़ादी से पहले शिक्षा का जो महत्व था आज वो अदृश्य हो गया है.गुलाम भारत में वो संवेदना थी कि वो सबके भविष्य को समान दृष्टी से देखते थे और आज़ाद भारत तो दृष्टीहीन है! आज़ादी के समय २४% पुरुष और७% महिलायें शिक्षित थीं पर आज की अपेक्षा तब के भारतीय ज्यादा देशभक्त, ज्यादा शिक्षित और सभ्य थे तभी तो उन्होंनें देश के लिये अपने जान तक की बाजी लगा दी और आज के शिक्षित लोग धन के लिये देश की बाज़ी लगा दे रहे हैं.
एक समय था जब ‘भारत छोडो’ का नारा हमारे देश में गुँजता था और आज की स्थिती ऐसी हो गयी है देश के युवा अपने देश को छोडकर दुसरे देश जाने को आतुर रहते हैं और माता-पिता इसी में अपने को गौर्वांवित महसुस करते हैं.देश के करोडों रुपये विदेशी बैंकों में काला धन के रुप में जमा है और हम इतने बेबस , इतने लाचार और इतने मजबुर हैं कि अब तक सिर्फ़ योजना बन रही है और शायद अभी सालों ये योजना बनती रहेगी.विदेशी शक्तियों से लडनें के लिये हमारे पास सब कुछ था, जोश और ज़ुनुन से हम लबरेज़ थे.उत्साह में कोई कमी न थी. और आज तब से ज्यादा समृद्ध हैं सभ्य हैं शिक्षित हैं पर फ़िर भी भ्रषटाचारियों के खिलाफ़ कुछ नही कर पा रहे हैं.शायद किसी नें सच ही कहा है:
हमें अपनों नें मारा गैरों में कहाँ दम थाहमारी नईया तो वहाँ डुबी जहाँ पानी कम था........
1 टिप्पणी:
**************अति सुन्दर ************
अत्यंत ही मन मोहक " ब्लॉग" लगा आपका l
लगता है काफी मेहनत की है आपने
मेहनत भी दिख रही है
हां ........................................
राजनिति से काफी लगाव है आपका
पर ब्लॉग .........तो अच्छा लगा.......चाहे कुछ भी कहिये
और क्या नया कर रहे है आप ?
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