एक और अनशन खत्म, क्या होता है इसका परिणाम इस रिचक तथ्य के लिए सभी लालायित होगे !
पिछले साल भ्रष्टाचार के लिए जिस लड़ाई की सरुआत कुछ चंद लोगो ने मिलकर की उसका वर्त्मनिक राजनीतिकरण आखिर देश की राजनीती में कितना असर डाल पता है द्रश्नीय होगा पता है लेकिन जनता जिस समाज जागती है उसी समय अनशन की समाप्ति का औचित्य कुछ समझ में नहीं आता, पहले कहा जाता है की “जब तक कुछ समधान नहीं निकलेगा, तब तक अनिश्चित कालीन अनशन रहेगा” लेकिन बिना समाधान के अनशन की समाप्ति का कुछ औचित्य नहीं बनता !
अन्ना हजारे द्वारा किये गए पिछले अनशन का कुछ परिणाम सामने भी आया लेकिन मात्र दिखावे के लिए, वास्तविक परिणाम अब तक नहीं है ! जनता कारणों को समझकर जिन व्य्क्तितो को आदर्श और जिन समस्याओ को आधार बनकर अनशन या क्रांति का हिस्सा बनती है अंततः या तो वो व्यक्ति जनता का साथ छोड देता है या जनता ही समस्या को नहीं समझती ! पूर्ववत अभी २०१२ में २ अनशन किये गए एक “अन्ना हजारे” द्वारा और दूसरा “बाबा रामदेव” के द्वरा लेकिन परिणाम क्या थे ? वास्तविकता में शून्य, और यहाँ दोशारोपड आया जनता पर ! लेकिन क्या इस अनशन या क्रांति का संचालन कर रहे महामहिमो ने जनता के बारे में सोचा ??
वास्तविकता में इस क्रांति का प्रमुख कारण संच्लक ही थे !!
राजनैतिक-कारण के लिए जनता से पूंछते है लेकिन क्या अनशन और क्रांति के समय के बारे में कभी जनता की राह ली गयी या खुद के समयानुसार देश सुधर के विगुल के साथ अनशन के लिए बैठ गए ! देश किसी व्यक्ति विशेष या समूह विशेष के लिए नहीं लड़ रहा देश की लड़ाई थी “भ्रष्टाचार” के खिलाफ, और जनता को ये पता है की भ्रष्टाचारी सभी राजनातिक दलों में है अतः किसी व्यक्ति या समूह विशेष को इन्कित करके लड़ाई का लड़ना जनता और क्रांति संचालको की प्रमुख गलती थी ! इन कारणों के आलावा प्रमुख कारण खुद के नियमों को मंच के माध्यम से प्रदर्शित करना भी इस इस लड़ाई की असफलता का सबसे बड़ा कारण है प्रमुख रुप से अनशन का आकस्मिक तुडाव ! जनता जिस समय किसी मुद्दे की गहनता तक जाती है तभी अचानक खबर आती है, “अनशन की समाप्ति”..
जनता भी जान चुकी है देश की इस महासमस्या का हल एक महाक्रांति ही हो सकती है, और वास्तविकता भी यही है देश को आज ऐसी क्रांति की जरुरत है जो बलिदान मांगती है लोकतंत्र के अंदर घुसकर उसे सही करना आज, कोई बुध्धिमत्ता नहीं होगी !
देश के लिए पहले क्रांति के जारिये एक सभ्य लोकतंत्र की जरूरत है फिर उस लोकतंत्र को सभ्यता से चलाने के लिए सभ्य व्यक्तियों की जरुरत है ! अतः किसी अनशन या क्रांति का राजनीतिकारण या फिर अनशन का आकस्मिक समापन देश की जनता के विचारों से परे है आखिर इसी क्या कहे ???
अंकुर मिश्र “युगल” :
मै खुद अगस्त २०११ के अनशन में अन्ना टीम के साथ २ दिन तक जेल में था, मुझे उस समय की क्रांति से लगा की देश में कुछ हो सकता है लेकिन आज जिस तरह से अनशनो का राजनीतिकरण और आकस्मिक समापन हुआ, मुझे लगा इस देश को अब बलिदानी महाक्रांति के आलावा कुछ नहीं बचा सकता !!
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