‘काल्पनिक दुनिया’ की गिरफ्त में ‘कल्पनाएँ’ :- अंकुर मिश्र “युगल”


मानव और उसका मन ही भावनाओ की ‘अंकुरण’ की सीमा निर्धारित करता है ! क्या ये सच है ?
सबका उत्तर आयेगा हाँ !!लेकिन आज को देखते हुए अधिकांश बुद्धिजीवियों का उत्तर आयेगा नहीं, और ये सच भी है क्योंकि ऐसा हम पिछले दशकों तक ही कह सकते थे जब तक तकनीकी और ‘इंटरनेट’ की दुनिया से दूर थे ! आधुनिक ‘सर्वे’ भी यही कहते है, मानव के सोचने की छमता में जो गिरावट पिछले २-३ दशको में आई है वह भयावह है, यही रहा तो वो दिन दूर नहीं है जब मानव “तकनीक” का गुलाम होगा ! हम केवल कह ही सकेंगे की “कंप्यूटर बनाया तो मानव ने ही है” कुछ करने में सक्षम नहीं होंगे ! ये सब जानकारियां होने के बावजूद हम जानते है की हम इस भयावह “प्रगति” को रोकेगे नहीं ! और कह भी सकते है अब यह असंभव है ............!!
इस तकनीकी संसार में फिर भी मानव का कुछ न कुछ विकास हो रहा था, उसके अंदर नए विचार उत्पन्न हो रहे थे, दिमाग नाम के लिए नहीं काम के लिए था लेकिन “इंटरनेट” के विस्तार का परिणाम कुछ ज्यादा ही भयावह नजर आ रहा है ! यहाँ से तो परिणाम ये आ रहे है है की मानव में विचारों का ‘अंकुरण’ ही समाप्त हो गया है ! उसने सोचने के लिए भी इंटरनेट के आधुनिक माध्यमों का उपयोग शुरू कर दिया है ! GOOGLE, YAHOO!, REDIFF, MSN, BING & ASK से पूंछ- पूंछ कर मानव चाँद पर पहुँचाने की सोच रहा है, यही कार्क्रम जरी रहा तो यहाँ जानकारी देने वाला कौन बचेगा ! Search Engions की दुनिया में कही एक दिन खुद को Search न करना पड़ जाएँ ! वही दूसरी ओर एक नहीं काल्पनिक दुनिया का निर्माण तेजी से चल रहा है –“Social – Networking” ...!! इस दुनिया में प्रमुख भूमिका निभा रहे है – Facebook, Twitter, Google+, Hi5, MySpace...............इत्यादि ! वैसे आज Facebook अपना अलग संसार ही बसा चुका है, मै समझता हूँ “फरवरी-2004” में चालू हुयी इस दुनिया के बारे में कुछ ज्यादा बताने की जरुरत नहीं है !
आज ये एक ऐसी दुनिया बन चुकी है जहां जिंदगी के दोनों पहलु उपलब्ध है – “ +Ve & -Ve ” ! +ve नजरिये से हम इसका प्रयोग करके दुनिया जीत सकते है, लोग लाभ के नजरिये से देखे तो यहाँ अच्छे-अच्छे बुद्धजीवियों से संपर्क होता है, किसी क्रांति के लिए यहाँ से प्रचार-प्रसार का निशुल्क माध्यम उपलब्ध होता है , किसी व्यापर के व्यापारी-करण में यहाँ से लाभ मिलता है, शिक्षा के इसमें अलग ही नज़ारे है ................और अनेक ऐसे क्रियाकलाप करके हम इस दुनिया से हाथ मिलकर अपनी कल्पनाओ को नयी उड़न दे सकते है !
लेकिन वही अगर इसके दूसरे पहलू पर नजर डालते है तो परिणाम कुछ अच्छे नजर नहीं आते ! आज की युवा-पीढ़ी इस दुनिया में इतनी ज्यादा घुस चुकी है की उसके सोचने के प्राक्रतिक माध्यमों में भी ताला पड़ चुका है, उसका सबसे बड़ा सहयोगी “Google” बन चुका है, उसका सबसे अच्छा दोस्त “Facebook” बन चुका है ! क्या ये युवा-पीढ़ी की उन्नति या उपलब्धि है ?
यहाँ भी बुद्धिजीवियों का उत्तर नकारात्मक ही आता है, यद्यपि उन्होंने इस दुनिया को गलत नहीं बताया लेकिन वो उसके प्रयोग पर प्रतिक्रिया देने से नहीं चुके ! उन्होंने युवाओ द्वारा इसके प्रयोग पर अपनी आपत्ति जताई ! सबसे बड़ी प्रतिक्रिया “समय” पर थी जो अतुल्य दुनिया के लिए अतुल्य है ! और यह सत्य भी है की युवा पीढ़ी अपना समय प्राक्रतिक तरीके से न बिताकर ‘इंटरनेट’ के तरीके से बिता रहे है और जहाँ उन्हें कभी-कभी नकारात्मक परिणाम मिलते है ! Facebook युवा-पीढ़ी के लिए “Time-Pass” का सबसे बड़ा माध्यम बन चुका है ! वैसे Users के आधार “भारत” अभी इस श्रेणी में तीसरे पायदान पर है लेकिन समय के नाजरिय से भारत पहले पायदान पर आता है, जो भारत के भविष्य के लिए अच्छा नहीं है, उपयोग गलत नहीं है, लेकिन वो सही तरीके से होना चाहिए ! मनुष्य की कल्पना ही एक ऐसा तथ्य है जिसके जरिये दुनिया का अस्तित्व है लेकिन इस काल्पनिक दुनिया के प्रलोभन में यदि कल्पना करना ही बंद कर दिया गया तो क्या इस अस्तित्व को जिन्दा रखा जा सकता है !!
शब्द इतने अपशब्द नहीं लगते जितना इसकी दुनिया में जीवन व्यापन लगता है ! वैसे देखे तो वो सारी काल्पनिक वस्तुए यहाँ उपलब्ध है जिनके जरिये हम मयुशी महसूस नहीं कर सकते !
अब सोचना आपको है की कौन-सी दुनिया किस तरीके से सही है, किस तरीके से आपको जीना है, कल्पनाओ की कल्पनाओ को जिन्दा रखना है या नहीं !!
!! इस सोचनीय सोच पर एक बार सोचियेगा जरुर !!

2 टिप्‍पणियां:

Mahendra Singh ने कहा…

वास्तव में मिश्र जी सही कहा आपने "समय" का दुरूपयोग !!!!!!

Hemant Deep ने कहा…

Really Ankur .............after reading your blog , i realized that yes its true and that day will come very soon for humans when machines will give command to us ............

Thanks for writing this and keep writing such blogs.......