"मतदान” का अधिकार अति अनिवार्य : अंकुर मिश्र "युगल"



निरंतर किसी व्यक्ति विशेष को आधार बनाकर उसे उस संज्ञा से परिभाषित करना जिससे उसे तनिक भी फर्क नहीं पढ़ने वाला, किस बात को दर्शाता है ! शत प्रतिशत कोई भी कही भी नहीं दिखा सकता और जिससे आप इस तरह की कल्पना करते हो तो उस व्यक्ति में कोई कमी नहीं है कमी आप में है !!!
आज “फेसबुक” जो वास्तव में एक ऐसा प्लेटफार्म है जिसके जरिये हम सभी सकारात्मक तथ्यों को जानकारी कर सकते है लेकिन एक सीमित प्रयोग से !! इंटरनेट एक सूचना का असीमित माध्यम है जिसके जरिये हम दुनिया से और दुनिया हमसे जुडी रह सकती है लेकिन एक सीमित और सकारात्मक प्रयोग से ! कुछ समय पहले कुछ समूहों ने और कुछ व्यक्तित्यो ने इन पर “केस” किया ! कारण यहाँ के नकारात्मक वस्तुए जो एक साधारण से वातावरण को दूषित करती जा रही है !
यह सभी जानते है किसी व्यक्ति विशेष में कोई बुराई नहीं होती है न ही किसी समूह में, कमी हमेशा उनके क्रियाकलाप के तरीको में होती है ! और तरीको के विरोध का जो रवैया जनता अपनाती है वह उससे भी ज्यादा भयावह होता है ! वह केवल उन तथ्यों पर ध्यान देकर विचार करती है जिनमे व्यक्ति की बुराई झलकती है, उनकी स्थिति को भी समझना उनकी प्राथमिकता होनी चाहिए!
यहाँ आज की भारतीय संस्कृति को जिस आधार ने उल्लंघित किया किया है वह आज की सबसे प्रमुख और सहायतार्थ तथ्य “इंटरनेट”. जिसमे कई तरह की अश्लील सामग्री परोशी जा रही है जिससे व्यक्ति विशेष या समूह की ही नहीं बल्कि पुरे देश की धूमिल छवि विश्व के सामने प्रकट होती है और करने में किसी बाहरी ताकत का नहीं बल्कि हम सभी का हाथ है ! इस बार खतरा सुरक्षा, धन, सरकार में नहीं बल्कि देश की संस्कृति में है ! विश्व के सामने “फेसबुक” या अन्य “सोशील नेटवर्किंग साइट्स” के जरिये जो भद्दी छवि देश के नेताओ की प्रस्तुत की जा रही है उससे उनके कर्मो को तो कोई नही लेकिन देश की छवि को बहुत फर्क पड़ने वाला है ! आखिर उस सामग्री मतलब है क्या ??
नेताओ के प्रति आक्रोश !! वैसे उस आक्रोश को व्यक्त करने के और भी तरीके है जो साफ स्वच्छ है और उनसे कुछ सुधार भी हो सकता है !! नेताओ और उनके क्रियाकलापों के प्रति आक्रोश को प्रकट करने का सबसे बड़ा आधार है हमारा सबसे बड़ा अधिकार “वोट” !!
यही वो ताकत है जिससे देश में बदलाव आ सकता है, लेकिन जनता उसी के प्रति जगरूप नहीं है, जब चुनाव आते है तब उस अधिकार को प्रयोग न करके उसी को बढ़ावा देते है जिसे रोकने के लिए खुद और देख को अभद्रता के गलियारे में खड़ा करते है !!
देश उत्थान के लिए “मतदान” और “मतदाता” के अधिकारों को समझकर 100% मतदान की कोशिश करें, ऐसा करने से देश-पतन वाले क्रियाकलापों की जरुरत नहीं पड़ेगी !!

2 टिप्‍पणियां:

Awadhesh Pandey ने कहा…

आपसे पूर्ण सहमति. मतदान के अधिकार को अनिवार्य कर्तब्य के रूप में पालन करना चाहिये.

Sanjay Kapoor ने कहा…

ati avashyak vichar !!!