क्या भाजपा किसी बहुत बड़ी कंपनी की एक कंपनी है ?

ये लोकसभा चुनाव है या कोई प्रदर्शनी...?
सुबह सुबह सड़क में खड़े एक भूखे बच्चे को नजरंदाज करते हुए जब अक्षरधाम मेट्रो में प्रवेश किया तो सबसे पहले दृश्य था, भाजपा और मोदी जी के चुनाव प्रचार के एक पोस्टर का, वैसे तो यहाँ पोस्टर कई प्रकार के थे लेकिन सामने एक पोस्टर लगा था, जिसमे लिखा हुआ था
“बहुत हुयी महंगाई की मार,
अबकी बार मोदी सरकार....”

कुछ समय पहले तक या तो ये जगह खाली होती थी या यहाँ किसी बड़ी कंपनी के विज्ञापन होते थे जो दिल्ली मेट्रो को अच्छा खासा पैसा देती होगी ! पर जैसा मैंने सुना है भाजपा कोई कंपनी तो है नहीं, फिर ये ये पोस्टर इतनी महंगी जगह में कैसे...

दो दिन पहले रेडियो खोलकर मैच सुनने की इच्छा हुयी तो मैच तो पहले सुनने को नहीं मिला लेकिन एक प्रचार मिला “अबकी बार मोदी सरकार”..

इंटरनेट से गली कुचो तक लेकर विज्ञापन छाये पड़े है, टीवी में कोई समाचार से पहले नेता वोट मांगने आ जाते है, मेट्रो के बाहर अब भीख मांगने वाले से ज्यादा वोट मांगने वाले दिखाई देते है.. इनके आका उनको बस दो शब्द रटवा कर खड़ा कर देते है “वोट हमें देना है इस बार...”
उन्हें कोई मतलब नहीं है की आपको यहाँ तक पहुचने में कोई परेशानी तो नहीं हुयी, यहाँ से जाने में कोई परेशानी तो नहीं होगी, खाना मिला, खाना खाया ? कोई मतलब नहीं है उस वोट मांगने वाले को.....

खैर अब तक भी ये लोग यही करते आये है, लेकिन प्रश्न ये है की ये चुनावी खर्चा होता क्यों है ? कहाँ से आता है इतना पैसा ?.................... ये सब करके दिखाना किसको क्या चाहते है ? ये वोट लेना जानते है या खरीदना ?
सुना है इस बार का चुनाव सस्ता होने वाला है, “चुनाव सस्ता” सुनते ही बाज़ार के भाव बढ़ गए, महंगाई बढ़ गयी, पर क्यों ? क्या ये सब सस्ते चुनाव के ढोंग के कारण है, मुझे भाजपा, कांग्रेस और अन्य राजनैतिक दलों के द्वारा किये जा रहे खर्चे की रकम तो नहीं मालूम है लेकिन एक आम वोटर और आम आदमी होने के नाते अंदाजा जरुर लगा सकता हूँ.

जिस मेट्रो के अन्दर बड़ी बड़ी कम्पनियों के प्रचार करोडो में होते थे उस जगह एक नयी कंपनी भाजपा का प्रचार देख लगता नहीं है की लोगो की महंगाई घटाने के लिए चुनाव लड़ रहे है, जब अभी बिना सप्ता के नाजायज पैसा ऐसे प्रचार के लिए उड़ा सकते है जिसका कोई तुक भी नहीं बनता वो व्यक्ति या कंपनी सप्ता में आकर क्या नहीं कर सकती, वो पहले खुद को प्राथमिकता देगी, फिर जिनके पैसे से चुनाव लड़ रहे है उनको प्राथमिकता मिलेगी फिर उनकी कंपनी को फिर उस कंपनी के अधिकारीयों को, फिर उन रोजगार लोगो को जो उस कंपनी में काम करते है और आखिरी में कुछ बचा तो आम आदमी को वर्ना, आम आदमी तो हमेशा मरता ही है !
एक ऐसी पार्टी जो खुद के मार्ग से भ्रमित है जो खुद के वरिष्ठ नेताओ को भूल चुकी है, जो विकास और शिक्षा से पहले हिंदुत्व को मुद्दा बनाती है, ऐसी पार्टी इन करोडो के पोस्टरों के जरिये सन्देश देती है...
“अबकी बार मोदी सरकार...”
आखिर इस तरह के तरीको पर चुनाव आयोग क्यों कुछ नहीं कहता ?
इन सब को देखकर क्या हम यही मानले की भाजपा किसी बड़ी कंपनी की एक कंपनी है ? जिसे किसी भी तरह से अपना धंधा चलाना है....



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