रवीश जी, मेले की थकान तो मिटा दी लेकिन उत्तर अभी बाँकी है....:

दिनभर की थकान मिटाने के लिए वैसे तो मै पहले घर में आकर किसी कामेडी मूवी या कामेडी शो का सहारा लिया करता था लेकिन आज कल मैंने इस प्रक्रम को बदल दिया है ! जब भी शाम को आफिस से आने के बाद थकान महसूस होई है मै रवीश का ‘क़स्बा’ खोलकर पढने लगता हूँ,इससे ज्ञान के साथ साथ थकान भी दूर हो जाती है...
आज मै जयपुर के साहित्य मेले में घूमने आया, प्रसून जोशी के साथ साथ अमर सिंह और सलमान खुर्शीद जैसे नेताओ के दर्शन और उनसे प्रश्नोत्तरी हुयी ! इसके आलावा कई हिंदी और अंग्रेजी पुस्तकों का विमोचन भी हुआ ! खुद की पुस्तक निकट और उपन्यास ‘लव स्टील फ्लर्ट’ का अब भी इन्तजार है !
जयपुर की मसालेदार चाय और पकौड़ो का स्वाद लेकर कुछ आम आदमी पार्टियों की क्रियाओ का विश्लेषण किया.. शाम का चार बज गया था, फिर से थकान अपने चरम पर थी, नींद ही एक इलाज हो सकता था.. तभी मेरी एक मित्र ने बताया आपके रवीश जी भी आये है यहाँ तो वैसे तो उनके करोणों प्रेमी है लेकिन मुझे उनसे एक अलग लगाव है भाषा और हिंदी लेखनी के लिए आदर्श है वो मेरे... तो बस इंतजार शुरू हुआ रविश जी का मंच में आये किन्ही दो व्यक्तियों और एक महिला के साथ..! आज उन्हें मुद्दा फिर से राजनैतिक ही मिला था ! वार्तालाप शुरू हुआ ..” भारतीय लोकतंत्र में आज की हर राजनैतिक पार्टी का मुद्दा अलग है, कोई जाति के नाम पर लड़ता है, कोई मंदिर-मस्जिद और धर्मवाद के नाम को लेकर लड़ता है, किसी ने मुद्दा बनाया है भ्रष्टाचार को और किसी मुद्दा बनाया है क्षेत्रवाद को .......! ये रविश के विचार थे लेकिन मई यहाँ एक लाइन और जोदुंगा की अज का एक मुद्दा और है प्रधानमंत्री पड़ का ”एक कहता है हमारा प्रधानमंत्री पड़ का दावेदार चाय वाला है, कोई कहते है हमारा दावेदार एक आई.आई.टी. से पास हुआ आई ए.एस. है जो इमानदार भी है तभी एक पार्टी कहती है हमारा अभी कोई दावेदार नहीं है .”वार्तालाप जारी था अनेक सुझाव और समस्याये निकलकर आ रही थी. चुनाव आयोग के नोटा का प्रयोग से लेकर सबसे बड़े लोकतंत्र की समस्याओ के ऊपर बाते हो रही थी. कोई अन्ना आन्दोलन को अच्छा तो कोई बुरा बाया रहा था !  कोई कह रहा था वोट की प्रतिशतता बढ़ी है तो कोई कह रहा था ९०% होनी चाहिए ! कई राष्ट्रिय आंदोलनों के ऊपर बात हुयी और राष्ट्रिय नेताओ के ऊपर बात हुयी !.......”
तभी एक प्रसिद्ध प्रश् सामने आया क्यारवीश आप भी राजनीती में जा रहे हो ?
रवीश ने बड़ी चतुराई से उत्तर दिया उसका पता नहीं लेकिन मई टोपी पहनने वाला हूँ जिसमे लिखा होगा “मै हूँ पत्रकार..” और इसके साथ ही एक प्रश्न भी बन गया क्या “मिडिया को भी एक राजनैतिक पार्टी नहीं बनाने चाहिए?” मिडिया में ज्ञानियों की कमी नहीं है, हर तरीके के विश्लेषक उपलब्ध है , सभी युवा है, मुद्दों को समझने और पढने का जज्बा है तो फिर क्यों नहीं? इस पर भी काभी विचार विमर्श हुआ..! रवीश चतुराई से उत्तर देटे रहे और बिहार के उदहारण उठाते रहे ! १९७७ का अंग्रजी में पास जरुरी न होने का मुद्दा भी अत्यंत ऐस्तिहसिक था और ये मेरे खुद के लिए नया ज्ञान था ! मजाक मजाक में बता दिया कभी विदेश भी नहीं गए .....और भी काफी कुछ! अंत में शुरुआत हुयी प्रश्नोत्तरी की अनेक प्रश्न आये भ्हेद काभी होने की वजह से सभी के उत्तर नहीं दे सके..
उन उत्तर न पाने वालो में से मई भी एक था..
मेरा प्रश्न : “आज आम आदमी पार्टी एक विशेष जज्बे और मुद्दों के साथ राजीति में नया चेहरा बनकर आई है, उसने अपने कर्कर्ताओ के साथ दिल्ली में अच्छा प्रदर्शन भी किया लेकिन अब उसके पैर पूरे देश में फ़ैल रहे है, अरविन्द अभी भी अपने वादों पर सही से खरे नहीं उतर पाये, हम जानते है उन्होंने जोश में आकर कुछ ज्यादा ही Ideal राजनीती करनी चाही है लेकिन वो धीमे धीमे ही संभव है ! परन्तु यदि कुछ समय बाद हम देखते है की किसी भी तरह अरविन्द और आप विफल हो जाते है !
तो क्या आगे से जनता किसी नए संघर्ष और आन्दोलन पर विश्वास करेगी..?

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