अभी राजनीती की गरिमा को इतना भी मत गिरायें!! अंकुर मिश्र "युगल"


राजनीती अभी से अपठनीय हो जाएगी ये किसी ने सोचा भी नहीं होगा !आज हम हर तरीके से अपने को या अपने देश को विकसित तो बनाना चाहते किन देश को चलता कौन है,
हमारे राजनेता, यही वो कड़ी है जो हमें और हमारे देश को विश्व के सामने रखते है, एक समय था जब राजीव गाँधी और अटल बिहारी बाजपेई जी जैसे राजनेताओ से राजनीती खुद परिभाषित होती थी, क्योंकि उनके क्रियाकलापों ने राजनीती की भंगिमा को कभी भी गिरने नहीं दिया, उन्होंने उन सभी मुद्दों पर बातें की जो देश के लिए जरुरी थी !लेकिन आज की राजनीती इसके बिलकुल विपरीत है, यहाँ कुर्सी तो कोई और सम्भालता है लेकिन सञ्चालन कोई और !! यह कोई साधारण मुद्दा नहीं है, यदि हम इस मुद्दे को दिमाग से सोचे तो खुद समझ में आ जायेगा की यदि इसी तरह चलता रहा तो हमारा देश हम नहीं बल्कि दूसरा देश .................चलाएगा..........!
अब तत्काल पर नजर डालते है-
अन्ना हजारे ने "भ्रष्टाचार" के मुद्दे पर राजनीतिज्ञों से टक्कर ली उस समय उसका परिणाम सकारात्मक भी निकला परन्तु बाद में वही सरकार अपने वादों से मुखर गई !!उन्होंने वाही करने से मन कर दिया जिसे उन्होंने अन्ना जी के सामने मन था ! भ्रष्टाचार के कानून को अपने तरीके से बनाने की बात कही,इसमे भी इस बात को ध्यान रखा गया की सांसदों और प्रधानमंत्री को उस नियम के अंदर नहीं लाया जायेगा, जिसका उपयोग भ्रष्टाचार की समाप्ति के लिए होना है, जी हाँ हम बात कर रहे है "लोक-पाल" बिल की !
आखिर क्या कारण है जिसकी वजह से हमारी सरकार को "भ्रष्टाचार" और "काले धन" जैसी बरबादियों से प्यार है !
आज के भ्रष्टाचार विषय पर बात करते है जो बाबा रामदेव से प्रेरित है -बाबा रामदेव का सत्याग्रह किसी भी विषय-वास्तु से भी प्रेरित हो लेकिन उसका विषय ("भ्रष्टाचर") देश हित में था ! विषय को समझते हुये देशवाशियो ने सत्याग्रह में अपना साथ भी दिया ,और जो नहीं दे पायें वो भी समझते है ,यह आज के भारत की जरुरत है ! जनता अपने उत्तरदायित्व को समझते हुए अपने को जगरूप बनाते हुए देश हित की इस लड़ाई में शांति के साथ बाबा के साथ जुडी !
परन्तु सत्याग्रह के दौरान जो "शर्मसार" घटना सरकार द्वारा करवाई गई वो देश की छवि को गिराने के साथ, राजनीती की परिभाषा को भी परिवर्तित करती है ! इस घटना में सरकार द्वारा जिस तरीके के अतिक्रमण "जनता" पर करवाए गए वो तो सरकार को "लोकतान्त्रिक" नहीं बल्कि "तानाशाही" प्रदर्शित करती है !आखिर उस जनता पर लाठियां बरसा कर सरकार दिखाना क्या चाहती है? जिन अधिकारीयों ने ऐसा करने के आदेश दिए क्या वो भी विदेशी..................!
इस घटना को देखने से लगता है की आज के शिक्षित राजनेता भी राजनीती के लायक नहीं है !उन्होंने अपनी इस अरैजिनिकता से दिखा दिया है की उनके सोचने की क्षमता को किसी ने गिरवी रख रखा है !इस घटना के बाद जनता का उत्तरदायित्व है की वो ईश्वर से उन राजनेताओ की सदबुध्धि के लिए प्रार्थना करे! और देश-हित के कार्यों में अपना सहयोग दे ! ऐसा हमें अपनी राजनीती को बचने के लिए करना ही होगा !!!

2 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

Good article

Harshal Sachan ने कहा…

Bahut Hi Sundar Mishra