क्यों असहाय चिंतित बना दिया है उसे ?

क्यों ताकते हो आँचल को
क्यों झांकते हो चांचल को.
एक माँ, एक सुधा भगिनी 
बिराजती है उस विभा में..
उसकी क्यों है 
आज ये चीत्कार ?
ये बहार की व्यथा है 
अन्दर भी एक अजीब सी कथा है
क्यों असहाय चिंतित बना दिया है उसे 
उस निर्माता को, माता को..
डर से रौंदी हुयी उसकी इच्छाये
महासागरो में खोये हुए सपने 
उसका भी है एक जीवन 
क्यों रोज काम करके 
थककर सो जाती और तू 
केवल मै..!
केवल मै..!!
केवल मै..!!! 
के सपनों में खोया रहता है.
उसके जीवन का हिस्सा बनना 
ही बस नहीं है.
जीवन जीवन तब होगा जब 
उसके अँधेरे को अपना अँधेरा 
और उसके अथाय सूनेपन 
को अपना समझकर 
जीवन से जीवन का अंकुरण करोगे...

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